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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 24 अप्रैल 2010

पानी की बूँद --जलचक्र .....

में पानी की वही बूँद ,
इतिहास मेरा देखा भाला |
मैं शाश्वत विविध रूप मेरे,
सागर घन वर्षा हिम नाला। 1

धरती इक आग का गोला थी,
जब मार्तंड से विलग हुई।
शीतल हो अणु परमाणु बने,
बहु विधि तत्वों की सृष्टि हुई । 2

आकाश व धरती मध्य बना,
जल वाष्प रूप में छाया था।
शीतल होने पर पुनः वही,
बन प्रथम बूँद इठलाया था । 3

जग का हर कण कण मेरी इस ,
शीतलता का था मतवाला
मैं पानी की वही बूँद,
इतिहास मेरा देखा भाला।। 4

फिर युगों युगों तक वर्षा बन,
मैं रही उतरती धरती पर ।
तन मन पृथ्वी का शीतल कर,
मैं निखरी सप्त सिन्धु बनकर। 5

पहली मछली जिसमें तैरी,
मैं उस पानी का हिस्सा हूँ।
अतिकाय जंतु से मानव तक,
की प्यास बुझाता किस्सा हूँ। 6

रवि ने ज्वाला से वाष्पित कर,
फिर बादल मुझे बना डाला।
मैं पानी की वही बूँद,
इतिहास मेरा देखा भाला॥ 7

मैं वही बूँद जो पृथ्वी पर,
पहला बादल बनकर बरसी।
नदिया नाला बनकर बहती,
झीलों तालों को थी भरती। 8

राजा संतों की राहों को,
मुझसे ही सींचा जाता था।
मीठा ठंडा और शुद्ध नीर,
कुओं से खींचा जाता था। 9

बन कुए सरोवर नद झीलें ,
मैंने सब धरती को पाला।
मैं वही बूँद हूँ पानी की ,
इतिहास मेरा देखा भाला॥ 10

ऊँचे ऊँचे गिरि- पर्वत पर,
शीतल होकर जम जाती हूँ।
हिमवानों की गोदी में पल,
हिमनद बनकर इठलाती हूँ। 11

सविता के शौर्य रूप से मैं,
हो द्रवित भाव जब बहती हूँ।
प्रेयसि सा नदिया रूप लिए,
सागर में पुनः सिमटती हूँ। 12

मैं उस हिमनद का हिस्सा हूँ,
निकला पहला नदिया नाला।
मैं पानी की वही बूँद,
इतिहास मेरा देखा भाला॥ 13

तब से अब तक मैं वही बूँद,
तन मन मेरा यह शाश्वत है।
वाष्पन संघनन व द्रवणन से ,
मेरा यह जीवन नियमित है। 14

मैं वही पुरातन जल कण हूँ ,
शाश्वत हैं नष्ट न होते हैं ।
यह मेरी शाश्वत यात्रा है,
जलचक्र इसी को कहते हैं। 15

सूरज सागर नभ महि गिरि ने,
मिलकर मुझको पाला ढाला।
मैं ही पानी बादल वर्षा,
ओला हिमपात ओस पाला। 16

मेरे कारण ही तो अब तक,
नश्वर जीवन भी शाश्वत है।
अति सुखाभिलाषा से नर की,
अब जल थल वायु प्रदूषित है । 17

सागर सर नदी कूप पर्वत,
मानव कृत्यों से प्रदूषित हैं।
इनसे ही पोषित होता यह,
मानव तन मन भी दूषित है। 18

प्रकृति का नर ने स्वार्थ हेतु,
है भीषण शोषण कर डाला।
मैं पानी की वही बूँद ,
इतिहास मेरा देखा भाला॥ 19

कर रहा प्रदूषण तप्त सभी,
धरती आकाश वायु जल को।
अपने अपने सुख मस्त मनुज,
है नहीं सोचता उस पल को। 20

पर्वतों ध्रुवों की हिम पिघले,
सारा पानी बन जायेगी।
भीषण गर्मी से बादल बन,
उस महावृष्टि को लायेगी। 21

आयेगी महा जलप्रलय जब,
उमड़े सागर हो मतवाला।
मैं वही बूँद हूँ पानी की ,
इतिहास मेरा देखा भाला॥ २२.

7 टिप्‍पणियां:

दिलीप ने कहा…

कर रहा प्रदूषण तप्त सभी,
धरती आकाश वायु जल को।
अपने अपने सुख मस्त मनुज,
है नहीं सोचता उस पल को। 20

पर्वतों ध्रुवों की हिम पिघले,
सारा पानी बन जायेगी।
भीषण गर्मी से बादल बन,
उस महावृष्टि को लायेगी। 21
sahi samdesh diya...paani ko bachao varna sheeghra hi bahut mehnga bikega ye paani...

sansadjee.com ने कहा…

संक्षेप में कहें तो बिन पानी सब सून..........

मनोज कुमार ने कहा…

जल चक्र शीर्षक कविता के ज़रिए एक बहुत ही उत्तम संदेश देने की कोशिश की है।

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" ने कहा…

बहुत सुन्दर कविता है ! नदी जैसी कल कल करती, आगे बहती हुई, अविरल धारा से, मन को मोह लेती और एक अच्छी सन्देश देती कविता ... आज ज़रूरत है पानी को बचने की ... आपकी कविता अच्छी भी है और समयोपयोगी भी ...

shyam gupta ने कहा…

धन्यवाद.

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

मैं उस हिमनद का हिस्सा हूँ,
निकला पहला नदिया नाला।
मैं पानी की वही बूँद,
इतिहास मेरा देखा भाला॥

बहुत सुंदर ....!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत खूबसूरत शब्दों के चयन के साथ एक खूबसूरत कविता....सुन्दर रचना के लिए बधाई