नीरा यादव और एक आई ऐ एस को जेल के निहितार्थ.....
१। एक अच्छा चिन्ह है-- कदाचरण के विरोध में , हम कह सकते हैं कि क़ानून के हाथ बहुत लम्बे होते हैं , हमारे देश में लोकतंत्र पुष्ट होरहा है, अभी न्याय जीवित है, आस्था रखनी चाहिए आदि आदि ---यद्यपि यह अभी सी बी आई की विशेष अदालत का फैसला है । होसकता है कि आगे हाई कोर्ट, उच्चतम न्यायालय तक जाय एवं वे छूट जायं -----परन्तु कदाचरण के प्रसार को रोकने में एक कदम तो हो ही सकता है.....
२.क्या केवल नीरा यादव , अर्थात अधिकारी ही इस प्रकरण में दोषी है --- क्या पृष्ठ भूमि में कोई नेता, मंत्री , अन्य उच्च पदस्थ लोग, प्रभाव शाली लोग शामिल नहीं हैं ---क्योंकि इनके सिर्फ मौखिक आदेश व इच्छा होते हैं और कार्य को पालन कराने वाला , हस्ताक्षर करने वाला अधिकारी की जबाव देही होती है....फिर भी यह एक सबक है अधिकारियों के लिए भी कि वे सर्व अधिकार सम्पन्न नहीं है अतः न तो स्वयं अन्य के हाथों की कठपुतली बनें न लाभार्थ शामिल हों, अपितु स्वयम अनुचित कार्यों का विरोध करें ।
३.जब महिलायें पुरुषों की स्थितयों ( नौकरी आदि जो पहले सिर्फ पुरुष के कार्य माने जाते थे ) पर होती है वे भी पुरुषों की ही भांति --कदाचार , शोषण, भ्रष्टाचार में सम्मिलित होजाती हैं ; "पावर करप्ट्स"- अतः स्त्री को पुरुषद्वारा शोषण का वहु प्रचारित गुब्बारा भी पिचका हुआ प्रतीत होता है । ---जहां महिलाओं( पत्नी, प्रेमिका, माँ , मित्र आदि की भूमिका में ) को समाज में सदाचरण का, भविष्य की संतति में संस्कार स्थापना का मूल माना जाता है वही स्त्री पुरुषों के कार्य क्षेत्र में आकर , अपनी मर्यादा, आदर्श भूल सकती है, स्वयं ही भौतिकता में लिप्त होकर समाज व संतति को दिशा देने से चूक सकती है... .यह विदेशी नक़ल का परिणाम है जो समाज को पथ भ्रष्टता की और लेजारहा है और आज की संतति को दिशाहीनता की ओर । क्योंकि नौकरी व अधिकारों की दौड़ -होड़ / कार्याधिकता / पालन में- वे संतति की ओर ध्यान नहीं दे पारहीं है...अपितु उदाहरण बन रहीं हैं । उन्हें ( भौतिक लालच , पुरुषों की नक़ल/ बराबरी आदि भ्रामक विचारों से विमुख होकर )अपने मूल कार्य व अधिकारों( स्त्री सुलभ गुणों द्वारा पुरुष व संतति की उन्नायक, नियंता, संस्कार प्रदायक कृतित्व द्वारा समाज की नियंता ) की ओर, शिफ्ट करना चाहिए । स्वयं को पुरुष बनने से रोकना चाहिए...
४-महाभ्रष्ट समाज --- प्रायः यह सोचा समझा जाता था कि स्त्रियों के विभिन्न कार्यों पर पदस्थ होने से भ्रष्टाचार पर रोक लगेगी , परन्तु यह विचार भी असफल हुआ है , तथा समाज महा भ्रष्टता की ओर उन्मुख है..
-----इसीलिये महात्मा बुद्ध ने अपने शिष्य आनंद से कहा था , जब उसने यशोधरा को धम्म में लेने को कहा था --" कि आनंद तुम धम्म के द्वार स्त्रियों के लिए खोल तो रहे हो परन्तु आगे धम्म भ्रष्ट होजायगा, अधिक समय चलेगा नहीं ...."
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
रविवार, 12 दिसंबर 2010
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2 टिप्पणियां:
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डॉ श्याम गुप्त जी ,
आपने जिन चार बिन्दुओं पर अपने विचार रखे हैं। उनसे पूरी तरह सहमत हूँ। आपकी गहन सोच को दर्शाते हैं। एक स्त्री जब परिवार के बाहर समाज और देश से जुडती है तो उसकी जिम्मेदारी कई गुना बढ़ जाति है। उसे मिसाल कायम करनी चाहिए न की स्त्रीत्व को शर्मिन्दा करना चाहिए।
इस सार्थक, सामयिक लेख के लिए बधाई।
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ZEAL...धन्यवाद ,
---आपको आलेख अच्छा लगा, वास्तव में कहीं भी भ्रष्ट आचरण , कदाचरण, अनाचार, अन्ध्विश्वास, अपराध, या स्त्र्यों के विरुद्ध अपराध पनपता है तो मूलतः वह मानव के कुविचार, कुसंस्कारों, सिर्फ़ व्यक्तिवादी व अवसरवादी भाव के कारण होता न कि स्त्री शोषण, सामाज के अत्याचार आदि के कारण जैसा कि आमतौर कथित प्रगतिशीलतावादियों द्वारा कहा व प्रचारित किया जाता है...
---अभी नारी के उचित व वास्तविक दायित्व पर सोचने वाली नारियां मौज़ूद हैं, भविष्य इतना अन्धकारमय नहीं है..
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