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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 1 अक्टूबर 2016

शरावबंदी---- सामाजिक सरोकार एवं तकनीकी तथ्य .. डा श्याम गुप्त...

                         ....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ... 


शराव बंदी-----सामाजिक सरोकार एवं तकनीकी तथ्य .....

                 अभी हाल में ही शरावबंदी के प्रकरण में पटना हाईकोर्ट एवं सुप्रीम कोर्ट के दो निर्णय देखने को मिले | मुझे लगता है कि निर्णय केवल तकनीकी आधार पर दिए गए हैं, सामाजिक सरोकार पर विवेचित नहीं |

१. पटना हाईकोर्ट ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए निम्न निर्णय दिया--- चित्र १.



Drshyam Gupta's photo. 

----कोइ भी कम्पनी अपना व्यापार मुनाफे के लिए लगाती है परोपकार के लिए नहीं ....

------आश्चर्य में तो हम हैं, क्या हम आज भी पुरा युग में जी रहे हैं ? प्राचीनकाल में व्यापारियों को पणि अर्थात पैसे लेकर व्यापार –विनिमय करने वाले कहा जाता था | इन्हें असम्माननीय दस्यु वर्ग में जाना जाता था | जिसका कालान्तर में वणिक या बनिया शब्द बना |

------कोइ भी कम्पनी अपना व्यापार मुनाफे के लिए लगाती है परोपकार के लिए नहीं ....यह तथ्य या कथ्य सामान्यजन के लिए या व्यापार जगत के स्वयं कथ्य के लिए सही (?..) होसकता है परन्तु किसी भी दायित्व के पद से टिप्पणी के लिए नहीं | प्रत्येक व्यापार व व्यापारी का मूल कर्तव्य स्वयं की जीविका हेतु उचित मुनाफे के अतिरिक्त सामाजिक परोपकार भी एक कर्तव्य होता है जिससे वह अतिरिक्त व अधिक मुनाफे की प्रवृत्ति से नियमित रहता है | शासन द्वारा अधिक मुनाफ़ा लेने को नियमित करना भी महंगाई नियमित करने का एक इंस्ट्रूमेंट है मूलतः सामाजिक दुष्प्रवृत्तियों की रोक थाम हेतु|


२. सुप्रीम कोर्ट के निम्न कथ्यों में -----

चित्र २..Drshyam Gupta's photo. 


------द्वितीय कथ्य तो उचित है ही---निश्चय ही किसी भी कोर्ट को नीतिगत मामलों में दखल नहीं देना चाहिए | परन्तु प्रथम टिप्पणी – मेरे विचार से शराव पीने के सम्बन्ध में यह तथ्य देश में प्रचलित व मान्य सभी चिकित्सा प्रणालियों से प्रमाणित नहीं है अतः यह चिकित्सा-नीतिगत तथ्य भी टिप्पणी में नहीं होना चाहिए | यह न्यायाधीशों का व्यक्तिगत मान्यता व विचार होसकता है परन्तु कोर्ट द्वारा टिप्पणी हेतु नहीं |
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