....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
धन्यवाद है शासन का,
इस
कितना अच्छा होगा जब,
बिजली पानी न आयेगा |
ऐसी
कूलर नहीं चलेंगे,
पंखा नाच नचाएगा ||
छत की शीतल मंद पवन
में,
सोने का आनन्द रहेगा
|
जंगल-झाडे के ही
बहाने,
प्रातः सैर का वक्त
मिलेगा |
नदी कुआं औ ताल नहर फिर,
जल क्रीडा का सेतु
बनेंगे |
शाम समय छत पर,
क्रीडाओं-
चर्चाओं के दौर
चलेंगे |
नहीं चलेगें फ्रिज टीवी,
डिश, केबुल न आयेगा ||
मिलना जुलना फिर से
होगा,
नाते –रिश्तेदारों
में |
उठना बैठना घूमना
होगा,
पास पडौसी यारों में
|
घड़े सुराही के ठन्डे
जल की,
सौंधी सी गंध मिलेगी |
फालसा खिरनी शर्वत
कांजी,
लस्सी औ ठंडाई
घुटेगी |
घर कमरों में बैठे रहना,
शाम-सुबह न भाएगा ||
भोर में मंदिर के
घंटों की,
ध्वनि का सुख-आनंद
मिलेगा|
चौपालों पर ज्ञान-वार्ता,
छंदों का संसार
सजेगा |
अकर्मण्यता का वंदन
है |
धन्य-धन्य हम भारत वासी,
साधुवाद है अभिनन्दन
है |
लगता है यह अब तो यारो!,
सतयुग जल्दी आजायेगा ||
8 टिप्पणियां:
अकर्मण्यता का वंदन है
धन्य-धन्य हम भारत वासी,
साधुवाद है अभिनन्दन है|
वाह वाह,बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
recent post : मैनें अपने कल को देखा,
सतयुग को सोचकर ही मन पुलकित हो जाता है..
यदि यही क्रम रहा तो सच में हम प्राकृतिक हो जायेंगे।
धन्यवाद है शासन का, इस
अकर्मण्यता का वंदन है |
धन्य-धन्य हम भारत वासी,
साधुवाद है अभिनन्दन है |
लगता है यह अब तो यारो!,
सतयुग जल्दी आजायेगा ||
प्रशासन पर करारा व्यंग -बढ़िया प्रस्तुति!
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
latest post: प्रेम- पहेली
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
धन्यवाद धीरेन्द्र जी.....यह अकर्मण्यता ही नहीं तो और क्या है और हम सहे जा रहे हैं...
धन्यवाद अमृता जी ...सतयुग आयेगा भौतिक उन्नति से जब तन मन आलोकित होजायेगा ...पधारने हेतु आभार ..
धन्यवाद पांडे जी ..क्या खूब ..प्रकृति नहीं रहेगी पर हम अवश्य प्राकृतिक होजाएंगे ...
धन्यवाद कालीपद जी...व्यंग्य से किसी पर अंतर पड़े, कण में जून रेंगे .. तो बात बने
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