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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 30 मई 2009

स्त्रियों से भेद भाव-

नन्ही परी लगेगी कूल ओर बिन्दास,बेबी बालों को स्ताइलिश लूक,फ़ेशन ओर ्स्टाइल,्ड्रेस, मेकप से फ़ायदा मिलता है जबर्दस्त,सज-संवर कर जायें इन्टर्व्यु  में,सुन्दर लड्की देख कर लोग आकर्शित होजाते हैं,  बच्चों के लिये सुन्दर डिज़्नी फ़ेन, -- नच्कैयाओं,हीरो हीरोइनों को सेलिब्रि्टी की तरह से पेश करना , ्पावर कपल्स पर रोज-रोज अतिरन्ज़ित बर्णन ( चाहे दूसरे रो्ज़ वे तलाक लेरहे हों)---आखिर ये हमें कहा ले जायगा?  
     वहीं, जहां हम चले जारहे हैं--सिविल सेवा में भी है स्त्रिओं से भेद भाव,, जैसी समाचारॊं की सुर्खियां तो यही कहतीं है,,यदि हम बचपन से ही यह सब देखते, सुनते ,महिमा मन्डित होते , पढते रहेंगे तो सिविल सेवा में भी वही न र-नारी होते हैं, लिन्ग भेद ,अहं, हीन भावना देखने को तो मिलेगी ही--वो हम से आगे क्यों?, चाहे पुरुश हो या नारी,, ये भागम भाग व ,प्रतियोगिता की बात है, पुरुश-पुरुश भेद भाव दिखता नहीं, जबकि महिला भेद भाव तुरन्त  प्रकाश में ला दिया जाता है।
        स्त्री विमर्श-पुरुष विमर्श, स्त्री या पुरुष प्रधान समाज़ नहीं ,,मानव प्रधान समाज़, मानव-मानव विमर्श की बात करें। बराबरी की नहीं, युक्त-युक्त उपयुक्तता के आदर  की बात हो तो बात बने।
           

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