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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

सोमवार, 3 जुलाई 2023

मेरे हिन्दी गीत--मेरे गीत सुरीले क्यों हैं का संस्कृत रूपांतर---

....कर्म की बाती,ज्ञान का घृत हो,प्रीति के दीप जलाओ...

मेरे हिन्दी गीत--मेरे गीत सुरीले क्यों हैं का संस्कृत रूपांतर--राहुल खटे, हिन्दी अधिकारी महाराष्ट्र द्वारा...

     मम गीतानि किमर्थं सुमधुराणि सन्ति ?---राहुल खटे

 मम गीतानि आगत्य त्वं किं प्रतिष्ठितवान्,

 गीतस्य स्वरः सुमधुरः आसीत् ।

 वर्णमाला अक्षराणि च मधुरतया सम्मताः आसन्,

 शब्दः मधुपूर्णः अभवत् ।

 

 त्वं यः विचारेण आगन्तुं आरब्धवान्,

 मम कमलपक्षतः गीतानि प्रफुल्लितुं आरब्धानि।

 मनोभावेषु त्वया कृतं नृत्यं, .

 गीत ब्रज की भगति- बावरी होगया।  ... मम गीतेषु.....

 

 प्रेमभक्ति में मग्न हो, .

 त्वं मम मनसः वीथिकायां आरब्धवान्।

 रसधर में पन्ना पन्ना अलंकृत प्रेम, .

 गीतं शुद्धम् अस्ति, मीरायाः स्थितिः अस्ति।

 

 भव हो गया चितवन के मन की प्रहेलिका,

 गीत कबीरा के निर्गुण सबद हो गया।

 श्लोकैर्भूषयित्वा स्तुतश्च त्वया ।

 मधुपुरी एक चतुर नागरिक बन गई।  .....मम गीतेषु.....

 

 अहं सर्वदा मम शीतलतायां गीतानि गायन् आसीत्।

 त्वं स्मितं करोषि, स्मितं करोषि।

 गीतं भवन्तं शनैः शनैः आह्वयितुं आरब्धवान्,

 मन हो गया है रमणीय कुसुम वल्लरी।

 

 त्वं यः मां हसन् आह्वयति स्म,

 दूरतः वञ्चितः भूत्वा प्रलोभितः।

 भव भवर हो गया, गुनगुनाना शुरू हुआ,

 गीतं कालिका-नवल-पङ्खुरी अस्ति।  .....मम गीतेषु...

 

 यदा त्वया कलिकाभ्यां महिमाः अपहृताः ।

 गजरस्य अङ्कुरः निरन्तरं प्रफुल्लितः आसीत् ।

 अङ्कपूरणार्थं गच्छन्तीनां पुष्पाणां चयनेन ।

 गीत पल्लव सुमन अंजुरी होगा है।

 

 तव स्वरस्य माधुर्यं प्राप्तम्,

 गीतं राधायाः प्रियं वेणुः अभवत् ।

 त्वं भक्तिभावेन प्रार्थितवान्,

 गीत कान्हा के प्रिय साँवरी था।  .... मम गीतेषु....

मेरे गीत सुरीले क्यों हैं.... डॉ श्याम गुप्त...


मेरे गीतों में आकर के तुम क्या बसे,
गीत का स्वर मधुर माधुरी होगया।
अक्षर अक्षर सरस आम्रमंजरि हुआ,
शब्द मधु की भरी गागरी होगया।

तुम जो ख्यालों में आकर समाने लगे,
गीत मेरे कमल दल से खिलने लगे।
मन के भावों में तुमने जो नर्तन किया,
गीत ब्रज की भगतिबावरी होगया।      ...मेरे गीतों में .....

प्रेम की भक्ति सरिता में होके मगन,
मेरे मन की गली तुम समाने लगे।
पन्ना पन्ना सजा प्रेम रसधार में,
गीत पावन हो मीरा का पद होगया।

भाव चितवन के मन की पहेली बने,
गीत कबीरा का निर्गुण सबद होगया।
तुमने छंदों में सज कर सराहा इन्हें ,
मधुपुरी की चतुर नागरी होगया।         .....मेरे गीतों में.....

मस्त में तो यूहीं गीत गाता रहा,
तुम सजाते रहे,मुस्कुराते रहे।
गीत इठलाके तुम को बुलाने लगे,
मन लजीली कुसुम वल्लरी होगया।

तुम जो हंस हंस के मुझको बुलाते रहे,
दूर से छलना बन कर लुभाते रहे।
भाव भंवरा बनेगुनगुनाने लगे ,
गीत कालिका-नवल-पांखुरी होगया।       .....मेरे गीतों में...

तुम ने कलियों से जब लीं चुरा शोखियाँ ,
बनके गज़रा कली खिलखिलाती रही।
पुष्प चुनकर जो आँचल में भरने चले ,
गीत पल्लव सुमन आंजुरी होगया 

तेरे स्वर की मधु माधुरी मिल गयी,
गीत राधा की प्रिय बांसुरी होगया 
भक्ति के भाव में तुमने अर्चन किया,
गीत कान्हा की प्रिय सांवरी होगया           .... मेरे गीतों में....


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