हे मन ! ले चल सत की राह |
लोभ, मोह ,लालच न जहां हो ,
लिपट सके ना माया ....| x2
मन की शान्ति मिले जिस पथ पर ,
प्रेम की शीतल छाया ....| x2
चित चकोर को मिले स्वाति-जल ,
मन न रहे कोई चाह | x2-----हे मन ले चल.....||
यह जग है इक माया नगरी ,
पनघट मन भरमाया ...| x2
भांति- भांति की सुंदर गगरी,
भरी हुई मद-माया...| x2
अमृत गागर ढकी असत पट ,
मन क्यूं तू भरमाया...
मन काहे भरमाया ....|
सत से खोल ,असत -पट घूंघट ,
पिया मिलन जो भाया......|x2
अन्तर के पट खुलें मिले तब,
श्याम पिया की राह ....|
रे मन ! ले चल सत की राह ,
ले चल प्रभु की राह .....हे मन!....||
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
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- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
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5 टिप्पणियां:
श्री डॉ. श्याम गुप्ता साहब,
उस पथ की तलाश जिस पर माय ना लिपट सके, लोभ, मोह, लालच ना हो? कबीर, खुसरों से लगाकर आजतक जारी है और अनवरत रहेगी....
निर्गुणी विचारधारा में बंधा एक भावपूर्ण भक्ति-गीत मन मोह लेता है।
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
Dr.sahab bahut bhavpurn likhte hai aap.meri kavita padhkar aapne jo comment diye dhnyevad sir ji.........
sunder bhav hai sir
ओह.....!
तो मैं एक मूर्धन्य साहित्यकार से रूबरू हो रहा हूँ।
yah to aapakee jarraa nawaazee hai, huzoor.
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