शेर मतले का रहे ,तो ग़ज़ल होती है ।
शेर मक्ते का रहे तो ग़ज़ल होती है ।
रदीफ़ और काफिया रहे ,तो ग़ज़ल होती है ,
बहर हो सुर ताल लयहो ,वो ग़ज़ल होती है।
पाँच से ज्यादा हों शेर ,तो ग़ज़ल होती है ,
बात खाशो -आम की हो ,वो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल की क्या बात यारो ,वो तो ग़ज़ल होती है ,
ग़ज़ल की हो बात जिसमें ,वो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल कहने का भी इक अंदाजे ख़ास होता है,
कहने का अंदाज़ जुदा हो तो ग़ज़ल होती है।
ग़ज़ल तो बस इक अंदाजे -बयाँ है श्याम ,
श्याम तो जो कहदें वो ग़ज़ल होती है॥
२-कैसी --कैसी गज़लें ---
शेर मतले का न हो ,तो कुंवारी ग़ज़ल होती है।
हो काफिया ही जो नहीं ,बेचारी ग़ज़ल होती है।
और भी मतले हों ,हुस्ने तारी ग़ज़ल होती है ,
हर शेर ही मतला हो ,हुस्ने-हजारी ग़ज़ल होती है।
हो रदीफ़ काफिया नहीं ,नाकारी ग़ज़ल होती है,
मकता बगैर हो ग़ज़ल वो मारी ग़ज़ल होती है।
मतला भी ,मक्ता भी ,रदीफ़ काफिया भी हो ,
सोची ,समझ के ,लिख के ,सुधारी ग़ज़ल होती है ।
हो बहर में ,सुर ताल लय में ,प्यारी ग़ज़ल होती है ,
सब कुछ हो कायदे में ,वो संवारी ग़ज़ल होती है।
हर शेर एक भाव हो, वो जारी ग़ज़ल होती है,
हर शेर नया अंदाज़ हो ,वो भारी ग़ज़ल होती है।
मस्ती में कहदें झूम के ,गुदाज्कारी ग़ज़ल होती है,
उनसे तो जो कुछ भी कहें ,मनोहारी ग़ज़ल होती है।
जो वार दूर तक करे , करारी ग़ज़ल होती है,
छलनी हो दिले- आशिक ,वो शिकारी ग़ज़ल होती है।
हो दर्दे-दिल की बात ,दिलदारी ग़ज़ल होती है,
मिलने का करें वायदा ,मुतदारी ग़ज़ल होती है।
तू गाता चल ऐ यार ! कोई कायदा न देख ,
कुछ अपना ही अंदाज़ हो ,खुद्दारी ग़ज़ल होती है ।
जो उस की राह में कहो ,इकरारी ग़ज़ल होती है,
अंदाजे-बयाँ हो श्याम का ,वो न्यारी ग़ज़ल होती है॥
1 टिप्पणी:
बहुत बहुत धन्यवाद आपकी टिपण्णी के लिए!
वाह वाह क्या बात है! मुझे बेहद पसंद आया आपकी ग़ज़ल की गजलें ! बहुत ही शानदार!
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