....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
श्याम स्मृति -२२. पुरुषवादी मानसिकता ....
आजकल एक शब्द-समूह अधिकाँश सुना, कहा व लिखा जा रहा है वह है 'पुरुषवादी मानसिकता', प्राय: नारीवादी लेखिकाएं, सामाजिक कार्यकर्त्री, प्रगतिशील तेज तर्रार नारियां व समन्वयक पुरुष सभी, स्त्री सम्बंधित घटनाओं, दुर्घटनाओं, अनाचार, अत्याचार, यौन उत्प्रीणन आदि सभी के सन्दर्भ में पुरुषवादी सोच व मानसिकता का रोना रोया जाता है | यदि पुरुष में पुरुषवादी सोच व मानसिकता नहीं होगी तो और क्या होगी, तभी तो वह पुरुष है | क्या स्त्री अपनी स्त्रियोचित सोच व मानसिकता को बदल सकती है, त्याग सकती है, नहीं, यह तो प्रकृति-प्रदत्त है, .अपरिवर्तनशील |
यह असंगत है, समस्या के मूल से भटकना | किसी दुश्चरित्र पुरुष के कार्यकलापों का ठीकरा समस्त आधी दुनिया, सारे पुरुष वर्ग पर फोड़ना क्या उचित है !
वस्तुतः यह सोचहीनता का परिणाम है, कृत्य-दुष्कृत्य करते समय व्यक्ति यह नहीं सोच पाता कि वह स्त्री किसी की बहन, पुत्री, माँ, पत्नी है..ठीक अपनी स्वयं की माँ, बहन, पुत्री, पत्नी की भांति | निकृष्ट व आपराधिक व आचरणहीनता की विकृत मानसिकता युक्त व्यक्ति ऐसी सोचहीनता से ग्रस्त होता है एवं स्त्रियों को सिर्फ कामनापूर्ति, वासनापूर्ति, वासना की पुतली, सिर्फ यौन तुष्टि का हेतु समझता है| नारी का मान, सम्मान, स्वत्व का उसके लिए कोई मूल्य नहीं होता | यह चरित्रगत कमी व अक्षमता का विषय है जो विविध परिस्थितियों, आलंबन व उद्दीपन-निकटता, आसंगता, स्पर्शमयता, आसान उपलब्धता से उद्दीप्तता की ओर गमनीय होजाते हैं|
आज स्त्रियों में पुरुष-समान कार्यों में रत होने के कारण उनमें स्त्रेंण-भाव कम होरहा है व पुरुष-भाव की अधिकता है अतः उनमें पुरुष के पुरुष-भाव की शमनकारी व स्वयं के स्त्रेंण-भाव के उत्कर्ष का भाव नहीं रहा, फलतः पुरुष में प्रतिद्वंद्विता भाव युत आक्रामकता बढ़ती जा रही है जिसे पुरुष मानसिकता से संबोधित किया जा रहा है |
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