....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
उदारता और प्रमाद ----
उदारता और प्रमाद ----
"अध स्वप्नस्य निर्विदेSभुन्जातश्च रेवत । उभ्राता वास्त्रिनश्यत: ॥"..... ऋग्वेद १/१२०/१३५५.....
-----असमर्थों को भोजन प्रदान करने तक की उदारता न रखने वाले धनवानों को और आलस्य प्रमाद में पड़े रहने वाले व्यक्तियों को देखकर हमें दुःख होता है क्योंकि उनका शीघ्र ही विनाश सुनिश्चित है |
पुरुषार्थ
पुरुषार्थ
"प्र तद्वीचेयं भव्यायेन्दवे ... ॥" --ऋग्वेद -१/१२९/१४५०..... जो अपने स्वयम के पुरुषार्थ से प्रगतिशील होकर वृद्धि पाता है वह इंद्र के समान प्रशंसनीय व प्रार्थनीय है || अपने स्वयं के बल-योग्यता से कार्य करने वाला , प्रसिद्धि आदि पाने वाला ही पुरुषार्थी है और सम्मान पाने योग्य |
1 टिप्पणी:
अनुकरणीय वाक्य।
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