....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
राधिका सी सुर सिद्ध सुता नर नाग सुता कवि देव न
भू पर |
चन्द करों मुख देखि निछावर केहरी कोटि लुटें
कटिहू पर ||
काम कमान हू कों भृकुटीन पै मीन मृगीन हू कों
दृग दू पर |
वारों री कन्चन कंज कली पिक वैनी के ओछे उरोजन
ऊपर || ---महाकवि देव---
----नाग कन्याएं, देवांगनाएँ सिद्ध वधुएँ हमारे
यहाँ साहित्य में अपने लोकोत्तर रूप लावण्य के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं, उपमान
स्वरुप हैं | चन्द्र-मुख, केहरि-कटि, भ्रकुटी-कमान, मीन-दृग, पिक–वैना आदि सभी
श्रेष्ठतम उपमान हैं| यहाँ नायिका के अंगों के सौन्दर्य से सभी उपमानों का तिरस्कार
होने से छंद में व्यतिरेक अलंकार है |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें