सांध्य गीत
जब -जब सांझ ढले ,
आजाती है याद तुम्हारी ,
मन इक स्वप्न पले....
खगकुल लौट के अपने अपने ,
नीड़को आते हैं ,
तरु शिखरों से ,इक दूजे को ,
गीत सुनाते है ।
तुलसी चौरे पर जब जब ,
वो संध्या दीप जले..... । ...आजाती है याद.....
मन्दिर के घंटों की स्वर ध्वनि ,
अनहद नाद सुनाये ।
गौधूली वेला में घर को ,
लौटी गाय रंभायें ।
चन्दा उगे क्षितिज के ऊपर
सूरज उधर ढले । ....जब जब ...
गाँवों में चौपालों पर और ,
शहर में चौराहों पर।
चख-चख चर्चाएँ चलतीं है ,
छत,पनघट ,राहों पर ।
चाँद -चकोरी ,नैन डोर की ,
चुप-चुप रीति चले।
..आजाती है याद तुम्हारी ,
...मन इक स्वप्न पले ।
2 टिप्पणियां:
adbhut hai
sundar kavita aur utna hi sundar chitra..
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