....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
ह्रदय के खोल अवगुन्ठन,
ह्रदय के खोल अवगुन्ठन,
छोड़ अंतस के गठबंधन |
तोड़ कर मौन की कारा,
मोड़ने समय की धारा |
चलें फिर नवल राहों पर,
बसायें प्रीति के बंधन ||
आज हर और छाई है,
धुंध कुंठा हताशा की |
हर तरफ छागया है इक,
निराशा का कुहासा ही |
तमस आतंक का फैला,
छागये अनाचारी घन |
आस्थाएं हुईं धूमिल,
नहीं सुरभित रहा सावन |
अगर अब भी न जागे तो,
बने विष-बिंदु चन्दन वन ||
मीत तुम आज फिर कोई,
सुहाना गीत इक गाओ |
आस्थाओं के, आशा के,
नीति-संगीत स्वर गाओ |
राष्ट्र गौरव के वे सुमधुर,
सुहाने सुखद सुरभित स्वर
जगे सोई धरा संस्कृति ,
जगें सोये हुए तन मन |
अनय के नाग को नथने,
हो फण फण पर पुनः नर्तन ||
10 टिप्पणियां:
यही नृत्य दिखानेवाला ही नाग को वश में ले आयेगा।
नागिया -नथन का आवाहन करती रचना ।रात्र प्रेम से संसिक्त ,चिंताओं से आप्लावित ,रास्ता आँजती .....
आज हर और छाई है ,धुंध कुंठा हताशा की ,
हर तरफ छा गया है इक,निराशा का कुन्हासा ही .
धन्यवाद वीरू भाई व पांडे जी...कोइ आये तो नाग नथनिया...
डॉ श्याम जी साधुवाद
बहुत सुन्दर और प्यारे भाव रचना में -सुन्दर आवाहन
मीत तुम आज फिर कोई, सुहाना गीत इक गाओ |आस्थाओं के, आशा के,नीति-संगीत स्वर गाओ |
लेकिन आतंक को अनाचारी घन (घन अनाचारी होते हैं क्या ?) से जोड़ देना और आस्था को -नहीं सुरभित रहा सावन- से जोड़ना कुछ अटपटा लगा आस्था से सावन नहीं बदल जाता श्याम जी -प्रकृति की अपनी चाल होती है -
तमस आतंक का फैला,
छागये अनाचारी घन |
आस्थाएं हुईं धूमिल,
नहीं सुरभित रहा सावन |
शुक्ल भ्रमर ५
-----भ्रमर जी यह कविता है ...कथा नहीं....काव्य में एक भाव होता है अर्थवत्ता....और ..गुण होते हैं अभिधा , लक्षणा, व्यंजना...व्यंजना में अन्योक्ति में बात कही जाती है...
---अनाचारी घन का अर्थ है..समाज (के आसमान पर) में अनाचार (के घन) छागया है.....वैसे सामान्य रूप में भी जब अति-वृष्टि होती है तो घन अनाचारी लगते हैं ...
--- यहाँ सावन का अर्थ भी सुहाना-सुखद जीवन है जो अनास्थाओं में अपनी समस्त सुगंध खो देता है....सामान्य रूप अर्थ में भी जब मन में आतंक भाव छाया हो, अनास्था हो तो सावन भी उतना सुहाना-सुरभित नहीं लगता.....
---मुझे प्रसंन्नता है कि आप काव्य-शास्त्र में रूचि ले रहे हैं....
----प्रकृति के अतिरिक्त विश्व में और है ही कौन व क्या..हम उसी से, उसी की चाल से उदाहरण, प्रेरणा, कथ्य-तथ्य -भाव सब कुछ लेते हैं ..
धन्यवाद श्याम जी व्याख्या और स्पष्टीकरण के लिए -काश इसी तरह की व्याख्या आप अन्य की रचनाओं में भी करते और समझते तो कहानी भी आप को काव्य लगता -इसी तरह से हर कवी या लेखक के अपने भाव होते हैं -वो क्या कहना चाहता है किस शैली या विधा में उसे प्रस्तुत कर देता है -वही जानता है
काव्य में एक भाव होता है अर्थवत्ता....और ..गुण होते हैं अभिधा , लक्षणा, व्यंजना...व्यंजना में अन्योक्ति- इस का धयान रखना जरुरी होता है -
शुक्ल भ्रमर ५
सब नीति नियम ही मेरी मानो
फूलों का दो हार हमें !!
---कहानी ...काव्य नहीं .गद्य-साहित्य की एक विधा है...व्याख्या करने व समझने या किसी के मान लेने से उसे काव्य-रचना थोड़े ही मान लिया जायगा...
---निश्चय ही प्रत्येक व्यक्ति के अपने भाव होते हैं ..वह किसी भी विधा में रख सकता है...परन्तु उस विधा के साहित्यिक-गुण उस रचना में होने चाहिए जिसके अंतर्गत वह रचना रख रहा है.........
---मैं तो सभी की रचनाओं की इसी तरह व्याख्या करता हूँ ....जैसी अच्छी या अन्यथा ..मुझे लगती है कह देता हूँ ...
चलें फिर नवल राहों पर, बसायें प्रीति के बंधन ||
सुन्दर प्रेरणापूर्ण प्रस्तुति.
आभार ..राकेश जी....
एक टिप्पणी भेजें