....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सोने की लंका में, सीता माँ बंदी है ,
रघुबर के नाम की भी, सुअना पावंदी है |
लंका तो सोने की, सोना ही सोना है ,
सोना ही खाना-पीनी, सोन बिछौना है |
सोने के कपडे-गहने,सोने की बँगला-गाड़ी,
सोने सा मन रखने पर, सुअना पावंदी है || सोने की लंका में ....
सोने के मृग के पीछे क्या गए राम जी,
लक्ष्मण सी भक्ति पर भीशंका का घेरा है |
संस्कृति की सीता को, हर लिया रावण ने ,
लक्ष्मण की रेखा ऊपर, सोने की रेखा है ||
अपना ही चीर हरण, द्रौपदि को भाया है ,
कृष्ण लाचार खड़े, सोने की माया है |
वंशी के स्वर में भी, सुर-लय त्रिभंगी है ,
रघुवर के नाम की भी रे नर ! पाबंदी है || ...सोने की लंका में ...
अब न विभीषण कोई, रावण का साथ छोड़े ,
अब तो भरत जी रहते, रघुपति से मुख मोडे |
कान्हा उदास घूमे, साथी न संगी हैं ,
माखन से कौन रीझे, ग्वाले बहुधंधी हैं ||
सोने के महल-अटारी, सोने के कारोबारी,
सोने के पिंजरे में मानवता बंदी है |
हीरामन हर्षित चहके, सोने के दाना पानी ,
पाने की आशा में, रसना आनंदी है || ...सोने की लंका में...
कंस खूब फूले-फले, रावण हो ध्वंस् कैसे,
रघुवर अकेले हैं लंका में पहुंचें कैसे |
नील और नल के छोड़े पत्थर न तरते अब ,
नाम की न महिमा रही सीताजी छूटें कैसे ||
अब तो माँ सीता तू ही, आशा कीज्योति बाकी ,
जब जब हैं देव हारे, माँ तू ही तारती |
खप्पर-त्रिशूल लेके बन जा रन चंडी है ,
भक्त माँ पुकारें , राम की भी रजामंदी है || --- सोने की लंका में ..||
रघुबर के नाम की भी, सुअना पावंदी है |
लंका तो सोने की, सोना ही सोना है ,
सोना ही खाना-पीनी, सोन बिछौना है |
सोने के कपडे-गहने,सोने की बँगला-गाड़ी,
सोने सा मन रखने पर, सुअना पावंदी है || सोने की लंका में ....
सोने के मृग के पीछे क्या गए राम जी,
लक्ष्मण सी भक्ति पर भीशंका का घेरा है |
संस्कृति की सीता को, हर लिया रावण ने ,
लक्ष्मण की रेखा ऊपर, सोने की रेखा है ||
अपना ही चीर हरण, द्रौपदि को भाया है ,
कृष्ण लाचार खड़े, सोने की माया है |
वंशी के स्वर में भी, सुर-लय त्रिभंगी है ,
रघुवर के नाम की भी रे नर ! पाबंदी है || ...सोने की लंका में ...
अब न विभीषण कोई, रावण का साथ छोड़े ,
अब तो भरत जी रहते, रघुपति से मुख मोडे |
कान्हा उदास घूमे, साथी न संगी हैं ,
माखन से कौन रीझे, ग्वाले बहुधंधी हैं ||
सोने के महल-अटारी, सोने के कारोबारी,
सोने के पिंजरे में मानवता बंदी है |
हीरामन हर्षित चहके, सोने के दाना पानी ,
पाने की आशा में, रसना आनंदी है || ...सोने की लंका में...
कंस खूब फूले-फले, रावण हो ध्वंस् कैसे,
रघुवर अकेले हैं लंका में पहुंचें कैसे |
नील और नल के छोड़े पत्थर न तरते अब ,
नाम की न महिमा रही सीताजी छूटें कैसे ||
अब तो माँ सीता तू ही, आशा कीज्योति बाकी ,
जब जब हैं देव हारे, माँ तू ही तारती |
खप्पर-त्रिशूल लेके बन जा रन चंडी है ,
भक्त माँ पुकारें , राम की भी रजामंदी है || --- सोने की लंका में ..||
2 टिप्पणियां:
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ३० /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका स्वागत है |
dhanyvaad raajesh kumari ji
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