ल.वि.वि। प्रशासन ने परिसर मैं गुलदस्ता लाने पर प्रतिबन्ध लगाया है।, क्यों ? यदि यही काम हिंदू संगठन करें तो इन प्रगतिबादी लोगो को ग़लत लगता है। यदि वि.वि। चाहता है तो कहीं कुछ उचित होगा। इधर कोई राजेन्द्र घोड्पकरकहते हैं की श्री राम सेना के लोग आदमी नहीं , उनका विरोध शराब से नहीं महिलाओं से है, मुझे तो एइसे लोग ही आदमी नहीं लगते, जो यह भी नहीं सोच पाते कियदि पहले किसी ने कोई कार्य नहीं किया तो वह आगे नहीं किया जायेगा , क्या एइसे लोग अपनी बेटियों व बहुओं को शराब पीने व बेचने पबों मैं भेजते हैं? ये लोग सिर्फ़ इसलिए लिखते हैं कि अखवार मैं छपे । सब बाज़ारबाद का धंधा है।
दूसरे तरफ़ अखिलेश आर्येंदु लिखते हैं कि लाभ शुभ है या नहीं यह देखना ही चाहिए , सामाजिक। आर्थिक, मानसिक, सांस्कृतिक, प्राकृतिक, अध्यात्मिक और मानवीय व्यवस्था को शुभ व संतुलित रखने के लिए हर हाल मैं शुभ को ही लाभ बनाना होगा। बधाई के पात्र हैं साफ- साफ़ लिखने वाले।
पल्लवी भटनागर- मनोचिकित्सक ल.वि.वि। कहती हैं पहले न लव मर्रिजें अधिक होतीं थीं ,न तलाक - बहुत सारगर्भित आलेख है,महिलायों की उच्छ्सृन्ख्लता बढ़ने से ही समाज मैं गन्दगी फेलती है, और हवा देने वाले ऐसे ही प्रगतिवादी लोग ।
शास्त्रों का कथन है कि मनोरंजन कभी भी कमाई का साधन नहीं होना चाहिए ,अतः खेल, व मनोरंजन के साधन सिर्फ़ व्यक्तिगत मनोरंजन तक ही सीमित रहने चाहिए , बाज़ार मैं नहीं आने चाहिए , इधर पहली बार कुड़ी-डी.जे। ,एवं टीवी। चेनलों पर बच्चों के उल जुलूल प्रोग्रामों का सिलसिला अर्थात वही धंधा -करने का धंधा , चाहे जो भी करना पड़े .
यह सिर्फ़ बाज़ार बाद ही है और कुछ नहीं । सामाजिक सरोकार से किसे मतलब है ? लाभ होना चाहिए --शुभ हो या न हो !
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009
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