....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
कविता का क ख ग घ --- क्रमिक आलेख----
** कविता का क **
----अभी हाल में ही व्हाट्स एप पर किसी काव्य रचना पर एक विपरीत टिप्पणी के सन्दर्भ में काफी घमासान हुआ तमाम कवियों के आपसी वाक्-युद्ध में उनकी बोली-बाणी के स्तर का भी भान हुआ | परन्तु मंथन भी खूब हुआ | एक तथ्य और उभरकर आया कि केवल विपरीत टिप्पणी से क्या होता है | वरिष्ठ एवं गुरुतर तथा साहित्यिक ठेकेदार लोगों ने नव एवं युवा कवियों के लिए कोई काव्य कला–शिक्षा की कक्षा क्यों नहीं खोली, अतः वे जैसा चाहें लिखें सब छूट है |
----- यद्यपि कविता किसी कक्षा या शिक्षा का क्षेत्र नहीं है वह स्वानुभूति व हृदयानुभूति से उद्भूत होती है, हाँ व्यक्ति / कवि के शिक्षा स्तर, ज्ञान, अनुभव व विवेक का भी स्थान होता है | कविता-ज्ञान मूलतः स्व-प्रेरणा, तमाम वरिष्ठ कवियों के साहित्य का अध्ययन एवं सन्दर्भ–अध्ययन की भाँति स्व-पठन-पाठन साधना से प्राप्त होता है | साथ ही वरिष्ठ जन, गुरुजन आदि द्वारा केवल संक्षिप्त इंगित या निर्देश देने की ही परिपाटी है अन्यथा जिज्ञासा करने पर अर्थात प्रश्न पूछने पर ही आगे निर्देशन का नियम है | हमारे सभी शास्त्र यदि हम देखें तो ‘अथातो जिज्ञासा ‘ अर्थात किसी भी शिष्य या विद्वान् द्वारा प्रश्न करने पर ही प्रारम्भ होते हैं|
----- जिज्ञासुओं के लिए कविता का प्रारंभिक पाठ हेतु भाषा विज्ञान की कुछ मूल परिभाषाओं का ज्ञान आवश्यक है ---
--------अक्षर या वर्ण = किसी ध्वनि या बोली की उच्चारित या लिखी जा सकनेवाली लघुतम स्वतंत्र इकाई है । जैसे--- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि। अक्षर में स्वर, स्वर तथा व्यंजन, अनुस्वार सहित स्वर या व्यंजन ध्वनियाँ सम्मिलित मानी जाती हैं। किसी भाषा के वर्णों के समुदाय को वर्णमाला कहा जाता है | उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं: (क) स्वर (ख) व्यंजन---
-----(क) स्वर---जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। ये संख्या में ग्यारह हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं:
१. ह्रस्व स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं(---श्वास के एक आघात में उच्चरित या लिखी जा सकने वाली लघुतम स्वतंत्र ध्वनि इकाई, ) उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।
२. दीर्घ स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
३. प्लुत स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है। जैसेः– ओ३म्, हे कृष्णा।
------(ख ) व्यंजन--जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं। अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। वे अपने आप में अधूरे होते है, जब उसमें स्वर मिलाये जाते है तब ही पूर्णता प्राप्त करते है यथा- क्, ख् आदि वर्ण हैं— क् +अ (स्वर) = क व्यंजन ..|
------शब्द = अक्षरों का सार्थक समूह | यथा - राम, परिवार, शशक आदि ..
------मात्रा / कला = अक्षर के सम्पूर्ण उच्चारण में लगने वाला समय । ये ह्रस्व (छोटी ) या दीर्घ (बड़ी ) होती हैं---
----लघु, हृस्व या छोटी मात्रा = जिस अक्षर के उच्चारण में इकाई समय लगे। भार या मात्रा १, यथा अ, इ, उ, ऋ अथवा इनसे जुड़े अक्षर, चंद्रबिंदी वाले अक्षर...
--- दीर्घ या बड़ी मात्रा = जिसके उच्चारण में दोगुना समय लगे। भार या मात्रा २, उक्त लघु अक्षरों को छोड़कर शेष सभी अक्षर, संयुक्त अक्षर अथवा उनसे जुड़े अक्षर, अनुस्वार (बिंदी वाले अक्षर)। यथा आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ औ --
------यति = पंक्ति पढ़ते समय विराम या ठहराव के स्थान।
-----तुक /तुकांत = पद या छंद की दो या अधिक पंक्तियों / चरणों के अन्त में ध्वनियों की समानता ।
-------गति = छंद में गुरु-लघु मात्रिक क्रम, जो चरण या पंक्ति को स्वरों की क्रमिक लयबद्धता प्रदान करता है।
-------लय = छंद या गीत पढ़ने या गाने की धुन या तर्ज़ की क्रमिकता । स्वरों के आरोह –अवरोह का क्रम जो श्रव्य-आनंद प्रदान करता है |
आज विश्व वाणी हिंदी भाषा, व्याकरण व साहित्य का कोश असीम है। संस्कृत से विरासत में मिले छंदादि काव्य-व्याकरण ज्ञान के साथ-साथ पंजाबी, मराठी, बृज, अवधी आदि आंचलिक भाषाओं/ बोलियों को अपनाकर तथा अंग्रेजी, जापानी आदि विदेशी भाषाओँ को अपने अनुसार संस्कारित कर हिंदी ने यह समृद्धता अर्जित की है। हिंदी साहित्य के विकास में ध्वनि विज्ञान तथा गणित ने आधारशिला की भूमिका निभायी है।
------- क्रमश –कविता का ख....
** कविता का क **
----अभी हाल में ही व्हाट्स एप पर किसी काव्य रचना पर एक विपरीत टिप्पणी के सन्दर्भ में काफी घमासान हुआ तमाम कवियों के आपसी वाक्-युद्ध में उनकी बोली-बाणी के स्तर का भी भान हुआ | परन्तु मंथन भी खूब हुआ | एक तथ्य और उभरकर आया कि केवल विपरीत टिप्पणी से क्या होता है | वरिष्ठ एवं गुरुतर तथा साहित्यिक ठेकेदार लोगों ने नव एवं युवा कवियों के लिए कोई काव्य कला–शिक्षा की कक्षा क्यों नहीं खोली, अतः वे जैसा चाहें लिखें सब छूट है |
----- यद्यपि कविता किसी कक्षा या शिक्षा का क्षेत्र नहीं है वह स्वानुभूति व हृदयानुभूति से उद्भूत होती है, हाँ व्यक्ति / कवि के शिक्षा स्तर, ज्ञान, अनुभव व विवेक का भी स्थान होता है | कविता-ज्ञान मूलतः स्व-प्रेरणा, तमाम वरिष्ठ कवियों के साहित्य का अध्ययन एवं सन्दर्भ–अध्ययन की भाँति स्व-पठन-पाठन साधना से प्राप्त होता है | साथ ही वरिष्ठ जन, गुरुजन आदि द्वारा केवल संक्षिप्त इंगित या निर्देश देने की ही परिपाटी है अन्यथा जिज्ञासा करने पर अर्थात प्रश्न पूछने पर ही आगे निर्देशन का नियम है | हमारे सभी शास्त्र यदि हम देखें तो ‘अथातो जिज्ञासा ‘ अर्थात किसी भी शिष्य या विद्वान् द्वारा प्रश्न करने पर ही प्रारम्भ होते हैं|
----- जिज्ञासुओं के लिए कविता का प्रारंभिक पाठ हेतु भाषा विज्ञान की कुछ मूल परिभाषाओं का ज्ञान आवश्यक है ---
--------अक्षर या वर्ण = किसी ध्वनि या बोली की उच्चारित या लिखी जा सकनेवाली लघुतम स्वतंत्र इकाई है । जैसे--- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, क्, ख् आदि। अक्षर में स्वर, स्वर तथा व्यंजन, अनुस्वार सहित स्वर या व्यंजन ध्वनियाँ सम्मिलित मानी जाती हैं। किसी भाषा के वर्णों के समुदाय को वर्णमाला कहा जाता है | उच्चारण और प्रयोग के आधार पर हिन्दी वर्णमाला के दो भेद किए गए हैं: (क) स्वर (ख) व्यंजन---
-----(क) स्वर---जिन वर्णों का उच्चारण स्वतंत्र रूप से होता है और जो व्यंजनों के उच्चारण में सहायक हों वे स्वर कहलाते है। ये संख्या में ग्यारह हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
उच्चारण के समय की दृष्टि से स्वर के तीन भेद किए गए हैं:
१. ह्रस्व स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में कम-से-कम समय लगता हैं(---श्वास के एक आघात में उच्चरित या लिखी जा सकने वाली लघुतम स्वतंत्र ध्वनि इकाई, ) उन्हें ह्रस्व स्वर कहते हैं। ये चार हैं- अ, इ, उ, ऋ। इन्हें मूल स्वर भी कहते हैं।
२. दीर्घ स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में ह्रस्व स्वरों से दुगुना समय लगता है उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं। ये हिन्दी में सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ।
३. प्लुत स्वर - जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं। प्रायः इनका प्रयोग दूर से बुलाने में किया जाता है। जैसेः– ओ३म्, हे कृष्णा।
------(ख ) व्यंजन--जिन वर्णों के पूर्ण उच्चारण के लिए स्वरों की सहायता ली जाती है वे व्यंजन कहलाते हैं। अर्थात व्यंजन बिना स्वरों की सहायता के बोले ही नहीं जा सकते। वे अपने आप में अधूरे होते है, जब उसमें स्वर मिलाये जाते है तब ही पूर्णता प्राप्त करते है यथा- क्, ख् आदि वर्ण हैं— क् +अ (स्वर) = क व्यंजन ..|
------शब्द = अक्षरों का सार्थक समूह | यथा - राम, परिवार, शशक आदि ..
------मात्रा / कला = अक्षर के सम्पूर्ण उच्चारण में लगने वाला समय । ये ह्रस्व (छोटी ) या दीर्घ (बड़ी ) होती हैं---
----लघु, हृस्व या छोटी मात्रा = जिस अक्षर के उच्चारण में इकाई समय लगे। भार या मात्रा १, यथा अ, इ, उ, ऋ अथवा इनसे जुड़े अक्षर, चंद्रबिंदी वाले अक्षर...
--- दीर्घ या बड़ी मात्रा = जिसके उच्चारण में दोगुना समय लगे। भार या मात्रा २, उक्त लघु अक्षरों को छोड़कर शेष सभी अक्षर, संयुक्त अक्षर अथवा उनसे जुड़े अक्षर, अनुस्वार (बिंदी वाले अक्षर)। यथा आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ औ --
------यति = पंक्ति पढ़ते समय विराम या ठहराव के स्थान।
-----तुक /तुकांत = पद या छंद की दो या अधिक पंक्तियों / चरणों के अन्त में ध्वनियों की समानता ।
-------गति = छंद में गुरु-लघु मात्रिक क्रम, जो चरण या पंक्ति को स्वरों की क्रमिक लयबद्धता प्रदान करता है।
-------लय = छंद या गीत पढ़ने या गाने की धुन या तर्ज़ की क्रमिकता । स्वरों के आरोह –अवरोह का क्रम जो श्रव्य-आनंद प्रदान करता है |
आज विश्व वाणी हिंदी भाषा, व्याकरण व साहित्य का कोश असीम है। संस्कृत से विरासत में मिले छंदादि काव्य-व्याकरण ज्ञान के साथ-साथ पंजाबी, मराठी, बृज, अवधी आदि आंचलिक भाषाओं/ बोलियों को अपनाकर तथा अंग्रेजी, जापानी आदि विदेशी भाषाओँ को अपने अनुसार संस्कारित कर हिंदी ने यह समृद्धता अर्जित की है। हिंदी साहित्य के विकास में ध्वनि विज्ञान तथा गणित ने आधारशिला की भूमिका निभायी है।
------- क्रमश –कविता का ख....
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