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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 22 जून 2013

केदार नाथ त्रासदी ..डा श्याम गुप्त.....

                                     ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...



                       
           हमें व हमारे मीडिया को अपने देश एवं देश की हर व्यवस्था में कमी देखने की आदत सी होगई है | पढ़े लिखे जन भी प्रायः अन्य अमेरिका आदि जैसे देशों से तुलना करके अपने देश की कमी निकालते रहते हैं| अब इतने बड़े देश में प्रत्येक प्रवंधन में समय तो लगता ही है, कमियां भी रहेंगी ही परन्तु उन्हें गुणात्मक सोच से देखा जाना चाहिए |

          अभी हाल में ही अमेरिका में आयी एक बाढ़ में आपदा प्रबंधन द्वारा पूरी ताकत झोंक दी गयी थी और सिर्फ तीन लोगों को बचाने में सफलता की कहानी उनके मीडिया पर बार बार दिखाई जाती रही ..भारतीय मीडिया ने भी उनके इस तथाकथित शाबासी वाले कार्य की बार बार रिपोर्टिंग की गोया कोई बहुत बड़ा कार्य किया जा रहा हो ...परन्तु अपने यहाँ की इतनी बड़ी त्रासदी की आपदा प्रबंधन में सफलताओं की कहानियीं की कथाओं में भी कमियाँ ही कमियाँ प्रदर्शित की जाती रहीं हैं | यदि सेना ने कार्य संभाला हुआ है तो प्रदेश सरकार ने क्या किया, स्थानीय प्रशासन ने क्या किया, केंद्र क्या कर रहा है ...जैसी व्यर्थ की आलोचनाओं का मुख खुला हुआ है बजाय इसके कि इतने बड़े हादसे को अच्छी प्रकार संभालने के प्रयत्नों की प्रशंसा की जाती | सेना भी तो राज्य  सरकार व प्रशासन के तालमेल से ही कार्य करती है |

         हम कब स्वयं पर विश्वास करना सीखेंगे|
 

1 टिप्पणी:

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रथम स्थान पर तथ्यों को स्वीकार कर लेना अच्छा होता है, तथ्य छिपाते छिपातेे बहुत देर हो चुकी थी।