....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
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पेलेशियो इम्पीरियल व्हाइट.. में कृष्ण |
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जब अन्य सभी उचित वस्त्रों में हैं तो युवा गायिका को अधनंगा होने की क्या आवश्यकता है |
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अपने ही कर्मों से लाचार नारी |
प्रायः साथी संगियों ब्लोगरों आदि द्वारा छींटाकसी से कि क्यों में
छिद्रान्वेषण में समय बर्बाद करता हूँ , नकारात्मकता को त्यागो.. कुछ पोजीटिव लिखो ..आदि आदि से अपने सहज साहित्यिक कर्म में लग जाता हूँ | परन्तु नकारात्मकता पुनः पुनः आड़े आती है | जब भी समाचार पत्रों अदि में व्यर्थ के कृतित्व आदि को महिमा मंडित देखता हूँ या किसी भी भारतीय विद्वान् द्वारा लिखित साहित्यिक कृति को पढ़ने लगता हूँ तो वह प्रवृत्ति सर उठा लेती है |
अब देखिये
हम भारतीय अपनी अंग्रेज़ी परस्त गुलामी से कभी उबरना ही नहीं चाहते, हिन्दी साहित्य में भी कथा, कहानी, उपन्यास, कविता यहाँ तक कि..
हिन्दुस्तान, संस्कृत व संस्कृति की परिभाषाएं भी विदेशी साहित्य में ढूँढते हैं |
हम प्रायः प्रारंभ करते हैं कि..इस सम्बन्ध में योरोपीय इतिहासकार
फिशर ने कहा है कि....इतिहास के लिए यह ग्रीक शब्द हिस्टीरिया का अंग्रेजीकरण है ..
.थामस कार्लाइल ने यह कहा है..
.रिचर्ड जान ग्रीन ने यह....
ई एम् फ़ॉस्टर ने कथा की परिभाषा इस प्रकार की है ....ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के सम्पादक
डा मरे ने कविता के बारे में कहा है कि....
डा ई एस बेकर ने उपन्यास को ...यह माना है, अर्नाल्ड केटिल ने, जे मुलर ने यह कहा... ....अदि आदि |
तत्पश्चात हम यह कहते हैं कि... भारत में यह एसे कहा है....
तिलक ने यह कहा ...
वेदों में भी यह है ..
गोबिंद जी ने यह..
.रामचंद्र शुक्ल, आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी यह मानते हैं आदि आदि | अर्थात योरोपीय लेखकों की मूल भारत विरोधी भावना को ही हम आज भी प्रश्रय दिए जा रहे हैं |
आज़ादी के 60 वर्ष बाद भी हम
‘पेलेशियो इम्पीरियल व्हाईट‘ पर थिरक रहे हैं
...देखिये चित्र में इस विदेशी उल-जुलूल भाव भंगिमाओं से , थिरकन की कृष्ण लीला से ये बच्चे क्या सन्देश देना चाहते हैं समाज, देश, बच्चों को...या स्वयं श्री कृष्ण को ........एक तरफ जहां ब्लॉग पर नारी सशक्तीकरण की कलई खोल कर लड़कियों-महिलाओं को चेताये जाने का शुभ कार्य किया जारहा है तो वहीं जवानी दीवानी..बलम पिचकारी ...आदि गीतों का समां बांधा जारहा है .....जब सारे श्रोता, अधिकारी, कर्मचारी, जनता मर्यादापूर्ण वस्त्रों में नज़र आते हैं तो गायिका को अर्ध नग्न होकर गीत –गाने गाने की क्या आवश्यकता होरही है ?...आखिर क्या सन्देश देना चाहती हैं ये गायिकाएं...आयोजक, समाज, देश व बच्चों को .....
... यह देख -पढ़ कर यह सब फिर फिर लिखना कहना पड़ ही जाता है........ मैं क्या करूँ.....|
2 टिप्पणियां:
जिसका पेड़ बोया जायेगा, वही बाहर आयेगा।
हाँ , यही तो....
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