ला जगन्नाथ प्रसाद गुप्त
....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
पितृ श्राद्ध दिवस पर------
( पिता की सुहानी छत्र -छाया जीवन भर उम्र के, जीवन के प्रत्येक मोड़ पर, हमारा मार्ग दर्शन करती है....प्रेरणा देती है और जीवन को रस-सिक्त व गतिमय रखती है और उस अनुभवों के खजाने की छत्र-छाया में हम न जाने कितने विविध ...ज्ञान-भाव-कर्म युक्त जीवन जी लेते हैं...)
कितने जीवन मिल जाते हैं |
ला. जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता |
पिता की छत्र-छाया वो ,
हमारे सिर पै होती है |
उंगली पकड़ हाथ में चलना ,
खेलना-खाना, सुनी कहानी |
बचपन के सपनों की गलियाँ ,
कितने जीवन मिल जाते हैं
वो अनुशासन की जंजीरें ,
सुहाने खट्टे-मीठे दिन |
ऊब कर तानाशाही से,
रूठ जाना औ हठ करना |
लाड प्यार श्रृद्धा के पल छिन,
कितने जीवन मिल जाते हैं ||
सिर पर वरद-हस्त होता है ,
नव- जीवन की राह सुझाने |
मग की कंटकीर्ण उलझन में,
अनुभव ज्ञान का संबल मिलता|
गौरव आदर भक्ति-भाव युत,
कितने जीवन मिल जाते हैं ||
स्मृतियाँ बीते पल-छिन की,
मानस में बिम्वित होती हैं |
कथा उदाहरण कथ्यों -तथ्यों ,
और जीवन के आदर्शों की |
चलचित्रों की मणिमाला में ,
कितने जीवन मिल जाते हैं ||
श्रृद्धा -भक्ति के ज्ञान-भाव जब ,
तन-मन में रच-बस जाते हैं |
जग के द्वंदों को सुलझाने,
कितने भाव स्फुरित रहते |
ज्ञान-कर्म और नीति-धर्म युत,
कितने जीवन मिल जाते हैं ।।
चित्र ला.जगन्नाथ प्रसाद गुप्त......परिवार---
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