जीवन की रचना---कृत्रिम जीवन -कोशिका की प्रयोगशाला में उत्पत्ति...
----अमेरिकी जीन वैज्ञानिकों द्वारा प्रयोगशाला में जीवन की उत्पत्ति की सफलता , मानव की सफलताओं की कथा में एक और मील का पत्थर है | इस पर किसी धार्मिक आचार्य का कथन सटीक ही है कि सभी कुछ उस ईश्वर का ही कृतित्व है -मानव भी- अतः मानव द्वारा यह खोज भी ईश्वर की खोज का ही, ईश्वर द्वारा प्रदत्त, एक भाग हैजो मानव जीवन के ध्येयों में एक लक्ष्य है, अपने रचयिता की , विश्व के मूल प्रश्नों की खोज; एवं धर्म से इसका कोई विरोधाभाष नहीं है।
----इसके साथ ही विश्व भर में इस खोज की नैतिकता पर भी प्रश्न उठ खड़े हुए हैं, स्वयं वैज्ञानिक समुदाय द्वारा ही। इसके दुरुपयोग के भयंकर परिणामों, भयंकर अनुशासन हीन दुर्मानवों, अतिकाय मानव व जीवों की उत्पत्ति , मानवता के संकट के रूप में । यद्यपि टी वी समाचारों , समाचार पत्रों आदि में दिखाए गए अतिकाय मानवों के दृश्य , कथन आदि सिर्फ पाश्चात्य कथाएँ , सीरिअल्स , पिक्चर आदि से प्रभावित है जो स्वाभाविक है क्योंकि आज भारतीय प्राच्य ज्ञान की कोई पूछ ही नहीं है। जबकि भारतीय पुरा ज्ञान, वैदिक साहित्य में यह सब पहले से ही वर्णित है |
-----सृष्टा -ब्रह्मा का ही एक सहयोगी था 'त्वष्टा' जिसने यज्ञ द्वारा यह विद्या प्राप्त कर ली थी परन्तु वह उसकादुरुपयोग करने लगा था । वह यज्ञ द्वारा- हाथी का सिर -मानव का धड ; मानव का सर -जानवरों-पक्षियों का धड , विशालकाय मानव व पशु पक्षी उत्पन्न करने लगा था | त्रिशिरा नामक अति बलशाली दैत्य(तीन सिर वाला मानव=देव=दैत्य)
उसी का पुत्र था जिसका अत्याचार लिप्त होने पर इन्द्र ने वध किया था। तत्पश्चात ब्रह्मा द्वारा त्वष्टा ऋषि का ब्रह्मत्व ( ज्ञान ) छीन कर उसे निष्प्रभ कर दिया गया ।
----हमें सदुपयोग व दुरुपयोग के मध्य की क्षीण रेखा का ध्यान रखना होगा , इतिहास से सबक लेकर।
----इसके साथ ही विश्व भर में इस खोज की नैतिकता पर भी प्रश्न उठ खड़े हुए हैं, स्वयं वैज्ञानिक समुदाय द्वारा ही। इसके दुरुपयोग के भयंकर परिणामों, भयंकर अनुशासन हीन दुर्मानवों, अतिकाय मानव व जीवों की उत्पत्ति , मानवता के संकट के रूप में । यद्यपि टी वी समाचारों , समाचार पत्रों आदि में दिखाए गए अतिकाय मानवों के दृश्य , कथन आदि सिर्फ पाश्चात्य कथाएँ , सीरिअल्स , पिक्चर आदि से प्रभावित है जो स्वाभाविक है क्योंकि आज भारतीय प्राच्य ज्ञान की कोई पूछ ही नहीं है। जबकि भारतीय पुरा ज्ञान, वैदिक साहित्य में यह सब पहले से ही वर्णित है |
-----सृष्टा -ब्रह्मा का ही एक सहयोगी था 'त्वष्टा' जिसने यज्ञ द्वारा यह विद्या प्राप्त कर ली थी परन्तु वह उसकादुरुपयोग करने लगा था । वह यज्ञ द्वारा- हाथी का सिर -मानव का धड ; मानव का सर -जानवरों-पक्षियों का धड , विशालकाय मानव व पशु पक्षी उत्पन्न करने लगा था | त्रिशिरा नामक अति बलशाली दैत्य(तीन सिर वाला मानव=देव=दैत्य)
उसी का पुत्र था जिसका अत्याचार लिप्त होने पर इन्द्र ने वध किया था। तत्पश्चात ब्रह्मा द्वारा त्वष्टा ऋषि का ब्रह्मत्व ( ज्ञान ) छीन कर उसे निष्प्रभ कर दिया गया ।
----हमें सदुपयोग व दुरुपयोग के मध्य की क्षीण रेखा का ध्यान रखना होगा , इतिहास से सबक लेकर।
4 टिप्पणियां:
धन्य हों गुप्ता जी, जब यह सब भारतीय पुरा ज्ञान, वैदिक साहित्य में पहले से ही वर्णित है, तो फिर आपने इसे पहले ही क्यों नहीं सम्पन्न्ा कर डाला?
achcha likha है !
achcha likha है !
---अरे भैया अच्छी तरह पढा करो,ध्यान से.. हमने पहले ही अनुभव करके, उसकी हानियां देखकर बन्द करा दिया.
---दुनिया भर के वैग्यानिकों का एक समूह इसीलिये तो इसे बन्द कराने के लिये आवाज़ उठा रहा है.
---आप किस वर्ग में है??
एक टिप्पणी भेजें