प्यार का जो खिला है इन्द्रधनुष ,
जो है कायनात पर सारी छाया हुआ ।
प्यार के गहरे सागर मैं दो छोर पर ,
डूब कर मेरे मन मैं समाया हुआ।
इसके झूले में , मैं झूलती हूँ मगन ,
सुख से लवरेज है मेरा मन मेरा तन।
--इन्द्र धनुष उपन्यास से
----मेरे विचारों की दुनियां -मेरे अपने विचार एवं उन पर मेरा स्वयं का व्याख्या-तत्व तथा उनका समयानुसार महत्व .... --My myriad thoughts, their personal interpretations and their relevance...http://shyamthot.blogspot.com
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