कुटिल आसुरी दुष्ट-भाव मय नारी प्रतिकृति ।
बनी पूतना रूप, घूमती ग्राम नगर नित ।
लीलाधर की लीला, जो पहुंची कान्हा घर ।
लिये रूपसी भाव, वेष वह ममता का धर ।
आंचल रूपी द्वेष-द्वन्द्व का भाव वह जटिल ।
चूस लिया कान्हा ने, सारा भाव वह कुटिल ॥
10 टिप्पणियां:
अच्छा लगा..पहली पंक्ति में प्रतिक्रति का आर्थ समझ नहीं पा रहा था ..थोडा धयन से बार बार पढ़ा तो समझ में आया..
सुन्दर वर्णन
बहुत ही सुन्दर शब्द-संरचना।
धन्यवाद पांडे जी व आशुतोष....
यह प्रतिकृति होना चाहिए था....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी.
पूतना का भाव 'कुटिलता' के रूप में
दर्शित करना अच्छा लगा.
सुंदर छंद।
बहुत सुन्दर रचना !अपने प्रदेश की पूतना से उस मंद बुद्धि बालक को बचाना जो पद -यात्रा पर है .पूतना भाव लिए कई उर्वशियाँ राजनीति में भी हैं .
धन्यवाद देवेन्द्र जी . राकेश जी व वीरू भाए ---आप उस बालक को मंद बुद्धि क्यों कहना चाह रहे हैं.....
सुन्दर शब्द संयोजन,सुन्दर भाव,सुन्दर छंद....
धन्यवाद झंझट जी.....
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