शिव का अर्थ है 'कल्याण ', शिव कल्याण के देवता हैं। विष्णु -पालक हैं , ब्रह्मा -सृष्टि के । वास्तव मैं यह तीन -सृष्टि, समाज, व संसार की नियामक शक्तियां हैं। तथा ये सदा ही समाज मैं रहते हैं। शिव -भावः --अर्थात वे शक्तियां जो सहज एवं सबका कल्याण ही चाहतीं हैं, चाहे वह जैसा भी हो , उनके स्वयं के कर्मों का वे स्वयं ही फैसला करें। ये लोग या भाव या शक्तियां, विचार शिव की भांति भोले -भंडारी की तरह सब का ही समन्वय व भला सोचते व करने की कोसिस करते हैअधिक आगे के सोच विचार के सब को वरदान दे देते हैं। समताबादी सब चलता है, ये भी तो मानव हैं ,आदि सोचवाले संगठन ,व्यक्ति शिव ही हैं।
परन्तु विष्णु -भावः अर्थात -शासन ,धर्म आदि नियामक सत्ताएं, संस्थायें, व लोग व विचार -जिन्हें समाज चलाना है, जो आज या भविष्य मैं मानव या संसार के व्यवहार आदि के उत्तरदायी ठहराया जायेगा , वे हर तरह के साम, दाम, दंड, विभेद द्वारा ,व्यक्ति व समाज को नियमित करने के लिए कठोर ,सुद्रढ़ नियमों पर चलाने का प्रयत्न करते हैं ।
ब्रह्मा --अर्थात -शाश्वत नियम-नीति , क़ानून बनाने वालीं संस्थायें या लोग व सत्ताएं या विचार -समाज को
कायदे मैं रखने वाले तथ्य देते हैं।
शक्ति - अर्थात विशेसग्य ,प्रोफेशनल लोग ,संस्थायें, व विचारशीलता भाव -जो उपरोक्त तीनों को कल्याण कारी मार्ग पर चलने को प्रेरित व राहें बतातीं हैं । तभी सभी देवताओं की शक्ति रूप पत्नियां लक्ष्मी ,पार्वती व ब्रह्माणी हैं । शक्ति -अर्थात विशेसग्य -पॉवर ,इनर्जी के विना कोई कार्य नहीं कर सकता ।
शिव -देवाधिदेव हैं क्योंकि प्रत्येक कार्य मैं जब तक कल्याण -भाव नहीं सम्मिलित होगा ,वह कार्य -अकर्म ही माना जायेगा । प्रत्येक कार्य को -ब्रह्मा, विष्णु ,महेश की भांति -सत्यम, शिवम्, सुन्दरम होना चाहिए , तभी वह 'कृतित्व ' होता है। अतः समाज के तीनों विभागों को आपस मैं तालमेल से कार्य करना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति को भी इन सभी की आराधना करनी मम चाहिए । तभी तो राम चरित मानस मैं राम कहते हैं-- ।
मम -द्रोही ,शिव दास , शिव - द्रोही , मम दास ,
ते नर करहिं कल्प भर ,घोर नरक मंह वास।
यही शिवत्व -तत्व है। भारतीय व हिंदुत्व की सामाजिकता -भाव , समन्वयता -भाव ,विश्वत्व भाव ।
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
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