....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
अध्यक्ष श्री राधेश्याम दुबे, मुख्य अतिथि डा श्याम गुप्त एवं अन्य उपस्थित जन व कविगण |
आजाद हिन्द फ़ौज के
स्थापना दिवस पर शौर्य दिवस व काव्य गोष्ठी का आयोजन
राष्ट्रीय
सैनिक संस्था जो पूर्व सैनिकों व देशभक्त नागरिकों का संगठन है के मुख्यालय,
संस्था के लखनऊ इकाई के अध्यक्ष श्री राधेश्याम दुबे, पूर्व पीईएस एवं सुदर्शन
श्याम सन्देश पत्रिका के सम्पादक के आवास, के-३९७, के-सेक्टर,आशियाना लखनऊ पर
दि.२१-१०-१६ शुक्रवार को आजाद हिन्द फ़ौज के स्थापना दिवस की स्मृति में शौर्य-दिवस
का आयोजन किया गया साथ ही राष्ट्रीय काव्य-गोष्ठी भी आयोजित की गयी | समारोह में
डा श्याम गुप्त, श्री राधेश्याम दुबे ,पूर्व वरिष्ठ पर्सनल अधिकारी रेलवे श्री
बिनोदकुमार सिन्हा, पूर्व सैनिक श्री रवीन्द्र अनुरागी, डा श्रीकृष्ण अखिलेश, श्री
सुशील शुक्ल, एसएस द्विवेदी एवं विवेक वाजपेयी उपस्थित थे |
समारोह की अध्यक्षता श्री राधेश्याम दुबे
ने की एवं मुख्य अतिथि डा श्यामगुप्त थे |
स्वामी विवेकानंद मां सरस्वती, दुर्गा, त्रिदेव तथा स्वामी
विवेकानन्द एवं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस
के चीतों पर माल्यार्पण के पश्चात डा अखिलेश द्वारा सरस्वती वन्दना की गयी |
प्रथम सत्र में श्री शुक्ला जी ने सुभाष
चन्द्र बोस एवं आजाद हिन्द फ़ौज के वारे में बताया | उन्होंने नेताजी का प्रसिद्द
नारा ‘तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा’ को दोहराया | श्री सिन्हा ने कहा कि दीपावली पर स्वदेशी
वस्तुओं के प्रयोग एवं शहीदों के सम्मान में सभी लोग २०-२० दीपक उनके नाम से जलाएं
| श्री राधेश्याम दुबे जी का कथन था कि आज से हम सभी को अभिवादन में या फोन पर या
आपस में मिलते समय प्रत्येक बार जयहिन्द कहने की प्रथा डालनी चाहिए | द्विवेदी जी
का कथन था कि चीन की बनी एवं अन्य सभी विदेशी वस्तुओं के प्रयोग को हमें बंद कर
देना चाहिए |
डा श्याम गुप्त ने कहा कि इसप्रकार के
आयोजन व्यक्ति व समाज में विशिष्ट भावनाओं के जागरण का कार्य करते हैं अतः
प्रत्येक स्तर पर होते रहने चाहिए| इन सबके मूल में मानव सदआचरण अत्यंत महत्वपूर्ण
है जिसके बिना किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिल सकती |
काव्य गोष्ठी सत्र दो चक्रों में किया गया |
उपस्थित कवियों ने अपनी रचनाएँ प्रस्तुत कीं | संचालन श्री रवीन्द्र अनुरागी ने
किया |
कविवर श्री कृष्ण अखिलेश जी ने ‘मेरे देश
नमन तुमको है’ गीत सुनाया—
‘कितनी वर्षों बाद
तुम्हारे बेटों ने जब जोश दिखाया
लड़ते लड़ते अमर
होगये, लिखती कलम नमन उनको है |
कवि रवीन्द्र
अनुरागी ने वीर सुभाष का वंदन करते हुए कहा—
टुकड़ों में चाहे देश
बंटे, इनको चिंता है सत्ता की |
सरहद पर चाहे शीश
कटे, इनको चिंता है भत्ता की | आओ सुभाष ! है अभिनन्दन ||
बिनोदकुमार सिन्हा ने गाया-
‘नहीं बात अभी हुई
पुरानी, थी खूब लड़ी झांसी की रानी |
यह देश है वीर
जवानों का, वीरों का वीरांगनाओं का |
डा
श्याम गुप्त ने स्वाधीनता संग्राम में अपने ग्राम के देशभक्ति गीतों के गायकों की
टोली के नायक अपने पिता यश:शेष श्री जगन्नाथ प्रसाद गुप्ता का सुभाष, आजाद हिन्द
फ़ौज एवं देशप्रेम की घटनाएं सुनाईं तथा उनके
द्वारा प्रायः गाया जाने वाला एक गीत सुनाया ----
पोरस की वीरता का
झेलम तूही पता दे,
यूनान का सिकंदर था
तेरे तट पे हारा |
स्वरचित गीत में डा श्यामगुप्त ने
नव-विवाहित सैनिक को युद्ध पर जाने का सन्देश मिलने पर उसके वीररस व श्रृंगार के
समन्वित भावों की एक नज़्म प्रस्तुत की --
ए मेरे प्यार की की
साहिल ऐ मेरी जाने गुमां |
मुझको आवाज न दो अब
न ठहर पाऊंगा |
अब मेरा मुल्क मेरा
देश मेरी धरती माँ
देती आवाज़ भला कैसे
मैं अब रुक पाऊँ |
श्री राधेश्याम दुबे जी ने मुक्तक
सुनाया—
‘बात ही बात में
विश्वास बदल जाता है |
रात ही रात में
इतिहास बदल जाता है |
तकदीर और तदबीर
मिलकर चलती हैं-
धरा की कौन कहे आकाश
बदल जाता है |
श्री दुबेजी द्वारा धन्यवाद व चायपान एवं
जयहिंद के उद्घोष के साथ गोष्ठी का समापन किया गया |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें