....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
न बहर से न वज्न से ग़ज़ल गुलज़ार होती है |
कहते हैं कि खुदा कहीं नहीं है ,
न बहर से न वज्न से ग़ज़ल गुलज़ार होती है |****
तेरे नयनों से दोस्त आज कुछ ऐसी हँसी छलके,
दिल के ज़ज्वात दिले-जानां के लिए होते हैं |
एक ही वज़ह होती है जब बेवज़ह हंसते-रोते हैं
रत्न यादों के चुनने को किनारे क्यों लपेटे हैं |
तवे की गर्म रोटी की सेंक तो अब भी है
ज़िंदगी एक ग़ज़ल है,तरन्नुम में जिया जाए |**
राहे शौक में कदम शौक से उठा तो श्याम,
बात मिलने-मिलाने की मत छेडिये, अब छोडिये
हम खुश है ख्वाबो-ख़्वाब में यह भ्रम न तोडिये ||
डा श्याम गुप्त के .....कतए व शेर .....
कते....
एक ही शेर में कहन पूरी नहीं कर पाता है |
शायर कहन को दो शेरों में सजाता है |
दो शेरों की इक मुक्त-ग़ज़ल होती है -
शायरों द्वारा श्याम' कतआ कहा जाता है |
न बहर से न वज्न से ग़ज़ल गुलज़ार होती है |
कहने का अंदाज़ जुदा हो, बहरे बहार होती है |
गज़ल तो इक अंदाज़े बयाँ है दोस्त,
श्याम तो जो कहदें, गज़ले-बहार होती है |
मर मर के कभी प्यार निभाया नहीं जाता,
पहले यकीं, फिर प्यार, जताया नहीं जाता |
ख़ुश-ख़ुश न निभाया जो प्यार ही क्या है –
शर्तों से प्यार को यूं सताया नहीं जाता |
कहते हैं कि खुदा कहीं नहीं है ,
कभी किसी ने कहीं देखा नहीं है |
मैंने कहा ज़र्रे ज़र्रे में है काविज -
बस खोजने में ही कमी कहीं है |
न बहर से न वज्न से ग़ज़ल गुलज़ार होती है |****
न छंद-गणों के गणन से कविता ए बहार होतीहै|
काव्य तो इक दिलो -जां -अंदाज़ है दोस्त ...
भावों में बहकर गाया जाए, गुले -गुलज़ार होती है|
तेरे नयनों से दोस्त आज कुछ ऐसी हँसी छलके,
कि
मदिरा जाम से जैसे खुदाई इश्क की छलके |
हसीं
चहरे पे हम देखें हँसी वेज़ार थे कब से-
दुआ है
श्याम की ताजिन्दगी ही ये हँसी छलके||
दिल के ज़ज्वात दिले-जानां के लिए होते हैं |
कुछ भी कहिये लिखिए समां-सुहाना होते हैं
|
कलाम-ऐ-ज़माँ के कुछ नियम होते हैं श्याम –
उन पर चलते हैं तो अशआर सुहाने होते हैं|
शेर...
शे'र है मुक्त-छंद है एकल कलाम है,
इक कहन है, ख्याल है पयाम है |
यकीं होता है तभी ये दिल मगरूर होता है,
उसकी आमद बिना दिल कहीं संतूर होता है |
एक ही वज़ह होती है जब बेवज़ह हंसते-रोते हैं
हम उनकी यादों को जब तनहाइयों में संजोते हैं |
रत्न यादों के चुनने को किनारे क्यों लपेटे हैं |
डूब के जानिये इसमें लहर चुनने क्यों बैठे हैं |
तवे की गर्म रोटी की सेंक तो अब भी है
बस मयस्सर ही नहीं दौड़ते इंसान को...
ये ग़ज़ल कितनी प्यारी है |
गोया ज़िंदगी ने संवारी है |
ज़िंदगी एक ग़ज़ल है,तरन्नुम में जिया जाए |**
न हो साकी तो बिन पैमाना हे पिया जाए |
किसी भी छंद में फिट बैठता नहीं है ,
बस ख़ास छंद की खासियत यही है |
राहे शौक में कदम शौक से उठा तो श्याम,
मंजिल ढूंढेगी क्यों उनको जो चले ही नहीं |
बात मिलने-मिलाने की मत छेडिये, अब छोडिये
हम खुश है ख्वाबो-ख़्वाब में यह भ्रम न तोडिये ||
7 टिप्पणियां:
एक से बढ़कर एक-
बढ़िया प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-
सुन्दर प्रस्तुति है -परा ईश्वर की दिव्य शक्ति है। जीवात्मा उसी का अंश है। अपरा निकृष्ट शक्ति है ,एक्सटर्नल- एनर्जी ,माया है अपरा शक्ति। /आपने नारी को अपरा कैसे कह दिया कौन से वैदिक ग्रन्थ में ऐसा लिखा है कृपया उद्धृत करें।
" प्रायः कहा जाता है कि महिलायें भावुक होती हैं । परन्तु यह सर्वदा सत्य नहीं है । वैदिक विज्ञान केअनुसार . पराशक्ति -पुरुष सिर्फ भाव रूप में शरीर या किसी पदार्थ में प्रविष्ट होता है जबकि अपरा-शक्ति नारी,प्रकृति, माया, शक्ति या ऊर्जा रूप है जो पदार्थों व शरीर के भौतिक रूप का निर्माण करती है । अतः पुरुष भाव-रूप होने से अधिक भावुक होते हैं, स्त्रियाँ इसका लाभ उठा पाती हैं ।"
सुन्दर प्रस्तुति है -परा ईश्वर की दिव्य शक्ति है। जीवात्मा उसी का अंश है। अपरा निकृष्ट शक्ति है ,एक्सटर्नल- एनर्जी ,माया है अपरा शक्ति। /आपने नारी को अपरा कैसे कह दिया कौन से वैदिक ग्रन्थ में ऐसा लिखा है कृपया उद्धृत करें।
" प्रायः कहा जाता है कि महिलायें भावुक होती हैं । परन्तु यह सर्वदा सत्य नहीं है । वैदिक विज्ञान केअनुसार . पराशक्ति -पुरुष सिर्फ भाव रूप में शरीर या किसी पदार्थ में प्रविष्ट होता है जबकि अपरा-शक्ति नारी,प्रकृति, माया, शक्ति या ऊर्जा रूप है जो पदार्थों व शरीर के भौतिक रूप का निर्माण करती है । अतः पुरुष भाव-रूप होने से अधिक भावुक होते हैं, स्त्रियाँ इसका लाभ उठा पाती हैं ।"
बहुत सुन्दर लिखा है डॉ साहब। भाई साहब !
शैर लिखिए न "शैर" को 'शेर' न लिखिए एस एच ए आई आर लिखकर शिफ्ट दबा दीजिये शैर ही लिखा जाएगा।
धन्यवाद ..रविकर ...
धन्यवाद वीरेन्द्र जी.....
---- भाई जी ..पहले तो कोइ भी शक्ति ..निकृष्ट नहीं होती है शक्ति, शक्ति है निकृष्ट क्यों होगी ....वह तो निरपेक्ष होती है...
---- सभी वैदिक वांग्मय के अनुसार, सृष्टि-सृजन वर्णन करते समय... --अद्वैत अव्यक्त-ब्रह्म...परा-अपरा दो रूप-भाव में व्यक्त होता है .. जो व्यक्त पराशक्ति = व्यक्त परब्रह्म एवं व्यक्त अपराशक्ति = आदिशक्ति प्रकृति होते हैं ...
---प्रत्येक हिन्दू व वैदिक ग्रन्थ में ही नहीं शास्त्रीय, सामान्य व काव्य ग्रंथों में भी...नारी को प्रकृतिरूपा, मायारूपा, आदिशक्ति कहा गया है ....
मेरे विचार से ये शे'र या शेअर होता है जिसे आमतौर पर शेर लिख दिया जाता है......शैर नहीं ...
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