
धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष की अवधारणा ---यूँही थोथा ज्ञान या दर्शन नहीं हैं ,ये पूर्ण वैज्ञानिक-मनोवैज्ञानिक तथ्य हैं । ये मनुष्य के मानस पर गहन वैज्ञानिक प्रभाव छोड़ते हैं ,उन्हें नियमित,संयमित करते हैं। जीवन,राष्ट्र,समाज व व्यक्ति को संयमित व सुचारू रूप से चलने ,उन्नति की और अग्रसर होने ,दशा व दिशा निर्देशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। लोग जीवन की भिन्न-भिन्न परिभाषाएं देते रहते हैं ,परन्तु ये अवधारणा जीवन काविज्ञान है,वास्तविक ज्ञान है जो तमाम अंधविश्वासों ,भ्रांतियों,कुंठाओं आदि की दीवारों को ढहा देता है। मानव को संसार व ज्ञान दोनों में सामंजस्य के साथ जीने की कला सिखाता है। जैसा ईशोपनिषद में कहा है-"विद्यान्चाविद्या च यस्तद वेदोभाय्ह सह। अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययाम्रितमनुश्ते ॥ "अर्थात जो संसार व ज्ञान दोनों को समान रूप से जानता है वह मृत्यु को पार करके अमृतत्व (मोक्ष)प्राप्त करता है।
धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष चारों पुरुषार्थों का कितना सरल विवेचन व वैज्ञानिक व्याख्या दी गयी है ललिता सहस्रनाम के संलग्न आलेख में,पढ़ें ।
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