वस्तुतः बात सिर्फ़ नैतिकता व बल की है। सब कुछ इन दोनों के ही पीछे चलता है।बल चाहे शारीरिक ,सामूहिक,आत्मिक या नैतिक बल हो सदैव अपने से कमजोर पर अत्याचार करता है। स्त्री -परुष दोनों के लिए ही विवाह,मर्यादा आदि नैतिकताएं निर्धारित कीं समाज ने। समाज क्या है ? जब हम सब ने यह देखा कि, सभी व्यक्ति एक समान बलवान नहीं होते एवं बलवान सदा ही अशक्त पर अत्याचार कराने को उद्यत हो जाता है, तो आप ,हम सब स्त्री-पुरुषों ने मिलकर कुछ नियम बनाए ताकि बल, या शक्ति -अन्य पर अत्याचार न करे, अपितु विकास के लिए कार्य करे। वही नियम सामाजिक आचरण , मर्यादा आदि कहलाये।
" सर्वाइवल ऑफ़ फिटेस्ट " मानव से निचले क्रम के प्राणियों के लिए शत प्रतिशत लागू होता है , परन्तु मानव समाज में -समरथ को नहीं दोष गुसाईं - की शिकायत करने वाले भी होते हैं। समाज होता है,प्रबुद्धता होती है,अन्य से प्रतिबद्धता का भाव होता है, अतः सर्वाइवल ऑफ़ फिटेस्ट को कम करने के लिए समाज ने नियम बनाए।
समाज कोई ऊपर से आया हुआ अवांछित तत्व नहीं है--हम ,आप ही तो हैं। नियम नीति निर्धारण में स्त्रियों की भी तो सहमति थीं । अतः सदा स्त्री पर पुरूष अत्याचार की बात उचितव सही नहीं है। जहाँ कहीं भी अनाचरण ,अनैतिकता सिर उठाती है , वहीं बलशाली (शारीरिक बल,जन बल,सामूहिक बल , धन बल ,शास्त्र बल )सदा कमज़ोर उत्प्रीडन करता है। चाहे वे स्त्री-स्त्री हों ,पुरश -पुरूष हों या स्त्री-पुरूष -पुरूष-स्त्री परस्पर।
अतः बात सिर्फ़ नैतिकता की है , जो बल को नियमन में रखती है। बाकी सब स्त्री -पुरूष अत्याचार आदि व्यर्थ की बातें हैं । नीति-नियम अशक्त की रक्षा के लिए हैं नकि अशक्त पर लागू करने के लिए , जो आजकल होरहा है। पर यह सब अनैतिक मानव करता है समाज नहीं ।
जो लोग समाज को कोसते रहते हैं ,वे स्वार्थी हैं ,सिर्फ़ स्वयं के बारे में एकांगी सोच वाले। जब किसी पर अत्याचार होता है तो वह (अत्याचार संस्था,समाज,देश, शासन नहीं अपितु अनैतिक व भ्रष्ट लोग करते हैं। ) अपने दुःख में एकांगी सोचने लगता है, वह समाज को इसलिए कोसता है कि समाज ने उसे संरक्षण नहीं दिया ,अनाचारी ,अत्याचारी लोगों से ,क्योंकि उसमे स्वयं लड़ने की क्षमता नहीं थी। अतः बात वही बल व शक्ति के आचरण की है। समाज --,नैतिकता व आचरण द्वारा निर्बल को बल प्रदान करता है। बलवान का नियमन करता है।
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
बुधवार, 17 जून 2009
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2 टिप्पणियां:
मुझे लगता है कि इसके पीछे मनुष्य का दोहरा आचरण मुख्य वजह है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
आचरण की ही तो सारी बात है, पर दोहरा आचरण नहीं--अनाचरण । दोहरा आचरण का जुमला तो कमज़ोर व अक्षम लोगों का बनाया हुआ है। आचरण तो दुहरा होना ही चाहिये--क्या आप एक बच्चे को , बच्चा कैसे आता है वास्तविकता से बता सकते है ?क्या आप नन्गे होकर सडक पर घूम सकते है? पेन्ट के नीचे सब नन्गे हैं तो बाहर आव रण क्यों? क्या यह दोहरा व्यवहार नहीं?--यह बात यथा-योग्य आचरण, सदाचरण की है,नैतिकता की है।
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