....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
 
क्या आयेगा फ़िर,
क्या आयेगा फ़िर,
कोई  कृष्ण ;
आस्था रूपी द्रोपदी की
अनावृत्त देह को ढकने,
चीरहरण को रोकने,
दुःशासन को टोकने, का--
दिखायेगा साहस
भरी सभा में ।
  नैन झरोखे....
कब तक बंद रखेंगे,
अखियों के झरोखों को ||
अखियों के झरोखों को ||
इन नैन झरोखों से , 
जो छन कर आती है ;
वो हवा सभी के मन को -
तन को भरमाती है ।।
जो छन कर आती है ;
वो हवा सभी के मन को -
तन को भरमाती है ।।
वह हवा सदा ही से है,
तन की मन की हमजोली |
कब तक मन से तन से ,
खेलेंगे आँख-मिचौली|
कब तक मन से तन से ,
खेलेंगे आँख-मिचौली|
फिर सम्मुख खुली पवन  हो,
रोकें क्यों झोंकों को॥
 
रोकें क्यों झोंकों को॥
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
2 टिप्पणियां:
जागृत आशा, कोई आये,
उलझा विश्व पटल सुलझाये।
क्या बात है पांडेजी ...जागृत आशा.....
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