...कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...
सरस्वती नदी रहस्य
किसी भी देश,संस्कृति व सभ्यता की संरचना, पुरातनता,उसकी महत्ता,विशिष्टता आदि के ज्ञान हेतु उसके एवं उसके सन्दर्भ में अन्य सभ्यताओं, देशों, संस्कृतियों के साहित्यिक, एतिहासिक विवरणों, तथ्यों एवं प्रागैतिहासिक संरचनाओं व परिवर्तनों व विकास का ज्ञान आवश्यक व महत्वपूर्ण होता अपेक्षाकृत वैज्ञानिक खोजों के क्योंकि पुरातनता के भौतिक साक्ष्य प्रायः नष्टप्राय होते हैं| भारत जैसे विश्व के प्राचीनतम राष्ट्र एवं मानव-सभ्यता के पालने के सन्दर्भ में यह और भी सत्य है, जिसकी सभ्यता, संस्कृति का प्राच्य विज्ञानवेत्ता, विद्वान्, खोजी किसी भी एतिहासिक ज्ञान, विवरण, व्याख्या के समय शायद ही स्मरण करते हैं|
स्वयं भारतीय विद्वान् जो प्राच्य द्वारा प्रस्तुत ज्ञान से रोमांचित हैं इसी भ्रम के शिकार हैं कि गुलामी के काल से पहले भारत का कोई इतिहास व सांस्कृतिक मूल्य था ही नहीं| इसी भ्रम के कारण विश्व के कुछ भ्रामक अनसुलझे तथ्य विश्व-पटल पर उदित हुए यथा-
भारत में आर्य विदेशी आक्रमणकारी के रूप में आये, हरप्पा सभ्यता, सरस्वती-सिन्धु नदी के अनसुलझे तथ्य, आर्य-अनार्य, सुर-असुर संबंधी भ्रामक तथ्य आदि| अंग्रेज़ी काल की राजनैतिक दृष्टि व आकांक्षा, हिन्दू-सनातन धर्म विरोधी धुरी के प्रभाव व वर्चस्व के कारण ये तथ्य और भी भ्रामक बना दिए गए|
किसी देश या भौगोलिक क्षेत्र के आदि, प्रागैतिहासिक, एतिहासिक ज्ञान व स्थिति एवं सांस्कृतिक संरचना के ज्ञान हेतु उस क्षेत्र की नदियों का इतिहास अत्यंत महत्वपूर्ण है| भारत के सन्दर्भ में भारत की मूल प्रागैतिहासिक नदियाँ -सरस्वती, सिन्धु, यमुना, गोमती, ब्रह्मपुत्र, गंगा एवं नर्मदा के उद्गम, प्रवाह व विलय के इतिहास इनके कालानुसार प्रवाह परिवर्तन एवं वर्तमान स्थिति इनके वैज्ञानिक, भौगोलिक, एतिहासिक, पौराणिक, धार्मिक व दार्शनिक, साहित्यिक विवरणों पर गहन दृष्टिपात एवं उनके परस्पर समन्वित अध्ययन से भारतीय उपमहाद्वीप की वास्तविक स्थिति का ज्ञान एवं विभिन्न विवादित बिन्दुओं पर विचार किया जा एकता है|
इन नदियों से सम्बंधित कुछ अनसुलझे प्रश्न व विवरण, कथाएं आदि इस प्रकार हैं ---
१.सरस्वती नदी के किनारे आदि सभ्यता का विकास व उसकी विलुप्ति, क्या वास्तव में यह कोई नदी थी या कल्पना, सिन्धु व सरस्वती का अंतर्संबंध, क्या सरस्वती ही सिन्धु का पूर्व रूप है, मानसरोवर क्षेत्र एवं सप्त-सिन्धु क्षेत्र में प्रथम मानव व प्रथम मानव-सभ्यता की उत्पत्ति...
२, यमुना की प्राचीनता व गंगा से पूर्व उपस्थिति, वर्तमान में बंगाल में ब्रह्मपुत्र का यमुना के नाम से प्रवाह एवं संगम–प्रयाग में सरस्वती की उपस्थिति..
3. ब्रह्मपुत्र नदी के विभिन्न काल में विपरीत दिशाओं में प्रवाह व मार्ग परिवर्तन..
४.
गोमती नदी को आदि-गंगा नाम से पुकारा जाना..
५.
नर्मदा का आदि नदी एवं नर्मदा घाटी में प्रथम जीव व आदि मानव की उत्पत्ति..
६.
सिन्धु घाटी सभ्यता (या हरप्पा या सरस्वती घाटी सभ्यता या सिन्धु-सरस्वती सभ्यता)..
इन प्रश्नों के अनसुलझे उत्तरों को हम ढूँढने का प्रयत्न करेंगे
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ऋग्वेद में - नदियाँ –
--- मंडल -१ सू १६४/१७५२-सरस्वती -वाणी विद्या कला की देवी है, नदी नहीं..
---मंडल-३सू-३०-विपाशा, सिन्धु, सरयू नदियाँ का वर्णन
-----३३८५–उतत्या सद्य आर्या सरयोरिन्द्र पारतः| अर्णो चित्ररथ बधी:|| -सरयू किनारे बसे अर्ण व चित्ररथ नामक आर्य शासकों को इंद्र ने तत्काल मार दिया |
----३३७९-उत सिन्धु विवात्यं वितस्थानामधिक्षामि |परिष्ठा इंद्र मायया |-आपने समस्त जल को तथा परिपूर्ण रूप से भरी हुई बेग से प्रवाहित सिन्धु को अपनी माया
( बुद्धि-कौशल)
से धरती पर सब जगह स्थापित किया | -यहाँ पर सिधु नदी नहीं अपितु समस्त जल धाराओं का सन्दर्भ है
--मं.५, सू-५२-४०९४ -यमुना
-गाय, घोड़ों का शोधन–निराधो
=निश्चिंतता से आराधना..
--मं ५-सू.५३—४१०३ –सरयू, रसा, अनितभा, कुभा, सिन्धु
–हमें न देखें
..
२.
--मं-५, सू-६१-गोमती के किनारे रथवीति का निवास --
मंडल-६-सू-४५-४८०२
–गंगा अधि, वृबु:
पणीनां वर्षिष्ठे मूर्धन्तस्थात| उरु कक्षो न:
गांड्.गय:||
- ---वृबु ने पणियों (व्यापारियों,असुरों ) के बीच ऊंचा स्थान प्राप्त किया| वे गंगा के ऊंचे तटों के समान महान हुए |
मं-६ सू-६१-- सरस्वती नदी के किनारे दिवोदास द्वारा सभ्यता की स्थापना ---
“ उत न: प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्य | सरस्वती स्तोम्या भूत ||------प्रियजनों में अतिप्रिय सात बहनों (धाराओं या सहायक नदियों–वाणी के सप्त स्वरों सरगम) से युक्त, सरस्वती स्तुत्य हैं|
----स्वर्ग व पृथ्वी को अपने तेज से भरने वाली - अर्थात सरस्वती स्वर्ग में भी थी |
---ऋग्वेद मन्त्र ६:६१:१०,१२; ७:३६:६ में सरस्वती को सात बहनों वाली और सिन्धु नदी की माता कहा गया है।
--- नदीतमा सरस्वती –-
आ यत्साकं यशसो वावशाना : सरस्वती सप्ताथी सिन्धुमाता |
या:
सुश्वयंत
सुदुधा
सुधारा
अभि
स्वेन
पयसा
पीप्याना
| ७:३६:६
उत न: प्रिया प्रियासु सप्तस्वसा सुजुष्टा |सरस्वती सतोम्या भूत | ६:६१:१०
त्रिषधस्था सप्तधातु:पंच जाता वर्धयन्ती |वाजे वाजे हव्याभूत |६:६१: १२
विलुप्त सरस्वती की जीवनगाथा में अंतर्निहित भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति के उदय की गाथा निहित है | उपरोक्त ऋग्वेद मन्त्र ६:६१:१०,१२; ७:३६:६ में सरस्वती को सात बहनों वाली और सिन्धु नदी की माता कहा गया है। इन मंत्रो से प्रकट होता है कि ऋग्वेदिक काल में सरस्वती सदानीरा महानदी थी, जो हिमालय की हिमाच्छादित शिखाओं से अवतरित होकर आज के पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी राजस्थान, सिंध प्रदेश व गुजरात क्षेत्र को सिंचित कर शस्य-श्यामला बनाती थी।
इस सन्दर्भ में ऋग्वेद मन्त्र १०:७५:५ एवं ३:२३:४ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि शतुद्री (सतलज), परुशणी (रावी), असिक्नी (चेनाब), वितस्ता, आर्जीकीया (व्यास) एवं सिन्धु, पंजाब की ये सभी नदियाँ सरस्वती की सहायक नदियाँ थीं।
पिछले कुछ वर्षों में उपग्रह से लिए गए चित्रों के माध्यम से वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विशाल नदी के प्रवाह-मार्ग का पता लगा लिया है जो किसी समय पर भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में बहती थी। उपग्रह से लिए गए चित्र दर्शाते हैं कि कुछ स्थानों पर यह नदी आठ किलोमीटर चौड़ी थी और कि यह चार हज़ार वर्ष पूर्व सूख गई थी।
किसी प्रमुख नदी के किनारे पर रहने वाली एक विशाल प्रागैतिहासिक सभ्यता की खोज ने इस प्रबल होते आधुनिक विश्वास को और पुख़्ता कर दिया है कि सरस्वती नदी वास्तविक नदी थी | इस नदी के प्रवाह-मार्ग पर एक हज़ार से भी अधिक पुरातात्त्विक महत्व के स्थल मिले हैं और वे ईसा पूर्व तीन हज़ार वर्ष पुराने हैं। इनमें से एक स्थल उत्तरी राजस्थान में प्रागैतिहासिक शहर कालीबंगन है। इस स्थल से कांस्य-युग के उन लोगों के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का ख़ज़ाना मिला है जो वास्तव में सरस्वती नदी के किनारों पर रहते थे।
पुरातत्त्वविदों ने पाया है कि इस इलाक़े में पुरोहित, किसान, व्यापारी तथा कुशल कारीगर रहा करते थे। इस क्षेत्र में पुरातत्त्वविदों को बेहतरीन क़िस्म की मोहरें भी मिली हैं जिन पर लिखाई के प्रमाण से यह संकेत मिलता है कि ये लोग साक्षर थे। यद्यपि इन मोहरों की गूढ़-लिपि ( चित्र लिपि )का अर्थ अभी तक नहीं निकाला जा सका है।
आज सिंधुघाटी की सभ्यता (हरप्पा या अब सरस्वती घाटी सभ्यता ) प्राचीनतम सभ्यता जानी जाती है। वास्तव में यह सभ्यता एक बहुत बड़ी सभ्यता का अंश है, जिसके अवशिष्ट चिन्ह उत्तर में हिमालय की तलहटी (मांडा) से लेकर नर्मदा और ताप्ती नदियों तक और उत्तर प्रदेश में कौशाम्बी से गांधार
(बलूचिस्तान) तक मिले हैं। अनुमानत: यह पूरे उत्तरी भारत में थी। यदि इसे किसी नदी की
३.
सभ्यता ही कहना हो तो यह उत्तरी भारत की नदियों की सभ्यता है। इसे कुछ विद्वान प्राचीन सरस्वती नदी की सभ्यता या फिर सरस्वती-सिन्धु सभ्यता कहते हैं। कालांतर में बदलती जलवायु और राजस्थान की ऊपर उठती भूमि के कारण सरस्वती नदी सूख गयी।
वैदिक धर्मग्रंथों के अनुसार धरती पर नदियों की कहानी सरस्वती से शुरू होती है। सरस्वती नदी वैदिक काल में इतनी पवित्र समझी जाती थी कि परवर्ती काल में इसको विद्या, बृद्धि तथा वाणी की देवी के रूप में माना गया। इस नदी का उद्गम हर की दून ग्लेशियर में यमुनोत्री के पास है। सरिताओं में श्रेष्ठ सरस्वती सर्वप्रथम पुष्कर में ब्रह्म सरोवर से प्रकट हुई। पुराणों के अनुसार आदिम
मनु स्वायंभुव का निवास स्थल सरस्वती नदी के तट पर था। कहा जाता है कि कार्तिकेय
(शिव के पुत्र जिनका एक नाम स्कंद भी है) को सरस्वती के तट पर देवताओं की सेना का सेनापति (कमांडर) बनाया गया था। चंद्रवंशी राजकुमार पुरुरवा
को उनकी भावी पत्नी उर्वशी भी यहीं मिली थी।
सरस्वती के बारे में कुछ तथ्य विशिष्ट हैं----
१.नदी-सूक्त-१०-७५- ऋग्वेद में सरस्वती, यमुना के पूर्व व सतलज के पश्चिम में बहता बताया है|
२.प्रयाग (इलाहाबाद ) में त्रिवेणी संगम --
३. दृषवती नदी--सरस्वती और दृषद्वती परवर्ती काल में ब्रह्मावर्त की पूर्वी सीमा की नदियां कही गई हैं। दृषदवती(=ब्रह्मपुत्र) व दृष्टावती (=सरस्वती-यमुना की सहायक नदी-जो आदिकाल की पश्चिमोन्मुखी ब्रह्मपुत्र की अवशेष नदी हो सकती है)–दो पृथक नदियाँ हैं .
4.यमुना सबसे प्राचीन नदी– एवं कालान्तर से सरस्वती-यमुना-गंगा का एक दूसरे की सहायक की भांति स्थिति- भारत कोश के अनुसार- पहिले दो वरसाती नदियाँ 'सरस्वती' और 'कृष्ण गंगा' मथुरा के पश्चिमी भाग में प्रवाहित होकर यमुना में गिरती थीं, जिनकी स्मृति में यमुना के
सरस्वती संगम और कृष्ण गंगा नामक धाट हैं अर्थात कभी सरस्वती व गंगा स्वयं, यमुना की सहायक नदियाँ थीं | शास्त्रों के अनुसार यमुना, सरस्वती नदी की सहायक नदी रही है। जो बाद में गंगा में मिलने लगी। सरस्वती का उद्गम स्थल की प्लक्ष-प्रस्रवन के रूप में पहचान की गयी है जो जमुनोत्री के पास ही स्थित है| महाभारत के अनुसार कुरुक्षेत्र तीर्थ सरस्वती नदी के दक्षिण और दृष्टावती नदी के उत्तर में स्थित है|
५.स्कन्द पुराण के अनुसार आदिकाल में समुद्र तट पर स्थित अवन्ती राज्य के उत्तरी भाग उज्जयिनी में ब्रह्माणि हंसवाहिनी सरस्वती नदी अवस्थित थी जो आज ब्रह्माणी नदी है|
| चित्र १-सरस्वती व सहायक नदियाँ –वैदिक काल
४.
चित्र२- सिन्धु, सहायक नदी की भांति सरस्वती में समाहित होते हुए ( पूर्व-महाभारत काल ) सरस्वती के लुप्त होने पर सिन्धु ने वर्त्तमान रूप लिया
ऋग्वेद तथा अन्य पौराणिक वैदिक ग्रंथों में दिये सरस्वती नदी के सन्दर्भों के आधार पर कई भू-विज्ञानी मानते हैं कि हरियाणा से राजस्थान होकर बहने वाली मौजूदा सूखी हुई घग्घर-हकरा नदी प्राचीन वैदिक सरस्वती नदी की एक मुख्य सहायक नदी थी, जो ५०००-३००० ईसा पूर्व पूरे प्रवाह से बहती थी। ऋग्वेद में सरस्वती नदी को नदीतमा की उपाधि दी गयी है। वैदिक सभ्यता में सरस्वती ही सबसे बड़ी और मुख्य नदी थी। इसरो द्वारा किये गये शोध से पता चला है कि आज भी यह नदी हरियाणा, पंजाब और राजस्थान से होती हुई भूमिगत रूप में प्रवाहमान है|
'ततो विनशनं गच्छेन्नियतो नियताशन: गच्छत्यन्तर्हिता यत्र मेरूपृष्ठे सरस्वती... अर्थात मेरुपृष्ठ से निकलने वाली सरस्वती विनशन स्थान में अन्तर्निहित होगई एवं केवल मेरुपृष्ठ तक सीमित रह गयी -- अर्थात पुनः स्वर्ग में प्रवेश ... |
शतपथ ब्राह्मण में विदेघ (विदेह) के राजा माठव का मूलस्थान सरस्वती नदी के तट पर बताया गया है और कालांतर में वैदिक सभ्यता का पूर्व की ओर प्रसार होने के साथ ही माठव के विदेह (बिहार) में जाकर बसने का वर्णन है। इस कथा से भी सरस्वती का तटवर्ती प्रदेश वैदिक काल की सभ्यता का मूल केंद्र प्रमाणित होता है।
महाभारत में अनेक स्थानों पर सरस्वती का उल्लेख है। श्रीमद् भागवत में यमुना तथा दृषद्वती के साथ इसका उल्लेख है| मेघदूत में कालिदास ने सरस्वती का ब्रह्मावर्त के अंतर्गत वर्णन किया है | पारसियों के धर्मग्रंथ जेंदावस्ता में सरस्वती का नाम हरहवती मिलता है। हड़प्पा सभ्यता की अधिकाँश बस्तियां सरस्वती के तट पर पायी जाती हैं अतः अब शोधों से सिद्ध होगया है कि हड़प्पा सभ्यता मूलतः सरस्वती सभ्यता थी |
आधुनिक खोजों के अनुसार लगभग ५००० वर्ष पूर्व अरावली पर्वत श्रेणियों के उठने से उत्पन्न भूगर्भीय एवं सागरीय हलचलों में राजस्थान की भूमि उठने से यमुना जो दृशवती की सहायक नदी थी पूर्व की ओर बहकर गंगा में मिल गयी तथा सतलज आदि अन्य नदियाँ पश्चिम की ओर सिन्धु में मिल गयीं सरस्वती के विशाल जलप्रवाह द्वारा समस्त भूमि पर उत्पन्न जलप्रलय ने स्थानीय सभ्यता का विनाश किया एवं स्वयं नदी सूख कर विभिन्न झीलों में परिवर्तित होगई | सरस्वती का अर्थ है सरोवरों वाली नदी | हरियाणा व राजस्थान के विभिन्न सरोवर व झीलें ब्रह्मसर, ज्योतिसर, स्थानेसर,खतसर,रानीसर,पान्डुसर; पुष्कर सरस्वती के प्राचीन प्रवाह-मार्ग में ही हैं... इस प्रकार सरस्वती
५.
विलुप्त होगई एवं द्वापर युग में सरस्वती में जल प्रवाह कम रह जाने से पर राजस्थान का थार मरुस्थल एवं कच्छ का रन बन गए|
द्वापर के अंत में सागरीय हलचल में गुजरात जो सागर में एक द्वीप था उस पर बसी द्वारका समुद्र में समा गयी |
गंगा-यमुना के संगम के संबंध में केवल इन्हीं दो नदियों के संगम का वृत्तांत रामायण, महाभारत, कालिदास तथा प्राचीन पुराणों में मिलता है। परवर्ती पुराणों तथा हिन्दी आदि भाषाओं के
साहित्य में त्रिवेणी का उल्लेख है। कुछ लोगों का मत है कि गंगा-यमुना की संयुक्त धारा का ही नाम सरस्वती है। अन्य लोगों को विचार है कि पहले प्रयाग में संगम स्थल पर एक छोटी-सी नदी आकर मिलती थी जो अब लुप्त हो गई है। 19 वीं शती में, इटली के निवासी मनूची ने प्रयाग के किले की चट्टान से नीले पानी की सरस्वती नदी को निकलते देखा था। यह नदी गंगा-यमुना के संगम में ही मिल जाती थी|
कालांतर में यह इन सब स्थानों से तिरोहित हो गई, फिर भी लोगों की धारणा है कि प्रयाग में वह अब भी अन्तर्निहित होकर बह रही है| मनुसंहिता से स्पष्ट है सरस्वती और दृषद्वती के बीच का भूभाग ही ब्रह्मावर्त कहलाता था। ऋग्वेद के नदी सूक्त में सरस्वती का उल्लेख है --
इमं मे गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि सतोमंसचता परुष्णया,
असिक्न्या मरूद्वधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणुह्या सुषोभया'|
कुछ मनीषियों का विचार है कि ऋग्वेद में सरस्वती वस्तुत: मूलरूप में सिंधु का ही पूर्व रूप है। क्योंकि गंगा, यमुना सरस्वती के अलावा ये सभी पांच नदियाँ आज सिन्धु की सहायक नदियाँ हैं छटवीं द्रषद्वती है, सिन्धु नदी का नाम नहीं है | ऋग्वेद ७.३६.६ में सरस्वती को सप्तसिन्धु नदियों की जननी बताया गया है | इस प्रकार इसे सात बहनें वाली नदी कहा गया है –
“उतानाह प्रिया प्रियासु सप्तास्वसा, सुजुत्सा सरस्वती स्तोभ्याभूत ||
सातवीं बहन सिन्धु होसकती है जो उस समय तक छोटी नदी रही होगी | सरस्वती के सूखने पर पांच सहायक नदियों से आपलावित होकर आज की बड़ी नदी बनी | सरस्वती और दृषद्वती परवर्ती काल में ब्रह्मावर्त की पूर्वी सीमा की नदियां कही गई हैं।
3. –सिन्धु, सहायक नदी की भांति सरस्वती में समाहित होते हुए ( पूर्व-महाभारत काल ) सरस्वती के लुप्त होने पर सिन्धु ने वर्त्तमान रूप लिया
प्रथम आर्यावर्त के विषय में मनुस्मृति आदि ग्रन्थों में इस प्रकार है
-
आसमुद्रात्तु वै पूर्वादासमुद्रात्तु पश्चिमात् ।
तयोरेवान्तर गिर्योरार्थावर्तं विदुर्बुधाः ॥ -मनु० अ० श्लोक-२२
उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पूर्व और पश्चिम में समुद्र है । इस देश का व इस भूमि का नाम आर्यावर्त है, क्योंकि आदि सृष्टि से इसमें आर्य लोग निवास करते रहे हैं, |
उत्तर में हिमालय,
६.
दक्षिण में विन्ध्याचल, पश्चिम में अटक (सिन्धु) और पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी है। इन चारों के बीच में जितना देश है उसको आर्यावर्त कहते हैं । इसकी सीमा के विषय में मनु ने लिखा है -
सरस्वती दृषद्वत्योर्देव नद्योर्यदन्तरम् ।
तं देव निर्मितं देशं ब्रह्मावर्त प्रचक्षते ॥ ----मनु० २।१७॥
अर्थात् सरस्वती के पश्चिम में, अटक नदी, पूर्व में, दृषद्वती जो नेपाल के पूर्व भाग पहाड़ से निकलकर बंगाल और आसाम के पूर्व और ब्रह्मा के पश्चिम की ओर होकर दक्षिण के समुद्र में मिली है, जिसको ब्रह्मपुत्र नदी कहते हैं और जो उत्तर के पहाड़ों से निकल कर दक्षिण के समुद्र की खाड़ी में आ मिली है । हिमालय की मध्य रेखा से दक्षिण और पहाड़ों के अन्तर्गत रामेश्वर
पर्यन्त, विन्ध्याचल के भीतर जितने देश हैं उन सबको आर्यावर्त इसलिये कहते हैं कि यह आर्यावर्त वा ब्रह्मवर्त को देव अर्थात् विद्वानों ने बसाया।
सरस्वती एक विशाल नदी थी। पहाड़ों को तोड़ती हुई निकलती थी और मैदानों से होती हुई अरब सागर में जाकर विलीन हो जाती थी। मानसरोवर से निकलने वाली सरस्वती हिमालय को पार करते हुए हरियाणा, पंजाब व राजस्थान से होकर बहती थी और कच्छ के रण में जाकर अरब सागर में मिलती थी। उत्तरांचल के रूपण ग्लेशियर से उद्गम के उपरांत यह जलधार के रूप में आदि-बद्री तक बहकर आती थी फिर आगे चली जाती थी| तब सरस्वती के किनारे बसा राजस्थान भी हरा भरा था। उस समय यमुना, सतलुज व घग्गर इसकी प्रमुख सहायक नदियाँ थीं। बाद में सतलुज व यमुना ने भूगर्भीय हलचलों के कारण अपना मार्ग बदल लिया और सरस्वती से दूर हो गईं|
महाभारत में सरस्वती नदी को प्लक्षवती, वेद-स्मृति, वेदवती आदि नामों से भी बताया गया ही | पारसियों के धर्मग्रंथ जेंदावस्ता में सरस्वती का नाम हरहवती मिलता है। ऋग्वेद) में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में वर्णन आया है। यह नदी सर्वदा जल से भरी रहती थी और इसके किनारे अन्न की प्रचुर उत्पत्ति होती थी। सरस्वती आज की गंगा की तरह उस समय की विशालतम नदियों में से एक थी।
उत्तर वैदिक काल और महाभारत काल में यह नदी बहुत कुछ सूख चुकी थी। तब सरस्वती नदी में पानी बहुत कम था। लेकिन बरसात के मौसम में इसमें पानी आ जाता था। भूगर्भी बदलाव की वजह से सरस्वती नदी का पानी गंगा में चला गया, कई विद्वान मानते हैं कि इसी वजह से गंगा के पानी की महिमा हुई, भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का पानी यमुना में गिर गया। इसलिए यमुना में सरस्वती का जल भी प्रवाहित होने लगा। सिर्फ इसीलिए प्रयाग में तीन नदियों का संगम माना गया|
सरस्वती को सिधु क्षेत्र में नारा ( महान जल प्रवाह व संग्रह...नार =जल )
कहा जाता है = नारायण= नारा का अयन, कच्छ क्षेत्र में खिरसर नामक स्थान है =क्षीरसागर अर्थात इसी स्थान पर जब गुजरात आदि एक टापू था कच्छ के स्थान पर सागर था| इसी को नारायण (
नार +अयन =जल निवास )
का निवास क्षीरसागर कहा जाता था |
महाभारत के अनुसार-बलराम ने द्वारका से मथुरा तक की यात्रा सरस्वती नदी से की थी और लड़ाई के बाद यादवों के पार्थिव अवशेषों को इसमें बहाया गया था यानी तब इस नदी से यात्राएं भी की जा सकती थीं।
महाभारत(शल्य पर्व)में सरस्वती नामक 7 नदियों का उल्लेख किया गया है। एक सरस्वती नदी यमुना के साथ बहती हुई गंगा से मिल जाती थी। ब्रजमंडल की अनुश्रुति के अनुसार एक सरस्वती नदी प्राचीन हरियाणा राज्य से ब्रज में आती थी और मथुरा के निकट अंबिका वन में बहकर गोकर्णेश्वर महादेव के समीपवर्ती उस स्थल पर यमुना नदी में मिलती थी जिसे'सरस्वती संगम घाट'कहा जाता है। सरस्वती नदी और उसके समीप के अंबिका वन का उल्लेख पुराणों में हुआ है।
७.
३-----------------------------------
रेगिस्तान में उतथ्य मुनि के शाप से भूगर्भित होकर सरस्वती लुप्त हो गई और पर्वतों पर ही बहने लगी। सरस्वती पश्चिम
से पूरब की ओर बहती हुई सुदूर पूर्व नैमिषारण्य पहुंची। अपनी 7 धाराओं के साथ सरस्वती कुंज पहुंचने के कारण नैमिषारण्य का वह क्षेत्र 'सप्त सारस्वत' कहलाया। यहां मुनियों के आवाहन करने पर सरस्वती 'अरुणा'नाम से प्रकट हुई। अरुणा सरस्वती की 8वीं धारा बनकर धरती पर उतरी। अरुणा प्रकट होकर कौशिकी (आज की कोसी नदी) से मिल गई।
अपनी पूर्वजा पौराणिक देवी सरस्वती के मृत्युलोक में अवतीर्ण होने के स्थान को शोण के निकट वर्णित करते हुए महाकवि बाण ने शोण को दंडकारण्य और विंध्य से उद्गत नदी माना है --अर्थात सरस्वती किसी कालमें मानसरोवर से सीधी दक्षिण की ओर बहकर पटना के समीप एवं उससे पहले प्रयाग में अवतरित होती थी (गंगा अवतरण से पहले) यमुना में मिलकर |
त्रिवेणी-बंगाल में हुगली के समीप छोटा कस्बा है त्रिवेणी जो हिन्दुओं का प्राचीन धर्मस्थल है यहाँ भागीरथी नाम से गंगा तीन धाराओं में बंट कर सागर में विलीन होती है| सरस्वती, गंगा व यमुना- इसे मुक्तवेनी कहा जाता है जबकि प्रयाग की सरस्वती गंगा यमुना-त्रिवेणी को युक्तवेनी कहा जाता है| अर्थात सरस्वती की उपस्थिति दोनों स्थान पर है| अर्थात कभी सरस्वती स्वतंत्र रूप में या यमुना के साथ बंगाल की खाड़ी में गिरती थी |
सरस्वती नदी का उपरोक्त वर्णन के साथ भारतीय प्रायःद्वीप की ६ मुख्य प्रागैतिहासिक नदियों - हिमालयी नदियाँ – सरस्वती, यमुना, गंगा, सिन्धु, गोमती एवं दक्षिण प्रायद्वीप की नदियाँ नर्मदा आदि की आदिकाल,प्रागैतिहासिक काल व वर्त्तमान कालपर विचार करने पर -मूलकथा यह बनती है जो सरस्वती नदी के रहस्य को वर्णित करती है --
१.हिमालय से पहले जब भारत अफ्रीका से जुड़ा हुआ था—गोंडवाना लेंड -भूसागरीय प्लेट, उत्तर में यूरेशियन प्लेट की ओर खिसक कर दोनों के मध्य स्थित सागर—टेथिस सागर को संकरा कर रही थीं| इस प्रकार तिब्बत के पठार की संरचना हुई - सुमेरु,कैलाश आदि क्षेत्र निर्मित हुए अतः -उस समय...
-- सभी उत्तरी क्षेत्र का जल प्रवाह..( जो कालान्तर में सिन्धु-सरस्वती,यमुना,ब्रह्मपुत्र आदि हिमालयी नदियाँ नामित हुईं )का उद्गम –मानसरोवर—कैलाश क्षेत्र से सीधे दक्षिण की ओर बहती हुई टेथिस सागर में गिरता था| अन्य सुमेरु-कैलाश क्षेत्र की वर्त्तमान चीन खंड की ओर की एवं यूरेशिया खंड की ओक्सस आदि नदियाँ पूर्वी महासागर व उत्तरी आर्कटिक सागर में गिरती रही होंगीं अथवा उसी पर्वतीय क्षेत्र की स्थानीय नदियों की भांति झीलों आदि तक बहती रही होंगी |
--भारतीय दक्षिण प्रायद्वीप की नदियाँ -गोंडवानालेंड स्थित भारतीय भूखण्ड अफ्रिका के पूर्वी तट जंजीबार तट से जुड़ा था,सभी जल प्रवाह, नदियाँ (बाद में नर्मदा आदि नामित ) करोड़ो वर्ष पूर्व विक्टोरिया झील में समाहित होती थी|
में भारत ...
८.
२.भारतीय व यूरोपीय प्लेट की टक्कर पर –भारतीय प्रायद्वीपीय भूखंड के अफ्रीका से टूटकर पूर्वोत्तर की ओर खिसककर उत्तरी यूरेशियन भूखंड की प्लेट से टकराने पर नर्मदा आदि नामित प्रायद्वीपीय नदियाँ उत्तर में टेथिस सागर में गिरती थीं, तत्पश्चात उत्तरी तट उठ जाने पर पूर्व की ओर बंगाल की खाडी की ओर बहने लगीं| अमूरकोट से प्रथम नर-मादा की उत्पत्ति के प्रमाण स्वरूप सर्वाधिक प्राचीन मानव खोपड़ी झील के आसपास ही पाये गए हैं| इस प्रकार दक्षिण भारतीय प्रायद्वीप की प्राचीनतम नदियाँ नर्मदा व ताप्ती आमूर पर्वतीय क्षेत्र में सदा से बहती रही है|
3.टेथीज़-सागर की विलुप्ति पर, उसके स्थान पर बने लवणीय वालू के मैदान में– हिमालयी जल प्रवाह शिवालिक या इंडो-ब्रह्म नामक विशाल नदी के रूप में सम्पूर्ण वालुका क्षेत्र में असम से पंजाब तक प्रवाहित होती थी जो अरब सागर, सिंध की खाड़ी में गिरती थी|
तत्पश्चात भू हलचलों के कारण यह जल प्रवाह तीन प्रमुख नदी तंत्र- सरस्वती, यमुना व ब्रह्मपुत्र में विभाजित होगया | ये आदि मूल नदियाँ सरस्वती-यमुना-ब्रह्मपुत्र –उत्तर से पश्चिम की ओर प्रवाहित होती थीं जो पश्चिम अरबसागर में गिरती थीं |
वर्त्तमान सिन्धु एवं गंगा घाटी एक समुद्री लवणीय जल एवं बालू का इलाका था जो बाद में यमुना, सरस्वती, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, गोमती, गंगा एवं अन्य प्रायद्वीपीय भाग की नदियों द्वारा लाई गयी मिट्टी द्वारा भर दिया गया और विश्व का सबसे उर्वर मैदानी भाग बना|
चित्र-५..भारतीय प्रायद्वीप का उत्तर-पूर्व की ओर गमन... चित्र-६..-भारतीय प्लेट की यूरेशियन प्लेट से टक्कर ..
४. हिमालय के विक्सित होने से पूर्व –उत्तर मध्य हिमालय के उठ जाने से ब्रह्मपुत्र पूर्ववर्ती बहने लगी | सतपुडा श्रेणी की राजमहल व गारो पर्वत श्रेणियां आपस में जुडी हुईं थी अतः संयुक्त भूमि का पूर्वी भाग अवरुद्ध था अतः ब्रह्मपुत्र नदी मानसरोवर-कैलाश से पूर्व की ओर बहती हुई पूर्व-हिमालय के बंद क्षेत्र से दक्षिण घूमती हुई पूर्व से होकर दक्षिणी मनीपुर, राजमहल, महादेव, सतपुडा आदि पर्वत श्रेणियों के बंद मार्ग के कारण सारे टेथिस सागरीय बालुका मैदान को अपने जल से भरते हुए सारे वर्त्तमान गंगा–यमुना मैदान को पार करती हुआ पश्चिम सागर अरब सागर में प्रवाहित होने लगी|
--तत्पश्चात पुनः भूगर्भीय हलचलों के कारण ब्रह्मपुत्र का प्रवाह यमुना में मिलकर सरस्वती के साथ साथ पश्चिम अरब सागर में गिरने लगा |
९.
--हिमालय के उठने पर, पूर्वी मार्ग बना पुनः हिमालय क्षेत्र में हलचल से इन पर्वत श्रेणियों के अलग होने पर व पूर्वी–दक्षिणी मैदान के पर्वतीय मार्ग के खुल जाने पर पूर्वी सागर का निर्माण हुआ – ब्रह्मपुत्र का प्रवाह पूर्व की ओर हुआ और बंगाल की खाड़ी में गिरने लगी|
--सरस्वती व यमुना दोनों का प्रवाह उलटकर पूर्व की ओर हुआ सरस्वती मथुरा के समीप यमुना से मिलकर बहने लगी यमुना लम्बी दूरी पार करके बंगाल की खाड़ी में गिरने लगी जिसमें पूर्वोत्तर से आकर ब्रह्मपुत्र भी समाहित होने लगी| आज के कथित गंगा-यमुना-सरस्वती–सिन्धु मैदानों का निर्माण प्रारम्भ हुआ| आज भी ब्रह्मपुत्र नदी के बंगाल में बहने वाले 241 किलोमीटर लम्बा मार्ग को जमुना कहा जाता है |
कालान्तर में पश्चिमी भाग के निचले हिमालय की श्रेणियों के भूस्थान के उठने के कारण एवं अरावली श्रेणियों की भूमि की उठान से सरस्वती का प्रवाह अपनी समस्त सहायक नदियों सहित पुनः पश्चिम की ओर होकर वह पुनः अरब सागर में गिरने लगी| यमुना अपना प्रवाह बदलकर दृषवती नदी की सहायक के रूप में सरस्वती में ही मिल गयी | इस प्रकार थार का मरुस्थल हरा-भरा क्षेत्र हो गया प्राणियों एवं सभ्यताओं के पनपने के योग्य
५.गंगा के पृथ्वी पर अवतरण से पहले---
आदिगंगा कहलाने वाली गोमती उस समय प्रयाग में यमुना में गिरती थी | गोमती एक भूमिगत तालाब पातलतोड़-कुआं या आर्टीजियनवैल से निकलती है शायद स्वर्ग से आकर शिव की जटाओं में उलझकर वह हिमालय क्षेत्र में ही प्रवाहित होती रही एवं वहा से भूमिगत जल के रूप में उसका जल गोमतताल तक आता रहा अतः उसे आदिगंगा कहा गया | इसीलिये प्रयाग में त्रिवेणी की तीनों नदियों के संगम की स्मृतियाँ जनमानस में बनी रहीं |
-- गोमती जो गंगा की मूलधारा थी, मानसरोवर क्षेत्र से अन्दर ही अन्दर प्रवाहित होकर निम्न-हिमालयी क्षेत्र में भूगर्भीय क्षेत्र (आज के गोमत ताल) के जलश्रोत से निकलकर स्वतंत्र धारा के रूप में बंगाल की खाडी तक जाती थी,
--तत्पश्चात मथुरा के समीप पुनः प्रयाग के समीप यमुना से मिलने लगी (जो आज उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में गोमत ताल से प्रकट होकर वाराणसी के निकट सैदपुर के पास गंगा में मिल जाती है)|
--गंगा केवल स्थानीय नदी की भांति कैलाश-मनसरोवर क्षेत्र में बहती थी,इसीलिए युगों तक गंगा का शिव की जटाओं में फंसे रहना कहा जाता है,जो पुनः शिवजी द्वारा गंगा रूप में प्रवाहित की गयी| इसीलिये गोमती को आदि-गंगा कहा जाता है| मथुरा में सरस्वती घाट व गंगा घाट आज भी हैं तथा प्रयाग में त्रिवेणी ( गंगा, सरस्वती, यमुना) का संगम माना जाता है, इसे युक्तवेणी कहा जाता है |
--गंगा की मूल धारा आज भी कलकत्ता के समीप पहुंचकर बंगाल के त्रिवेणी स्थान पर तीन धाराओं में बंटकर- हुगली ( या गंगा ) सरस्वती व यमुना –अलग अलग समुद्र में गिरती हैं, इस स्थान को मुक्तवेनी कहा जाता है |
अर्थात कभी तीनों नदिया सरस्वती, यमुना व गोमती आदि-गंगा के नाम रूप में तीनों पृथक पृथक धाराओं में पूर्व समुद्र, बंगाल की खाड़ी तक पहुंचतीं थीं |
६. गंगावतरण ---यही समय गंगा के अवतरण का था,-
हिमालय की अन्य मध्य क्रम की श्रेणियां उठने से हुई हलचलों से विशाल प्रवाह व तीव्र गति वाली चंचल नदी गंगा जो अभी तक उच्च हिमालय में उत्तर की ओर ( स्वर्ग में ) बहती थी पर्वत श्रृंखलाओं की उथल-पुथल में यमुनोत्री से पूर्वी पर्वतों से दक्षिण की तरफ भारत भूमि में उतरकर बहने लगी ( सरस्वती के श्राप या भगीरथ की तपस्या या शिव की कृपा से जटाओं से मुक्ति रूप में या भागीरथ का अभियांत्रिकी कौशल ) एवं गंगा का विशाल प्रवाह समस्त टेथिस वालुका मैदान में सागर तक प्रवाहित होने लगा जो मानसरोवर क्षेत्र से अपने
१०.
अंत-भूगर्भीय मार्ग को दक्षिणमुखी एवं बाह्य-भूतलीय करते हुए हिमालय पार कर एवं विभिन्न हिमालयी नदियों को समाहित करके भारतीय मैदान में उतरी|
४----------------------------------------------
गंगा अवतरण के समय छोटी नदी थी जो उत्तर से निकल कर पहले यमुना में मथुरा के समीप सरस्वती के साथ मिलती थी, पुनः आगे खिसक कर प्रयाग में मिलने लगी| हिमालय के पुनः उठने पर यमुना के पश्चिम में सरस्वती की ओर चले जाने के कारण गंगा इस क्षेत्र की प्रमुख नदी हुई और बंगाल की खाड़ी तक प्रवाहित होने लगी|
वस्तुतः यमुना व सरस्वती के पश्चिम में चले जाने पर इस मध्य क्षेत्र में जल की कमी होजाने पर एक नदी की अत्यंत आवश्यकता हुई अतः गंगा को स्वर्ग या उच्च पर्वत श्रेणियों से भारत भूमि पर उतारा गया जो भागीरथ–शिव घटनाक्रम का आधार बना| गंगा के इस क्षेत्र में प्रवाहित होने पर यह क्षेत्र उसके द्वारा लाई गयी मिट्टी,जमा की गयी सिल्ट आदि से यह क्षेत्र उपजाऊ होकर धन-धान्य संपन्न संपन्न होने लगा एवं सभ्यता सरस्वती से आप्लावित क्षेत्र से इस ओर बढ़ने लगी| आज के विश्व प्रसिद्द गंगा सिन्धु का मैदान का निर्माण हुआ|
७.हिमालय के उठने व अन्य पश्चिम व मध्य क्षेत्रीय हलचलों के फलस्वरूप ---
--यमुना पुनः पश्चिमाभिमुख होकर सरस्वती के साथ पश्चिमसागर में प्रवाहित होने लगी, मानसरोवर एवं हिमालय के पश्चिमी क्षेत्र में सतलज आदि विभिन्न नदियों के उद्गम से सरस्वती की सिन्धु सहित ६ बहनों का प्रादुर्भाव हुआ, ब्रह्मपुत्र का शेष पश्चिमी भाग दृशवती के
नाम से यमुना-सरस्वती की सहायक नदी हुआ| फलस्वरूप सरस्वती अरब सागर की ओर बहते हुए एक विशाल महानदी, नदीतमा के रूप में आर्यावर्त की जीवन दायिनी के रूप में प्रतिष्ठित हुई|
यही वह काल था जब मानसरोवर-कैलाश क्षेत्र में मानव का जन्म हुआ, जहां से उतरते हुए सरस्वती के किनारे सप्तसिंधु क्षेत्र में प्रथम मानव सभ्यता की उत्पत्ति हुई तथा वैदिक सभ्यता फली-फूली | सरस्वती-दृषवती क्षेत्र में सप्तचरुतीर्थ में प्रथम उन्नत मानव का विकास हुआ एवं नर्मदा क्षेत्र में विक्सित मानव उन्नति करता हुआ नई-नई सभ्यताएं स्थापित करता हुआ उत्तर की तरफ बढा एवं दोनों ने मिलकर एक अति उन्नत सभ्यता को जन्म दिया जो शायद हरप्पा सभ्यता, सरस्वती सभ्यता के नाम से प्रसिद्द हुई, यह वैदिक पूर्व सभ्यता थी एवं वैदिक सभ्यता का प्रारम्भ हो चला था |
चित्र ७..सरस्वती, सिन्धु, सतलज, दृश्वती, यमुना, गंगा ..चित्र-८..सरस्वती +सतलज, +यमुना, +दृश्वती ....
११.
चित्र ९..—सप्तसिन्धु----सतलज सहित पांच नदियाँ एवं सिन्धु –सरस्वती में समाहित ----
८.लगभग त्रेता के अंतिम काल में-पुनः उच्च-हिमालयी एवं उत्तर-पश्चम भारतीय भूगर्भीय हलचलों के कारण भूमि उठने से ---सरस्वती का उद्गम मानसरोवर से हटकर यमुनोत्री के निकट, प्लक्ष-प्रसवन होजाने से, सतलज व सहायक नदियों का जल पश्चिम में सिन्धु में एवं यमुना-दृश्वती का जल पूर्व में गंगा में गिर जाने के कारण सरस्वती सूखने लगी एवं महाभारत काल तक एक बरसाती नदी की भांति रह गयी,सरस्वती की सहायक सिन्धु नदी आज की एक बड़ी नदी की भांति अस्तित्व में आयी| यमुना पूर्व की ओर बहकर अपनी अन्य सहायक नदियों सहित प्रयाग में गंगा से मिल गयी एवं महान नदी गंगा प्रादुर्भाव हुआ| इस प्रकार आज के विश्व-प्रसिद्ध गंगा-सिन्धु मैदान का निर्माण पूर्ण हुआ|
९.सरस्वती का विलुप्तीकरण – कालान्तर में अरावली पर्वत श्रंखला के उत्थान से थार क्षेत्र व सरस्वती व उसकी सहायक नदियों के क्षेत्र में भूगर्भीय हलचलों के कारण उत्तर-पश्चिम की नदियों ने पुनः मार्ग परिवर्तन किये जो इस क्षेत्र के लिए घातक सिद्ध हुए | यमुना, दृषवती नदी के साथ पुनः पूर्व की ओर मुड़कर गंगा-मैदान की ओर प्रवाहित होकर प्रयाग में गंगा से जा मिली और गंगा-यमुना का विश्व प्रसिद्द मैदान एवं विश्व का अर्वाधिक उपजाऊ क्षेत्र बना जहाँ भारतीय सभ्यता फली-फूली| सरस्वती की मुख्य सहायक नदी सतलज व घग्घर अपनी सहायक नदियों सहित पश्चिम में मुड़कर एक अन्य नदी सिन्धु से मिल गयी जो स्वयं सरस्वती की सहायक नदी
थी
सरस्वती का आदि-मूल प्रवाह जो मानसरोवर के निकट ग्लेशियर से निकलता था भूगर्भीय हलचलों के कारण पूर्व-दक्षिण की ओर उलटकर गंगा की सहायक अलकनंदा में मिलकर गंगा के साथ बहने लगा| इस प्रकार सरस्वती को जल मिलना दोनों ओर से बंद होगया उत्तराखंड हिमालय के आखिरी भारतीय गाँव मांडा या माना में यह संगम आज भी स्थित है यहाँ पवित्र देवात्मा सरस्वती नदी, ऋषि गंगा व अलकनंदा नदियों का मिलन होता है, जो भागीरथी “गंगा” की मुख्य सहायक नदियाँ हैं| यंहा जल अमृत जैसा निर्मल व पवित्र है| इसीलिये गंगा का महत्त्व बढ़ा उसे माता की संज्ञा प्राप्त हुई |
१२.
चित्र१०
–सरस्वती, अलकनंदा व ऋषिगंगा का संगम ---माना गाँव ( भारत)...समीप
ही अलकापुरी गाँव ..
इस प्रकार सरस्वती का प्राकृतिक मार्ग अवरुद्ध हुआ, वह मार्ग बदलकर बहने लगी। बदले मार्ग पर किसी भी सहायक नदियों द्वारा इसे हिमालय से जल नहीं मिला और यह वर्षा जल से बहने वाली नदी बनकर रह गई। धीरे-धीरे राजस्थान क्षेत्र में मौसम गर्म होता गया और वर्षा जल भी न मिलने के कारण सरस्वती नदी सूखकर विलुप्त हो गई।
चित्र-११ .. चित्र-१२ ...
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