ब्लॉग आर्काइव
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
शनिवार, 28 मार्च 2009
उनहोंने दुनिया को खेलना सिखाया -रामचंद्र गुहा
इस तथा कथित इतिहासकार ने सत्य ही कहा है किमुझे उस विश्व ने आकार दिया है जिसका निर्माण और विनिर्माण विक्टोरिया युग के वैज्ञानिकों ने किया '--इन लोगों को विक्टोरिया युग से पीछे के इतिहास की कोई जानकारी नहीं है , या अहम् मैं भूले हुए हैंया अज्ञान- मैं । --उन्होंने दुनिया को खेलना नहीं सिखाया ,खेल तो आदिम युग से ही खेलते आरहा है मानव -हाँ उनहोंने , स्वयं के प्रतिष्ठापन के लिए कुछ खेलों को नियमों आदि मैं बांधकर मशीन बनाकर मानव को धन ,पदके चक्कर मैं फसां कर -स्वाभाविक खेल -खेल से दूर- धन्धेबाज़ बना दिया।वैसे भी कुछ समय पहले समाचार था की क्रिकेट का जन्म बेल्जियम मैं हुआ था इंग्लॅण्ड मैं नहीं । योरप को स्वयं नहीं पता क्योंकि जब क्रिकेट का जन्म हुआ तब वो लोग नंगे घुमते थे । क्या आपको नहीं पता -गोकुल मैं श्री कृष्ण क्रिकेट खेला करते थे ? और मज़ा देखिये की क्रिकेट के जूनून मैं गेंद के पीछे साँपों के कुण्डमैं कूद पड़े । हाँ उन्होंने(इंग्लेंड) इन सभी खेलों को जन- जन से दूर अभिजात्य वर्ग का खेल बनादिया और आज धंधे का ।
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