कुछ पल तो रुक के देखले.....
राहों के रंग न जी सके कोइ ज़िंदगी नहीं|
यूहीं चलते जाना दोस्त कोइ ज़िंदगी नहीं |
कुछ पल तो रुक के देख ले क्या क्या है राह में ,
कोल्हू के बैल सी तो कोइ ज़िंदगी नहीं।
चलने का कुछ तो अर्थ हो कोइ मुकाम हो,
चलने के लिए चलना कोइ ज़िंदगी नहीं।
कुछ ख़ूबसूरत से पड़ाव यदि राह में न हों ,
उस राह चलते जाना कोइ ज़िंदगी नहीं ।
ज़िंदा दिली से ज़िंदगी को जीना चाहिए,
तय रोते सफ़र करना कोइ ज़िंदगी नहीं।
इस दौरे भागम भाग में सिज़दे में इश्क के,
कुछ पल झुके तो इससे बढ़कर बंदगी नहीं।
कुछ पल ठहर हर मोड़ पर खुशियाँ तू ढूढ़ ले,
उन पल से बढ़कर 'श्याम कोइ ज़िंदगी नहीं ॥
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
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- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
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4 टिप्पणियां:
चलने का कुछ तो अर्थ हो कोइ मुकाम हो,
चलने के लिए चलना कोइ ज़िंदगी नहीं।
वाह वाह - जीवन सन्देश ग़ज़ल - बधाई
-डा० गुप्ता जी!
नमस्कार!
मैंने "मानवीय सरोकार" पर आपकी टिप्पणी पढी। टिप्पणी के लिए धन्यवाद ! उस गीत के ऊपर लिखे "कथानक -गीत" का पहले अर्थ समझें और अपनी का पुर्न मूल्यांकन करें।
सद्भावी-
-डा0 डंडा लखनवी
डा0 गुप्ता जी! नमस्कार!
आपकी गजल पढ़ी। इस रचना का भावपक्ष प्रबल है परन्तु गजल के अधिकांश शेर बहर से उतरे हुए हैं। वह वैसे ही जैसे कि रेल की पटरी से रेलगाड़ी। कृपया ब्लाग में पोस्ट करने के पहले रचना को अपने आस-पास योग्य व्यक्ति को दिखा लिया करें।
सद्भावी-
-डा0 डंडा लखनवी
ये बहर क्या होती है भाई, मैं तो हिन्दी गज़ल लिखता हूं। " अन्दाज़े बयां हो श्याम का वो न्यारी गज़ल होती है।"
---अगली गज़ल में गज़लें कितने प्रकार की होतीं हैं , बताया जायेगा , गज़ल की गज़ल में।
---सब देख समझ लिया है पहले ही, जो लिखा है वही ठीक है, पुनर्मूल्यान्कन की कोई आवश्यकता नहीं ।
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