....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
------स्त्री-पुरुष विमर्श का इतिहास मूलतः मानव के सामाजिक विकास का इतिहास है , जो आदिमानव से प्रारम्भ होता है |यहाँ पर हम इसे निम्न शीर्षकों में --काल खंडानुसार - 7 खण्डों में वर्णन करेंगे ....
--भाग १-- आदि मानव -स्त्री-पुरुष ...
--भाग २- सहजीवन व श्रम-विभाजन..
--भाग ३ - स्त्री सत्तात्मक समाज..
--भाग ४ - पुरुष सत्तात्मक समाज ...
--भाग ५ - पुरुष अधिकारत्व समाज...
--भग ६ - आत्म-विस्मृति का युग
---भाग -७- नव-जागरण काल ....
भाग १-आदिमानव -स्त्री-पुरुष
------एक पुरानी कहानी है जो उस समय की गाथा है जब मानव ने ज्ञान का फल नहीं चखा था, वह किसी बाटिका में भी नहीं रहता था , वनचारी था , एकाकी घुमंतू, जानवरों की भांति गुफा मानव |
झरने में झुक कर जल पीतेहुए उस आदिमानव ने सामने की पहाडी पर किसी आकृति को चलते हुए देखा | वह आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सका | अब तक वह स्वयं को एकाकी ही समझता था | उसने जल्दी जल्दी झरना पार किया और उस आकृति का पीछा करने लगा |वह आकृति पहाडी के पीछे जाकर लुप्त होगई | वहां एक गुफा देखकर वह उसमें प्रवेश कर गया| उसने उसी आकृति को झुक कर कुछ खाते हुए देखा | आहट होते ही आकृति तेजी से हाथ का हथौड़ा लेकर पलटी और अपनी जैसी ही आकृति को देखकर आश्चर्य चकित रह गयी | आने वाला शत्रु नहीं है यह आश्वस्त होते ही उसने आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता का स्वर निकाला | और कहा---
" मुझे चौंका दिया ,यदि मैं अभी वार कर देता तो !"
" कोई बात नहीं , मुझे बचना आता है ", उसने अपना हथौड़ा दिखाते हुए कहा |
उसने उसे खाने को फल दिए | आगंतुक ने उसे अपनी गुफा में आमंत्रित किया और अपने एकत्रित फल खाने को दिए और उसकी गुफा में ही रहने के लिए आमंत्रित किया | उसने आगंतुक को ध्यान से देखा और तौला , आगंतुक डील-डौल में उससे अधिक था , उसने उसे छूकर देखा; उसकी मांस-पेशियाँ भी अधिक स्पष्ट व शरीर उससे अधिक सुगठित था, उसका हथौड़ा भी अधिक बड़ा व भारी था | उसकी गुफा भी अधिक बड़ी, आरामदेह व सुरक्षित थी , फल भी अधिक मात्रा में एकत्रित व ताजा थे जबकि उसके फल कम थे एवं हिंसक जानवरों के कारण अधिक एकत्र भी नहीं हो पाते थे | वह अपने फल व हथौड़ा उठाकर आगंतुक की गुफा में चली आयी |
और यही वह समय था जब स्त्री ने स्वेच्छा से प्रथम बार ..पुरुष से सहजीवन व उसका संरक्षण स्वीकार किया |
-----------यह शायद वह समय था जब जल से जीव के विकास का स्थलीय जीव में व तदुपरांत मानव के रूप में विकास होरहा होगा... भारतीय भूभाग मानव का प्रथम पालना बना , अर्थात प्रथम मानव उत्पत्ति इस भूखंड पर ही हुई | पृथ्वी का समस्त भूभाग पेंजिया, गोंडवाना लेंड व लारेंशिया में विभाजित हुआ | यह उत्तरी महा भूभाग -( पेंजिया के विभाजन के बाद आदि काल में पृथ्वी - बीचो- बीच में टेथिस महा सागर था और उत्तर व दक्षिण में महा भूखंडों से निर्मित थी)- शायद पामीर का पठार , तिब्बत, उत्तरी भारतीय भूखंड, ईरान, इराक अरब ....आदि का सम्मिलित भू भाग...जम्बू द्वीप या गोंडबाना लेंड रहा होगा...भारतीय भूभाग इस भूखंड के मध्य में स्थित था, शायद इसीलिये आज भी मध्य भारत का भूभाग गोंडवाना लेण्ड के नाम से जाना जाता है | क्योंकि पृथ्वी के भूभाग बार बार अपनी स्थिति बदल रहे थे , टूट व बन रहे थे अतः नए नए धरती स्थलों का निर्माण होने से ये भूभाग पूर्व, पश्चिम, उत्तर दक्षिण की ओर आते जाते रहे | भारतीय भूखंड उत्तर की ओर खिसक कर जब एक प्रायद्वीप की भांति स्थिर हुआ तो वह जल से चारों ओर व पामीर के पठार से उत्तर की ओर घिरा होने से जीवन के लिए सर्व-उपयुक्त स्थल भूभाग रहा होगा अतःयह भूखंड मानव का प्रथम पालना बना | ( हाँ यह भी हो सकता है कि यही परिस्थितियाँ अन्य स्थानों पर भी रही हों एवं सभी जगह एक समय में ही जीव की उत्पत्ति व मानव तक विकास हुआ हो तत्पश्चात विभिन्न प्रकार से आवागमन व मिश्रण होता रहा हो | ) भारतीय भूखंड से आदि-मानव का उत्तर-पश्चिम की ओर( यूरोप व भूमध्य सागर के उत्तर के देश) प्रयाण करना प्रारम्भ हुआ | पृथ्वी के दक्षिणी महा भूभाग के उत्तर की ओर खिसकने पर द अमेरिकी, अफ्रीकी भूखंडों का निर्माण व भारतीय प्रायद्वीप का उत्तरी भूखंड से मिलकर सम्पूर्ण -भारत भूखंड बनने पर हिमालय आदिउत्तरी पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति हुई जिससे जीवन की उत्पत्ति व विकास के लिए के लिए और अधिक अनुकूल परिस्थितियाँ बनीं एवं कालान्तर में ...भारतीय मानव का उत्तर भारत से विन्ध्य पार दक्षिण भारत की ओर अपनी वर्त्तमान संस्कृति सहित क्रमिक प्रयाण प्रारम्भ हुआ |
------------क्रमश : भाग २- सहजीवन....
--भाग २- सहजीवन व श्रम-विभाजन..
--भाग ३ - स्त्री सत्तात्मक समाज..
--भाग ४ - पुरुष सत्तात्मक समाज ...
--भाग ५ - पुरुष अधिकारत्व समाज...
--भग ६ - आत्म-विस्मृति का युग
---भाग -७- नव-जागरण काल ....
भाग १-आदिमानव -स्त्री-पुरुष
------एक पुरानी कहानी है जो उस समय की गाथा है जब मानव ने ज्ञान का फल नहीं चखा था, वह किसी बाटिका में भी नहीं रहता था , वनचारी था , एकाकी घुमंतू, जानवरों की भांति गुफा मानव |
झरने में झुक कर जल पीतेहुए उस आदिमानव ने सामने की पहाडी पर किसी आकृति को चलते हुए देखा | वह आश्चर्यचकित हुए बिना न रह सका | अब तक वह स्वयं को एकाकी ही समझता था | उसने जल्दी जल्दी झरना पार किया और उस आकृति का पीछा करने लगा |वह आकृति पहाडी के पीछे जाकर लुप्त होगई | वहां एक गुफा देखकर वह उसमें प्रवेश कर गया| उसने उसी आकृति को झुक कर कुछ खाते हुए देखा | आहट होते ही आकृति तेजी से हाथ का हथौड़ा लेकर पलटी और अपनी जैसी ही आकृति को देखकर आश्चर्य चकित रह गयी | आने वाला शत्रु नहीं है यह आश्वस्त होते ही उसने आश्चर्य मिश्रित प्रसन्नता का स्वर निकाला | और कहा---
" मुझे चौंका दिया ,यदि मैं अभी वार कर देता तो !"
" कोई बात नहीं , मुझे बचना आता है ", उसने अपना हथौड़ा दिखाते हुए कहा |
उसने उसे खाने को फल दिए | आगंतुक ने उसे अपनी गुफा में आमंत्रित किया और अपने एकत्रित फल खाने को दिए और उसकी गुफा में ही रहने के लिए आमंत्रित किया | उसने आगंतुक को ध्यान से देखा और तौला , आगंतुक डील-डौल में उससे अधिक था , उसने उसे छूकर देखा; उसकी मांस-पेशियाँ भी अधिक स्पष्ट व शरीर उससे अधिक सुगठित था, उसका हथौड़ा भी अधिक बड़ा व भारी था | उसकी गुफा भी अधिक बड़ी, आरामदेह व सुरक्षित थी , फल भी अधिक मात्रा में एकत्रित व ताजा थे जबकि उसके फल कम थे एवं हिंसक जानवरों के कारण अधिक एकत्र भी नहीं हो पाते थे | वह अपने फल व हथौड़ा उठाकर आगंतुक की गुफा में चली आयी |
और यही वह समय था जब स्त्री ने स्वेच्छा से प्रथम बार ..पुरुष से सहजीवन व उसका संरक्षण स्वीकार किया |
-----------यह शायद वह समय था जब जल से जीव के विकास का स्थलीय जीव में व तदुपरांत मानव के रूप में विकास होरहा होगा... भारतीय भूभाग मानव का प्रथम पालना बना , अर्थात प्रथम मानव उत्पत्ति इस भूखंड पर ही हुई | पृथ्वी का समस्त भूभाग पेंजिया, गोंडवाना लेंड व लारेंशिया में विभाजित हुआ | यह उत्तरी महा भूभाग -( पेंजिया के विभाजन के बाद आदि काल में पृथ्वी - बीचो- बीच में टेथिस महा सागर था और उत्तर व दक्षिण में महा भूखंडों से निर्मित थी)- शायद पामीर का पठार , तिब्बत, उत्तरी भारतीय भूखंड, ईरान, इराक अरब ....आदि का सम्मिलित भू भाग...जम्बू द्वीप या गोंडबाना लेंड रहा होगा...भारतीय भूभाग इस भूखंड के मध्य में स्थित था, शायद इसीलिये आज भी मध्य भारत का भूभाग गोंडवाना लेण्ड के नाम से जाना जाता है | क्योंकि पृथ्वी के भूभाग बार बार अपनी स्थिति बदल रहे थे , टूट व बन रहे थे अतः नए नए धरती स्थलों का निर्माण होने से ये भूभाग पूर्व, पश्चिम, उत्तर दक्षिण की ओर आते जाते रहे | भारतीय भूखंड उत्तर की ओर खिसक कर जब एक प्रायद्वीप की भांति स्थिर हुआ तो वह जल से चारों ओर व पामीर के पठार से उत्तर की ओर घिरा होने से जीवन के लिए सर्व-उपयुक्त स्थल भूभाग रहा होगा अतःयह भूखंड मानव का प्रथम पालना बना | ( हाँ यह भी हो सकता है कि यही परिस्थितियाँ अन्य स्थानों पर भी रही हों एवं सभी जगह एक समय में ही जीव की उत्पत्ति व मानव तक विकास हुआ हो तत्पश्चात विभिन्न प्रकार से आवागमन व मिश्रण होता रहा हो | ) भारतीय भूखंड से आदि-मानव का उत्तर-पश्चिम की ओर( यूरोप व भूमध्य सागर के उत्तर के देश) प्रयाण करना प्रारम्भ हुआ | पृथ्वी के दक्षिणी महा भूभाग के उत्तर की ओर खिसकने पर द अमेरिकी, अफ्रीकी भूखंडों का निर्माण व भारतीय प्रायद्वीप का उत्तरी भूखंड से मिलकर सम्पूर्ण -भारत भूखंड बनने पर हिमालय आदिउत्तरी पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति हुई जिससे जीवन की उत्पत्ति व विकास के लिए के लिए और अधिक अनुकूल परिस्थितियाँ बनीं एवं कालान्तर में ...भारतीय मानव का उत्तर भारत से विन्ध्य पार दक्षिण भारत की ओर अपनी वर्त्तमान संस्कृति सहित क्रमिक प्रयाण प्रारम्भ हुआ |
------------क्रमश : भाग २- सहजीवन....
1 टिप्पणी:
रोचक श्रंखला।
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