....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सींचे बिन मुरझा गयी, सदाचार की बेल |
श्याम कहाँ फूलें फलें ,संस्कार के फूल ||
दायें हाथ से दान कर, बायां सके न जान |
सबसे बढकर दान है, गुप्त दान यह मान ||
आत्म शान्ति से जो मिले,अति सुख अति सम्मान |
सो सुख लक्ष्मी दे नहीं , मिले न अमृत पान ||
कमल जो कीचड में पड़ा, कीचड लगे न सोय |
सत्य कर्म करता रहे ,विषय लिप्त नहीं होय ||
सज्जन ऐसा जानिये, ज्यों पानी के ढंग |
किसी पात्र में डालिए , ढले उसी के रंग ||
श्याम किसे मिलते नहीं, व्याधि, दुःख और दोष |
जग सुख दुःख का नाम है,किसको है परितोष ||
पानी सींचें प्रेम का ,चाहें प्रिय फल-फूल |
कटुता बोये क्या मिले, तीखे शूल बबूल ||सींचे बिन मुरझा गयी, सदाचार की बेल |
श्याम कहाँ फूलें फलें ,संस्कार के फूल ||
दायें हाथ से दान कर, बायां सके न जान |
सबसे बढकर दान है, गुप्त दान यह मान ||
आत्म शान्ति से जो मिले,अति सुख अति सम्मान |
सो सुख लक्ष्मी दे नहीं , मिले न अमृत पान ||
कमल जो कीचड में पड़ा, कीचड लगे न सोय |
सत्य कर्म करता रहे ,विषय लिप्त नहीं होय ||
सज्जन ऐसा जानिये, ज्यों पानी के ढंग |
किसी पात्र में डालिए , ढले उसी के रंग ||
श्याम किसे मिलते नहीं, व्याधि, दुःख और दोष |
जग सुख दुःख का नाम है,किसको है परितोष ||
17 टिप्पणियां:
बेहतरीन नीतिपरक दोहे.हमारे हिंदी और छत्तीसगढ़ी भाषा को समर्पित पारिवारिक ब्लोग्स पर आपका स्वागत है.
उत्तम एवं सार्थक दोहे!!!
बहुत सुन्दर दोहे है
साभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
क्या बात है डॉ .श्याम देर से पढ़ा रस से वंचित रहे .
सोने की खान हैं डॉ .श्याम आप .क्या बेहतरीन दोहे लिखे हैं -आपके सम्मान में एक दोहा -
पानी से पानी मिले ,मिले कीच सो कीच ,
अच्छों को अच्छे मिलें ,मिले नीच को नीच .
सोने की खान हैं डॉ .श्याम आप .क्या बेहतरीन दोहे लिखे हैं -आपके सम्मान में एक दोहा -
पानी से पानी मिले ,मिले कीच सो कीच ,
अच्छों को अच्छे मिलें ,मिले नीच को नीच .
भारतीय संस्कृति की गहनता में डूबे दोहे। बहुत ही अच्छे।
इतने परिपक्व लेखन पर टिपण्णी का सामर्थ्य नहीं है.भाव सुमन यही अर्पित करूँगा कि वर्तमान परिवेश में नीतिपरक दोहे हमारी संस्कृति कि रक्षा के लिए अनिवार्य हैं.इन्हें पाठ्यक्रम में शामिल होना चाहिए.
धन्यवाद सपना जी..उड़न तस्तरी जी...विवेक एवं वीरूभाई जी...सुन्दर दोहे के लिए...
धन्यवाद पांडे जी ...अरुण जी ..
श्याम गुप्ता जी
सादर अभिवादन !
सज्जन ऐसा जानिये, ज्यों पानी के ढंग |
किसी पात्र में डालिए , ढले उसी के रंग ||
लेकिन यह गुण अब चाटुकारों ने हथिया लिया है … :)
अच्छे दोहे हैं …
बधाई और शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
धन्यवाद राजेन्द्र जी...आभार....बहुत सही व सामयिक कहा...पर मुझे लगता है कि...चाटुकार खुद तो ढलते ही हैं पात्र को भी अपने अनुसार ढाल लेते हैं....
हा हाऽऽ ह…
सही कहा आपने …
वक़्त का बदलाव भी क्या क्या दिखा देता है …
कृपया , मेरे यहां पधारने का भी आभार स्वीकार करें …
Aajkal itana madhur lekan padhane ko kam hi milta hai...sundar dohe...aabhar.....
कमल जो कीचड में पड़ा, कीचड लगे न सोय |
सत्य कर्म करता रहे ,विषय लिप्त नहीं होय ||
बेहतर पारंपरिक दोहे..
आभार आपका...
लीगल सैल से मिले वकील की मैंने अपनी शिकायत उच्चस्तर के अधिकारीयों के पास भेज तो दी हैं. अब बस देखना हैं कि-वो खुद कितने बड़े ईमानदार है और अब मेरी शिकायत उनकी ईमानदारी पर ही एक प्रश्नचिन्ह है
मैंने दिल्ली पुलिस के कमिश्नर श्री बी.के. गुप्ता जी को एक पत्र कल ही लिखकर भेजा है कि-दोषी को सजा हो और निर्दोष शोषित न हो. दिल्ली पुलिस विभाग में फैली अव्यवस्था मैं सुधार करें
कदम-कदम पर भ्रष्टाचार ने अब मेरी जीने की इच्छा खत्म कर दी है.. माननीय राष्ट्रपति जी मुझे इच्छा मृत्यु प्रदान करके कृतार्थ करें मैंने जो भी कदम उठाया है. वो सब मज़बूरी मैं लिया गया निर्णय है. हो सकता कुछ लोगों को यह पसंद न आये लेकिन जिस पर बीत रही होती हैं उसको ही पता होता है कि किस पीड़ा से गुजर रहा है.
मेरी पत्नी और सुसराल वालों ने महिलाओं के हितों के लिए बनाये कानूनों का दुरपयोग करते हुए मेरे ऊपर फर्जी केस दर्ज करवा दिए..मैंने पत्नी की जो मानसिक यातनाएं भुगती हैं थोड़ी बहुत पूंजी अपने कार्यों के माध्यम जमा की थी.सभी कार्य बंद होने के, बिमारियों की दवाइयों में और केसों की भागदौड़ में खर्च होने के कारण आज स्थिति यह है कि-पत्रकार हूँ इसलिए भीख भी नहीं मांग सकता हूँ और अपना ज़मीर व ईमान बेच नहीं सकता हूँ.
धन्यवाद अमृता जी व रवि जी...
--धन्यवाद सिरफिरा जी...
शिकवे गिले भी श्याम क्या कोई करे किस से करे
एक टिप्पणी भेजें