ब्लॉग आर्काइव
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
शुक्रवार, 25 जुलाई 2008
विचारक्रांति एवं भोतिक उन्नति
भौतिक उन्नति ,नवीन आविष्कार, कला,संस्कृति व मानव जीवन को "सत्यम,शिवम्,सुन्दरम "भावः से समतल मार्गे पर चलाने के लिए होते है। यदि वहीउचित व श्रेष्ठ विचारों से संचालित न हों तो कुविचारों या विचारहीनता से पोषित खलनायक की भांति मानवता की अवनति के साधक बन जाते हैं । दूरदर्शन , सचल टेलेफोन ,रेडियो आदि का हर बच्चे के हाथ मैं ,युवाओं के हाथ में होना भ्रष्ट आचरण के कारन हो रहे हैं । अत्यधिक भौतिक साधनों का प्रयोग व उपलब्धता व्यक्ति को उच्च वैचारिक अकाल , कुविचारों व असत्य विचारों में रत करके उसे अनास्थावादी व रोटी, कपड़ा और मकानतक सीमित कर देता है । अतः आज विचारक्रांति की महती आवश्यकता है।
मंगलवार, 8 जुलाई 2008
Just thinking
People usually talk about positive and negative thinking specially the young energetic people now-a-days, but in my opinion there is nothing like this, instead it should be "the just thinking".
The commonly given example - the half-full and half-empty glass of water - half-full water is optimistic thinking and the other the passimistic thinking', in fact the just thinking should be - why the glass is half empty...the reasons may be either there is shortage of water and the person is saving water, not to waste by taking full glass and throwing the rest; or why the glass is half-full, either the person is only that much thirsty and doesn't want to waste the water or there is shortage of water, and so on.
The commonly given example - the half-full and half-empty glass of water - half-full water is optimistic thinking and the other the passimistic thinking', in fact the just thinking should be - why the glass is half empty...the reasons may be either there is shortage of water and the person is saving water, not to waste by taking full glass and throwing the rest; or why the glass is half-full, either the person is only that much thirsty and doesn't want to waste the water or there is shortage of water, and so on.
रविवार, 6 जुलाई 2008
प्रेम शाश्वत है
प्रेम शाश्वत है , शाश्वतता प्रेम से ही है। सृष्टि के प्रादुर्भाव ,स्थिति ,लय व पुनर्सृजन की निरंतरता का आधार प्रेम ही है । सृष्टि ,प्रेम,से है ,प्रेम ही सृष्टि है ।
सृष्टि के कण-कण मैं जो स्पंदन ,क्रंदन ,नर्तन व निलयनहै ,सभी कुछप्रेम ,प्रेम की अभिव्यक्ति ,एवं प्रेम की परिणति ही है .संयोग प्रेम है ,वियोग प्रेम है ,स्थिति प्रेम है .जीवन की अभिव्यक्ति ,कृति व सांसारिकता का भवचक्र प्रेम सेही है .
विश्व मैं जो कुछ भी घटता है ,प्रेम की ही अभिव्यक्ति है ,और जो कुछ नहीं होता वह भी प्रेम की ही अभिव्यक्ति है (या अनभिव्यक्ति है ).लौकिक संसार के आचार व्यवहार ,संचार व संगठन की जो मूल शक्ति "एक्य" है ,आपसी प्रेम की ही अभिव्यक्ति है । एकता ,विश्व की सबसे बड़ी शक्ति है और उस शक्ति का बीज मूल प्रेम ही है। । प्रेम काव्य ,महाकाव्य मैं पढें ।
सृष्टि के कण-कण मैं जो स्पंदन ,क्रंदन ,नर्तन व निलयनहै ,सभी कुछप्रेम ,प्रेम की अभिव्यक्ति ,एवं प्रेम की परिणति ही है .संयोग प्रेम है ,वियोग प्रेम है ,स्थिति प्रेम है .जीवन की अभिव्यक्ति ,कृति व सांसारिकता का भवचक्र प्रेम सेही है .
विश्व मैं जो कुछ भी घटता है ,प्रेम की ही अभिव्यक्ति है ,और जो कुछ नहीं होता वह भी प्रेम की ही अभिव्यक्ति है (या अनभिव्यक्ति है ).लौकिक संसार के आचार व्यवहार ,संचार व संगठन की जो मूल शक्ति "एक्य" है ,आपसी प्रेम की ही अभिव्यक्ति है । एकता ,विश्व की सबसे बड़ी शक्ति है और उस शक्ति का बीज मूल प्रेम ही है। । प्रेम काव्य ,महाकाव्य मैं पढें ।
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