....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
आदि संवाद दाता नारद जी ने ,
पृथ्वी भ्रमण का मन बनाया |
देखें कहाँ तक उन्नत हुई है-
मेरी संवाद-प्रसार की विद्या-माया |
मेरे शिष्य कार्य को कैसे आगे बढ़ा रहे हैं ;
और कैसे मेरे नाम का-
पृथ्वी पर भी डंका बजा रहे हैं ||
कवि भेष में वे ,
एक अखवार के दफ्तर में पधारे, बोले-
नारद-पुराण लिखा है,
समीक्षा छपवानी है |
सम्पादकजी बोले-
ये तो बड़ी पुरानी कहानी है ,
आज की हिट हीरोइन तो रानी है |
लोग कहेंगे, हम पुराण पंथी हैं ,
धर्म के नाम पर लोगों को भटकाते हैं ;
कवि जी हम तो-
धर्म निरपेक्ष कहलाते हैं |
कोई धाँसू-- मारधाड़, लूट-बलात्कार -
ह्त्या चोरी पर्दाफास या साक्षात्कार -
की खबर हो तो लाओ ;
अरे, किसी हीरो से हीरोइन का रोमांस लड़वाओ,
अभिताभ पुराण या माधुरी उवाच,
लिखा हो तो लाओ ||
नारद जी सकपकाए,
तभी मुख्य सम्पादकजी -
गुस्से से भुनभुनाते हुए आये ;
सम्पादक पर झल्लाए, चिल्लाए -
मूर्ख ! मेरा अखबार बंद कराना चाहता है ?
जिस पार्टी के चंदे से चलता है,
उसी की आलोचना छापता है ||
विचित्रपुरी में एक -
काव्य-लोकार्पण समारोह होरहा था,
एक रिपोर्टर सीट पर बैठा सोरहा था |
नारद जी ने पूछा -
पत्रकार जी ये क्या कर रहे हैं ?
वे बोले- रिपोर्टर जी तो, हजारा श्री के -
मच्छर-मार अगरबत्ती के लांचिंग पर आयोजित-
पंचतारा होटल में ,
काकटेल डिनर पर गए हैं |
मैं तो दैनिक वेतन-भोगी फोटोग्राफर हूँ ,
मुझसे कहगये हैं कि-
एक -दो फोटो खींच लाना,
समाचार तो बन ही गए हैं ||
रामायण पाठ में -
टी वी रिपोर्टर जी पधारे,
बोले- जल्दी से लिखकर देदें,
क्या पढ़ना-गाना है ;
हमें तो मुख्यमंत्री का-
चुनाव-भाषण कवर करने जाना है ||
नारद जी मायूस होकर-
नारायण- नारायण बड़ बडाये ;
जिज्ञासा-पूर्ति हेतु , शीघ्र ही-
विष्णु धाम सिधाए ||
1 टिप्पणी:
सच है, यहाँ तो निराशा ही हाथ लगेगी।
एक टिप्पणी भेजें