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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

शनिवार, 20 जून 2009

गरीबों की सहायता ,और सहभोज की नीति -

समाचार है किडाकू घनश्याम को वहाँ की लोकल जनता सहायतां कर रही थी । एक तो लोकल जनता को सदा वहीं रहना है,पुलिस तो शहरों में ही नहीं उपलब्ध होती , दूर दराज़ क्षेत्रों में जनता का क्या विश्वास जीतेगी ? दूसरे डाकू लोग एक नीति के तहत जनता को सहायता का लालच देकर अपने पक्ष में किए रहते हैं ताकि समय पर उन्हें सहायता मिले । वैसे उन्हें उस जनता से कोई लगाव नहीं ,अन्यथा वे उन्हें ही क्यों लूटते ।
सहभोज की नीति भी उसी भावना व नीति के तहत है , राजकुमार के जन्म पर ,कभी -कभी एक बार गरीबों के साथ खाना खाने का नाटक ।कौन ४-५,साल के लिए वहाँ रहना है, ताकि समय आने पर सहायता प्राप्त हो , वोट मिलें ।। जैसे महाराजों ( अंग्रेजी जमाने के ) का कभी -कभी जनता दरवार, । क्योंकि सामान्य जनता की याददास्त व आकान्क्ष्हायें बहुत संक्षिप्त होतीं हैं ,। हमारे यहाँ तो राजा ,राजकुमार पूजा अभी भी जन-मानस में समाई हुई है। क्या फर्ख है दोनों धंधों में ?

1 टिप्पणी:

Urmi ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है आपने! मैं आपकी बातों से पूरी तरह से सहमत हूँ! पुलिसवालों का तो नाम ही मत लीजिये! जब ज़रूरत होती है तब नहीं पहुँचते और काम तमाम होने के बाद आते हैं और फ़िर गवाही की तलाश करते हैं!