पुष्पेश पन्त ठीक ही कहते हैं किआज भारत की आधी आबादी १६ से ३० वर्ष की है ,अतः १८ बर्ष से ऊपर के मत दाताओं का असर जवार्दस्त है ,उनकी महत्वाकांक्षाएं ,आशाएं ,अपेक्षाएं ,चिंताएं पुरुखों से भिन्न हैं । नेहरू युग,इंदिरा युग,से उन्हें क्या मतलव ,वे भूमंडली करण व उपभोक्ता वादी संस्कृति से अनुशासित हैं। ,बंधनों ,वर्जनाओं,निषेधों ,परम्परा से मुक्त हैं ,ये करोड़ों युवा मतदाता हिंदुत्व की निक्कारें पहिन लाठी भांजने को तेयार नहीं हैं। वे मोबाइल ,इन्टरनेट वाले लोग हैं । आतंकवाद को,राष्ट्रीय सुरक्षा ,व पूंजीवादी अमेरिका को खलनायक बना कर कोई उन्हें अपना वोट बैंक नही बना सकता ।
यही सत्य है ---आज सिर्फ़ युवा को ही नहीं अपितु अधिकाँश लोगों को ही ---इन सब बातों से कोई मतलव नहीं । उन्हें तो दिखावे की व्यवस्था, उधार की अर्थ व्यवस्था ,अधिक से अधिक धन कमाने व उडाने के रास्ते चाहिए ,चाहे वे किसी भी साधन से आयें । देश प्रेम,राष्ट्रीयता,नैतिकता पौराणिक गाथाएँ ,नीति, धर्म से इन्हें क्या वास्ता ?राम और कृष्ण की नैतिकता से इन्हें क्या वास्ता ,इन्हें तो बद्दी बड़ी नौकरियाँ ,पे पॅकेज चाहिए । जो भी दल,पार्टी,इस असलियत को समझी ,सपने दिखाए ,उसी के पीछे धाये। रही सही कसरहिंदुत्व के विरोधियों ने की जो अपने ही घर के भेदी हैं।क्या इसी कारणपार्कों में कंडोम की मशीनें ,वैश्यावृत्ति व शराब खोरी वाली सड़क का नाम बापू के नाम पर,व कार में ्विवाहिता से दुराचार के समाचार हैं आये दिन, व मनमोहन सिंह दंगों को भुलाने की बातें कहते हें जबकि अपराधियों को दंड तक नही मिला है।
बस खाते-पीते रहो,खेलते-गाते ,नाचते -हंसते ,कमाते -मस्ती करते रहो ,आगे कौन सोचे। जो सोचे वह पुरातन पंथी व त्याज्य है।
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
बुधवार, 20 मई 2009
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