....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सुमुखि ! अब तो प्रणय का वरदान देदो ||
वेलेन्टाइन डे पर एक प्रणयी की याचिका......................
सुमुखि !अब तो प्रणय का वरदान देदो ॥
जल उठें मन दीप , ऐसी-
मदिर , मधु मुसकान देदो |
अधखुली पलकें झुकाकर,
प्रीति का अनुमान देदो |
सुमुखि ! अब तो प्रणय का वरदान देदो ||
दीप बनकर मैं, तेरे-
दर पर जलूँगा |
पथ के कांटे दूर , सब-
करता चलूँगा |
मानिनी कुछ मुस्कुराकर,
मिलन का सुख सार देदो|
सिर झुका कर , कुछ हिलाकर,
मान का प्रतिमान देदो ||
सजनि अब तो प्रणय का वरदान देदो ||
तुम कहो तो मैं ,
प्रणय की याचिका का |
प्रार्थना स्वर-पत्र ,
तेरे नाम भर दूं |
तुम को हो स्वीकार, अर्पित-
एक नूतन पुष्प करदूं |
भामिनी कुछ गुनगुनाकर ,
गीत का उनमान देदो |
सुमुखि अब तो प्रणय का वरदान देदो ||
पास आओ, मुस्कुराओ-
गुनगुनाओ |
कुछ कहो, कुछ सुनो-
कुछ पूछो-बताओ |
तुम रुको तो , मैं-
मिलन के स्वर सजाऊँ |
तुम कहो तो मैं-
प्रणय-गीता सुनाऊँ |
कामिनी ! इस मिलन पल को
इक सुखद सा नाम देदो |
सुमुखि ! अब तो प्रणय का वरदान देदो ||
8 टिप्पणियां:
लुभावनी व सुन्दर रचना ! Sir thanx for posting a comment on my write up through bloggers association. In fact, tragedy with us is that we speak forr Hindi in English. We can talk and speak against English but at times make it a point to express in this very language.
धन्यवाद बाली जी......भई हम अन्ग्रेज़ी के या किसी भी भाषा के विरुद्ध बोलें क्यों---हम तो अपनी भाषा का प्रयोग व उसकी उन्नति की सोचें बस....दुनियां भर की भाषा यदि हम जानें तो अवश्य ही लाभ होगा ....बस अपने घर में उसे क्यों प्रयोग करें.....
अद्भुत व कोमल रचना।
sir..aap ki har rachana realy kuchh kahati hai.....thank you sir.
धन्यवाद प्रवीण जी---कोमल-कान्त पदावली गीत का प्राण होती है....
धन्यवाद--शा, यदि कविेता कुछ कहे नहीं तो कविता कहां रही...आवश्यक व उचित भाव-संप्रेषण ही तो साहित्य का काव्य का उद्देश्य है....
प्रेयसी के प्रति यह मानव मनुहार और आदम चित्रों के अहसास ने बहुत दूर पंहुचा दिया ....
शुभकामनाएं आपको !
धन्यवाद, सतीश जी......
बडा पुराना किस्सा है,
सदा सुहाना किस्सा है ।
जग का सबसे पहला किस्सा-
जग के जग का हिस्सा है॥
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