....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सृष्टि महाकाव्य-(ईषत- इच्छा या बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर )-- -------वस्तुत सृष्टि हर पल, हर कण कण में होती रहती है,यह एक सतत प्रक्रिया है , जो ब्रह्म संकल्प-(ज्ञान--ब्रह्मा को ब्रह्म द्वारा ज्ञान) ,ब्रह्म इच्छा-(एकोहं बहुस्याम ... इच्छा) व सृष्टि (क्रिया- ब्रह्मा रचयिता ) की क्रमिक प्रक्रिया है --किसी भी पल प्रत्येक कण कण में चलती रहती है, जिससे स्रिष्टि व प्रत्येक पदार्थ की उत्पत्ति होती है । प्रत्येक पदार्थ नाश(लय-प्रलय- शिव ) की और प्रतिपल उन्मुख है।
(यह महाकाव्य अगीत विधामें आधुनिक विज्ञान ,दर्शन व वैदिक-विज्ञान के समन्वयात्मक विषय पर सर्वप्रथम रचितमहाकाव्य है , इसमें -सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड व जीवन और मानव की उत्पत्ति के गूढ़तम विषयको सरल भाषा मेंव्याख्यायित कियागया है | इस .महाकाव्य को हिन्दी साहित्य की अतुकांत कविता की 'अगीत-विधा' के छंद - 'लयबद्धषटपदी अगीत छंद' -में निवद्ध किया गया है जो एकादश सर्गों में वर्णित है... ... रचयिता --डा श्याम गुप्त ... )
सृष्टि महाकाव्य ---सप्तम सर्ग --ब्रह्मा प्रादुर्भाव एवं स्मरण खंड ......
सृष्टि महाकाव्य-(ईषत- इच्छा या बिगबेंग--एक अनुत्तरित उत्तर )-- -------वस्तुत सृष्टि हर पल, हर कण कण में होती रहती है,यह एक सतत प्रक्रिया है , जो ब्रह्म संकल्प-(ज्ञान--ब्रह्मा को ब्रह्म द्वारा ज्ञान) ,ब्रह्म इच्छा-(एकोहं बहुस्याम ... इच्छा) व सृष्टि (क्रिया- ब्रह्मा रचयिता ) की क्रमिक प्रक्रिया है --किसी भी पल प्रत्येक कण कण में चलती रहती है, जिससे स्रिष्टि व प्रत्येक पदार्थ की उत्पत्ति होती है । प्रत्येक पदार्थ नाश(लय-प्रलय- शिव ) की और प्रतिपल उन्मुख है।
(यह महाकाव्य अगीत विधामें आधुनिक विज्ञान ,दर्शन व वैदिक-विज्ञान के समन्वयात्मक विषय पर सर्वप्रथम रचितमहाकाव्य है , इसमें -सृष्टि की उत्पत्ति, ब्रह्माण्ड व जीवन और मानव की उत्पत्ति के गूढ़तम विषयको सरल भाषा मेंव्याख्यायित कियागया है | इस .महाकाव्य को हिन्दी साहित्य की अतुकांत कविता की 'अगीत-विधा' के छंद - 'लयबद्धषटपदी अगीत छंद' -में निवद्ध किया गया है जो एकादश सर्गों में वर्णित है... ... रचयिता --डा श्याम गुप्त ... )
पिछले सर्ग में मूल तत्व पंचौदन अजः से मूल अंड ,
ब्रह्मांड (असंख्य ब्रह्मांडों) के बनने की प्रक्रिया का वर्णन किया गया
था| प्रस्तुत सप्तम सर्ग में --
उस अंड से आगे सृष्टि कैसे होगी यह ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ एवं उस ज्ञान
प्राप्ति तक सृष्टि -रचाने की प्रक्रिया क्यों व कैसे, कबतक बंद रही , फिर
कैसे प्रारम्भ हुई इस पर वैदिक व आधुनिक मत की व्याख्या प्रस्तुत की
जारही है-----कुल ११ छंद ...
१-
रहा साल भर१ अंड में, ब्रह्मा,
ऊपर नीचे आदि मध्य में ;
बिखरे तत्व मिला,रचने के-
सृष्टि,यत्न थे सारे निष्फल |
आदि-शक्ति की सु प्रेरणा से,
तपः किया,प्रार्थना विष्णु की ||
२-
महाउदधि, जलरूप अयन२ में,
सृष्टि की इच्छा में रत जो;
विष्णु नाम से रहा शयन रत,
शेष ब्रह्म३ पर वह नारायण |
नाभि-केंद्र से नारायण के,
स्वर्ण-नाल पर खिला जलज-दल||
३-
ब्रह्मा, धर कर रूप चतुर्मुख४ ,
काल-स्वरुप उस महा विष्णु का;
स्वर्ण कमल पर हुआ अवतरित |
और तभी से ब्रह्मा का दिन,
हुआ प्रभावी और समय की,
नियमन-गणना हुई तभी से ||
४-
आदि रचयिता, काल नियंता,
सृजन हेतु उस स्वर्ण-नाल पर;
रहा घूमता, ऊपर-नीचे -
कई युगों तक५ , यही सोचता;
कैसे रचूँ सृष्टि यह सारी,
नहीं स्मरण था कुछ भी तो ||
५-
नव विज्ञान है यह समझाता,
हाइड्रोजन-हीलियम बनने की;
प्रक्रिया के बाद, सृष्टि-क्रम ,
स्थिर रहा था कई युगों६ तक |
और युगों के बाद ही पुनः ,
सृष्टि-सृजन प्रारम्भ हुआ था ||
६-
यह ब्रह्माण्ड बस फ़ैल रहा था,
और पुनः जब शीतल७ होकर ;
इलेक्ट्रोन एवं केन्द्रक के,
मध्य हुआ क्षीण प्रतिकर्षण |
आपस में जुड़कर फिर ये कण ,
रचने लगे विविध कण-प्रतिकण||
७-
वैदिक दर्शन यह कहता है,
ब्रह्मा को विस्मृत था सब कुछ |
तप, प्रभु-इच्छा,आद्य-शक्ति के,
कृपा-भाव से ही ब्रह्मा को;
हुआ स्मरण ,पुरा सृष्टि-क्रम;८
सृष्टि पुनः आरम्भ हुई तब ||
८-
तप, आराधना-महा-विष्णु की,
ब्रह्मा ने की, आर्त भाव से |
वह प्रसविनी-शक्ति९विष्णु की-
सरस्वती, वीणा-ध्वनि करती,
प्रकट हुई, स्वर-स्फुरणा१० से,
सृष्टि-ज्ञान ब्रहमा ने पाया ||
९-
प्रभ-इच्छा, माँ की स्फुरणा,
और शब्द के ज्ञान के बिना;
भला एक कण भर भी जग में,
ज्ञान किसे और कब होता है|
बिना ज्ञान ब्रह्मा भी कैसे,
कहाँ एक कण भी रच सकता ||
१०-
स्तुति,अर्चन और वन्दना ,
माँ वाणी की,की ब्रह्मा ने |
आदि वेद-माँ , गायत्री का-
धरकर रूप, सरस्वती माता-
समा गईं वे ज्ञान रूप में,
ब्रह्मा के मुख रूप ,ह्रदय में ||
११-
वाणी के उन ज्ञान स्वरों से,
विद्या रासायनिक संयोग की;
बिखरे कण नियमित करने की;
सृष्टि-सृजन की पुरा प्रक्रिया११
का स्मरण हुआ ब्रह्मा को,
रचने लगे सृष्टि हर्षित मन || --------क्रमश:--आगे -अष्ठम सर्ग......
{कुंजिका--- १=ब्रह्मा एक वर्ष ( ब्रह्मा का --युगों मानव वर्ष तक - अंड के परि-पक्व होने का समय ) अंड में घूमता रहा और अपना उत्पत्ति का अभिप्रायः नहीं पता था |; २= नार -जल, अयन-निवास---जल (अंतरिक्ष ) में स्थित नारायण विष्णु ; ३= सृष्टि के मूल अंड रचना के पश्चात शेष ऊर्जा , जिसे शेषनाग , शेष-ब्रह्म कहा गया है जो नारायण के साथ सदैव उपस्थित है ; ४= चार-मुखों( चतुर्दिक ज्ञान सहित ) वाला ब्रह्मा का सृष्टा रूप में आविर्भाव ; ५ व ६ = ब्रह्मा को युगों तक अपने अन्दर स्थित सृष्टि ज्ञान का स्मरण नहीं होरहा था अतः सृष्टि-रचना प्रक्रिया युगों तक रुकी रही--- आधुनिक विज्ञान के अनुसार एनीहिलेशन अवस्था के पश्चात ( बिगबेंग के प्रथम तीन मिनट पश्चात) अति-प्रवल ताप पर हीलियम-हाइड्रोजन बनकर सारे इलेक्ट्रोंस समाप्त होगये थे अतः परमाणु व परमाणु-पूर्व कणों के न्यूक्लियस से परमाणु नहीं बन पारहे थे अतः युगों तक सृष्टि प्रक्रिया रुकी रही थी |; ७=आधुनिक विज्ञान के अनुसार युगों बाद अति-शीतल ताप होने पर नवीन इलेक्ट्रोंस बनना प्रारम्भ हुआ वे केन्द्रक (प्रोटोन+न्यूत्रों ) के चारों और घूमने लगे व पदार्थ बनने की प्रक्रिया पुनः प्रारम्भ हुई |; ८ व ११ =प्रत्येक कल्प में महाप्रलय के बाद पुनः पुनः सृष्टि -सृजन की क्रमिक प्रक्रिया ; ९=आदि-ब्रह्म , विष्णु की आदि कार्यकारी शक्ति , योगमाया, मूल ऊर्जा का उत्प्रेरक रूप ; १०= आदि-नाद स्वर-आदि-वाणी-वीणा स्वर द्वारा सृष्टि ज्ञान का पुनः स्मरण तत्पश्चात ब्रह्मा सृष्टि सृजन कर्म में रत हुए }
१-
रहा साल भर१ अंड में, ब्रह्मा,
ऊपर नीचे आदि मध्य में ;
बिखरे तत्व मिला,रचने के-
सृष्टि,यत्न थे सारे निष्फल |
आदि-शक्ति की सु प्रेरणा से,
तपः किया,प्रार्थना विष्णु की ||
२-
महाउदधि, जलरूप अयन२ में,
सृष्टि की इच्छा में रत जो;
विष्णु नाम से रहा शयन रत,
शेष ब्रह्म३ पर वह नारायण |
नाभि-केंद्र से नारायण के,
स्वर्ण-नाल पर खिला जलज-दल||
३-
ब्रह्मा, धर कर रूप चतुर्मुख४ ,
काल-स्वरुप उस महा विष्णु का;
स्वर्ण कमल पर हुआ अवतरित |
और तभी से ब्रह्मा का दिन,
हुआ प्रभावी और समय की,
नियमन-गणना हुई तभी से ||
४-
आदि रचयिता, काल नियंता,
सृजन हेतु उस स्वर्ण-नाल पर;
रहा घूमता, ऊपर-नीचे -
कई युगों तक५ , यही सोचता;
कैसे रचूँ सृष्टि यह सारी,
नहीं स्मरण था कुछ भी तो ||
५-
नव विज्ञान है यह समझाता,
हाइड्रोजन-हीलियम बनने की;
प्रक्रिया के बाद, सृष्टि-क्रम ,
स्थिर रहा था कई युगों६ तक |
और युगों के बाद ही पुनः ,
सृष्टि-सृजन प्रारम्भ हुआ था ||
६-
यह ब्रह्माण्ड बस फ़ैल रहा था,
और पुनः जब शीतल७ होकर ;
इलेक्ट्रोन एवं केन्द्रक के,
मध्य हुआ क्षीण प्रतिकर्षण |
आपस में जुड़कर फिर ये कण ,
रचने लगे विविध कण-प्रतिकण||
७-
वैदिक दर्शन यह कहता है,
ब्रह्मा को विस्मृत था सब कुछ |
तप, प्रभु-इच्छा,आद्य-शक्ति के,
कृपा-भाव से ही ब्रह्मा को;
हुआ स्मरण ,पुरा सृष्टि-क्रम;८
सृष्टि पुनः आरम्भ हुई तब ||
८-
तप, आराधना-महा-विष्णु की,
ब्रह्मा ने की, आर्त भाव से |
वह प्रसविनी-शक्ति९विष्णु की-
सरस्वती, वीणा-ध्वनि करती,
प्रकट हुई, स्वर-स्फुरणा१० से,
सृष्टि-ज्ञान ब्रहमा ने पाया ||
९-
प्रभ-इच्छा, माँ की स्फुरणा,
और शब्द के ज्ञान के बिना;
भला एक कण भर भी जग में,
ज्ञान किसे और कब होता है|
बिना ज्ञान ब्रह्मा भी कैसे,
कहाँ एक कण भी रच सकता ||
१०-
स्तुति,अर्चन और वन्दना ,
माँ वाणी की,की ब्रह्मा ने |
आदि वेद-माँ , गायत्री का-
धरकर रूप, सरस्वती माता-
समा गईं वे ज्ञान रूप में,
ब्रह्मा के मुख रूप ,ह्रदय में ||
११-
वाणी के उन ज्ञान स्वरों से,
विद्या रासायनिक संयोग की;
बिखरे कण नियमित करने की;
सृष्टि-सृजन की पुरा प्रक्रिया११
का स्मरण हुआ ब्रह्मा को,
रचने लगे सृष्टि हर्षित मन || --------क्रमश:--आगे -अष्ठम सर्ग......
{कुंजिका--- १=ब्रह्मा एक वर्ष ( ब्रह्मा का --युगों मानव वर्ष तक - अंड के परि-पक्व होने का समय ) अंड में घूमता रहा और अपना उत्पत्ति का अभिप्रायः नहीं पता था |; २= नार -जल, अयन-निवास---जल (अंतरिक्ष ) में स्थित नारायण विष्णु ; ३= सृष्टि के मूल अंड रचना के पश्चात शेष ऊर्जा , जिसे शेषनाग , शेष-ब्रह्म कहा गया है जो नारायण के साथ सदैव उपस्थित है ; ४= चार-मुखों( चतुर्दिक ज्ञान सहित ) वाला ब्रह्मा का सृष्टा रूप में आविर्भाव ; ५ व ६ = ब्रह्मा को युगों तक अपने अन्दर स्थित सृष्टि ज्ञान का स्मरण नहीं होरहा था अतः सृष्टि-रचना प्रक्रिया युगों तक रुकी रही--- आधुनिक विज्ञान के अनुसार एनीहिलेशन अवस्था के पश्चात ( बिगबेंग के प्रथम तीन मिनट पश्चात) अति-प्रवल ताप पर हीलियम-हाइड्रोजन बनकर सारे इलेक्ट्रोंस समाप्त होगये थे अतः परमाणु व परमाणु-पूर्व कणों के न्यूक्लियस से परमाणु नहीं बन पारहे थे अतः युगों तक सृष्टि प्रक्रिया रुकी रही थी |; ७=आधुनिक विज्ञान के अनुसार युगों बाद अति-शीतल ताप होने पर नवीन इलेक्ट्रोंस बनना प्रारम्भ हुआ वे केन्द्रक (प्रोटोन+न्यूत्रों ) के चारों और घूमने लगे व पदार्थ बनने की प्रक्रिया पुनः प्रारम्भ हुई |; ८ व ११ =प्रत्येक कल्प में महाप्रलय के बाद पुनः पुनः सृष्टि -सृजन की क्रमिक प्रक्रिया ; ९=आदि-ब्रह्म , विष्णु की आदि कार्यकारी शक्ति , योगमाया, मूल ऊर्जा का उत्प्रेरक रूप ; १०= आदि-नाद स्वर-आदि-वाणी-वीणा स्वर द्वारा सृष्टि ज्ञान का पुनः स्मरण तत्पश्चात ब्रह्मा सृष्टि सृजन कर्म में रत हुए }
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