....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
१--पृथ्वी का सूर्य के चारों और घूमना ...... पुरा वैज्ञानिक ज्ञान के भूल जाने के कारण सूर्य द्वारा पृथ्वी का चक्कर लगाने जैसी अज्ञानपूर्ण भ्रांतियां उत्पन्न होगयीं थीं -----ऋग्वेद -३/५४/२९५० में ऋषि कहता है----
"कविर्न्रिचक्षा अभिषीमचष्ट ऋतस्थ योना विधृते मदन्ती |
नाना चक्राते सदने यथा वे: सामानें क्रतुना संविदाने || " ----अर्थात दूरदर्शी लोगों ( विद्वानों ) के दृष्टा --सूर्यदेव-, पृथ्वी को चारों ओर से देखते हैं | नियम पूर्वक कर्म से परस्पर संयुक्त यह द्यावा-पृथ्वी, पक्षियों के घोंसलों की भाँति जल के गर्भ स्थान अंतरिक्ष में चक्कर लगाते हुए अपने लिए विभिन्न स्थान बनाती है |
-----पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण जहाँ तक है वहां तक आकाश पृथ्वी से संयुक्त है अतः द्यावा-पृथ्वी कहागया है ----पृथ्वी अपने वायुमंडल सहित अपनी धुरी पर घूमती हुई सूर्य के चारों ओर विभिन्न स्थितियां बनाती हुई,(ईक्वीनोक्स आदि ) अपनी जगह बनाती हुई चक्कर लगाती है( अतः आवास बनाना कहा गया है ) अतः सूर्य उसे चारों ओर से देखता है |
२-ऋतु परिवर्तन का कारण सूर्य --- ऋग्वेद ३/५६/२९८९- के अनुसार --
"षड्भारा एको अचरंती भर्त्युतं वर्शिष्ठ्मुप गाव आगु: |
तिस्त्रो मही रूप रास्त स्थुरत्या गुहाद्वे निहिते दर्श्येका ||" ----एक स्थायी संवत्सर छ : ऋतुओं को वहन करता है | ऋत ( अर्थात निश्चित सत्यानुशासन ) पर चलने वाले अतिश्रेष्ठ आदित्य ( सूर्य ) रूपी संवत्सर( सौर वर्ष) का प्रभाव सूर्य-किरणों से प्राप्त होता है | सतत गतिशील एवं विस्तृत तीनों लोक ( स्वर्ग, अंतरिक्ष , पृथ्वी )क्रमश : उच्चतर स्थानों पर स्थित हैं , उनमें स्वर्ग व अंतरिक्ष सूक्ष्म ( अदृश्य ) व पृथ्वी प्रत्यक्ष ( दृश्य ) है |
----- ऋतु परिवर्तन का , सौर चक्र का श्रोत सूर्य है --यह प्रभाव किरणों द्वारा पृथ्वी पर दिखाई देता है परन्तु वास्तव में वह अंतरिक्ष व द्युलोक में हुए परिवर्तनों का प्रतिफल होता है |
2 टिप्पणियां:
रोचक और गहरे तथ्य।
सार्थक,..संदेशपरक पोस्ट ..शुभकामनायें
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