जग की भीड़-भाड़ से होकर,
दूर अगर तू शान्ति चाहता |
जग की भीड़-भाड़ से होकर ,
त्रस्त अगर विश्रांति चाहता |
आजाओ इस निर्जन वन में ,
नदी किनारे खुले गगन में |
नीरवता के मौन -मुखर में ,
तुझको मन की शान्ति मिलेगी |
चुप-चुप इस निश्शब्द सघन में,
तन-मन की विश्रांति मिलेगी ||
चुप-चुप चन्दा चले ताल में,
नीरवमय आलोक बहाए |
चुप चुप चपल चांदनी चम-चम,
नदिया के जल को चमकाए |
पादप गण निस्तब्ध खड़े हैं ,
नीरवता हो स्वयं सोरही |
रह रह पवन बहे चुप सर सर,
नीरवता हो साँस ले रही |
किसी रात्रिचर के चलने से,
पत्ता जब चुप चाप खड़कता |
'मुझ में भी जीवन है ',कहने,
नीरवता का ह्रदय धड़कता |
सारस और वकों के जोड़े ,
एक टांग पर खडे सोरहे |
जैसे ध्यान धरे योगीजन ,
आत्म ज्ञान में लीन होरहे |
इस नीरव निश्शब्द विजन में,
अपने अन्तर में खोजायें |
आत्म लीन जब चित हो जाए,
मन के मौन मुखर होजायें |
अनहद का संगीत बजे जब,
कानों में बन कर शहनाई |
परम शान्ति का अनुभव होगा ,
जैसे मिले मोक्ष सुखदाई |
नीरवता के मौन मुखर में ,
तुझको मन की शान्ति मिलेगी |
चुप चुप इस निस्तब्ध विजन में ,
तन मन की विश्रांति मिलेगी ||
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009
रविवार, 25 अक्टूबर 2009
वही सब कुछ ---
वही सब कुछ सब जगह है,
वही मैं , तू और वह है ।
वही मिट्टी,वही पानी,
वो हवा की रीति पुरानी।
पंछी और बसंत बहारें,
भंवरे गुनु-गुनु बचन उचारें।
वही कृष्ण हैं, राम वही हैं,
राधा और घनस्याम वही हैं।
पर्वत पर चन्दा है वो ही,
दुनिया का धंधा है वो ही।
मस्जिद भी है,मन्दिर भी है,
तुलसी भी है शंकर भी हैं।
वही अखवार हैं, उनमें-
ख़बर भी वो ही छपतीं हैं।
वही सड़कें जहाँ पर रोज़-
मोटर-कार लड़ती हैं।
वही हैं भीड़ से लथ-पथ,
ये सारे रास्ते सब पथ।
वही हैं खोमचे रेहडी ,
वही होटल वही हल चल।
वही आना वही जाना,
लोग दुःख दर्द के मारे |
पथों पर घूमती गायें,
वही इंसान हैं सारे।
भला बंगलौर या लखनऊ,
रहें मद्रास या दिल्ली |
सभी कुछ एक सा ही है,
नहीं कुछ और न्यारा है।
वो रहता है जो कण-कण में ,
जो रहता है सभी जन में।
सभी दर हैं उसी के प्रिय,
वही दुनिया से न्यारा है।
जहाँ पर वक्त के झोंके,
पढाते शान्ति की भाषा |
झरोखे प्रगतिं के जहाँ पर,
कर्म के कहते परिभाषा |
सिखाता धर्म अनुशासन ,
रहें हिल मिल जहाँ सब जन |
हमें अपना वतन सारा ही,
हिन्दुस्तान प्यारा है ||
वही मैं , तू और वह है ।
वही मिट्टी,वही पानी,
वो हवा की रीति पुरानी।
पंछी और बसंत बहारें,
भंवरे गुनु-गुनु बचन उचारें।
वही कृष्ण हैं, राम वही हैं,
राधा और घनस्याम वही हैं।
पर्वत पर चन्दा है वो ही,
दुनिया का धंधा है वो ही।
मस्जिद भी है,मन्दिर भी है,
तुलसी भी है शंकर भी हैं।
वही अखवार हैं, उनमें-
ख़बर भी वो ही छपतीं हैं।
वही सड़कें जहाँ पर रोज़-
मोटर-कार लड़ती हैं।
वही हैं भीड़ से लथ-पथ,
ये सारे रास्ते सब पथ।
वही हैं खोमचे रेहडी ,
वही होटल वही हल चल।
वही आना वही जाना,
लोग दुःख दर्द के मारे |
पथों पर घूमती गायें,
वही इंसान हैं सारे।
भला बंगलौर या लखनऊ,
रहें मद्रास या दिल्ली |
सभी कुछ एक सा ही है,
नहीं कुछ और न्यारा है।
वो रहता है जो कण-कण में ,
जो रहता है सभी जन में।
सभी दर हैं उसी के प्रिय,
वही दुनिया से न्यारा है।
जहाँ पर वक्त के झोंके,
पढाते शान्ति की भाषा |
झरोखे प्रगतिं के जहाँ पर,
कर्म के कहते परिभाषा |
सिखाता धर्म अनुशासन ,
रहें हिल मिल जहाँ सब जन |
हमें अपना वतन सारा ही,
हिन्दुस्तान प्यारा है ||
लेबल:
कर्म,
कृष्ण. शंकर,
न्यारा,
प्रगति,
राम,
शान्ति,
हिन्दुस्तान
शनिवार, 24 अक्टूबर 2009
कहानी की कहानी ---डॉ श्याम गुप्ता ----
सत्य ,सत्य-कथा, कथा, कल्पित -कथा ,गल्प,व असत्य कथा-कहानी
अब बताइये , आपके टी वी पर धारावाहिक कथा आरही है साथ ही एक सूचना भी-'इस धारावाहिक में दिखाई गयी घटनाएँ व पात्र आदि ,किसी भी देश,काल,पात्र,प्रदेश, समाज,वर्ग, जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं '-
अब कहानी की कहानी यूँ बनती है, पहले वेद-उपनिषद् आदि में घटनाओं का सत्य वर्णन किया जाता था ;पौराणिक काल में सत्य को सोदाहरण कथा रूप में लिखा जाने लगा ,ताकि सामान्य जन समझ सके व उचित राह पर चल सके | फ़िर आगे चलकर कथाओं-गाथाओं का जन्म हुआ जो सत्य-व्वास्ताविक घटनाओं, पात्रों, चरित्रों के आधार पर कहानियां थीं--'एक राजा था', 'एक समय..', 'एक राजकुमार ...' , 'एक दिवस....' , 'काम्पिल्य नगरी में एक धनी सेठ...' , 'एक सुंदर राज कुमारी '.आदि-आदि ,जो समाज व व्यक्ति का दिशा निर्देश करती थीं | बाद में कल्पित चरित्र ,घटनाओं आदि को आधार बनाकर कल्पित कथाएँ व गल्प , फंतासी आदि लिखी जाने लगीं जिनमें सत्य से आगे बढ़ा चढ़ा कर लिखा जाने लगा परन्तु वह किसी न किसी समाज, देश,काल की स्थिति -वर्णन होती थीं और बुराई पर अच्छाई की विजय |
परन्तु आज हमें क्या दिखाया जारहा है,पूर्ण असत्य-कथा -कहानी ,अर्थात - 'इस सीरियल के पात्र, घटनाएँ ,किसी भी देश,काल,समाज,जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करते ' अर्थात पूरी तरह से झूठी कहानी ; ऊपर से तुर्रा यह कि हम समाज सेवा कर रहे हैं ,नारी शोषण -उत्प्रीणन के विरोधी स्वर उठा रहे हैं | वाह जी वाह ! ,जब ये सब कहीं हो ही नहीं रहा है तो आप विरोध अथवा सेवा किस की कर रहे हैं ? पहले हवाई किले बनाना ,फ़िर तोड़ना और बीर-बहूटी का खिताब ! या बस अपने देश समाज की बुराई ........| क्या-क्या मूर्खताओं के साए में पल रहे हैं आज-कल हम और हमारी पीढी |
अब बताइये , आपके टी वी पर धारावाहिक कथा आरही है साथ ही एक सूचना भी-'इस धारावाहिक में दिखाई गयी घटनाएँ व पात्र आदि ,किसी भी देश,काल,पात्र,प्रदेश, समाज,वर्ग, जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करतीं '-
अब कहानी की कहानी यूँ बनती है, पहले वेद-उपनिषद् आदि में घटनाओं का सत्य वर्णन किया जाता था ;पौराणिक काल में सत्य को सोदाहरण कथा रूप में लिखा जाने लगा ,ताकि सामान्य जन समझ सके व उचित राह पर चल सके | फ़िर आगे चलकर कथाओं-गाथाओं का जन्म हुआ जो सत्य-व्वास्ताविक घटनाओं, पात्रों, चरित्रों के आधार पर कहानियां थीं--'एक राजा था', 'एक समय..', 'एक राजकुमार ...' , 'एक दिवस....' , 'काम्पिल्य नगरी में एक धनी सेठ...' , 'एक सुंदर राज कुमारी '.आदि-आदि ,जो समाज व व्यक्ति का दिशा निर्देश करती थीं | बाद में कल्पित चरित्र ,घटनाओं आदि को आधार बनाकर कल्पित कथाएँ व गल्प , फंतासी आदि लिखी जाने लगीं जिनमें सत्य से आगे बढ़ा चढ़ा कर लिखा जाने लगा परन्तु वह किसी न किसी समाज, देश,काल की स्थिति -वर्णन होती थीं और बुराई पर अच्छाई की विजय |
परन्तु आज हमें क्या दिखाया जारहा है,पूर्ण असत्य-कथा -कहानी ,अर्थात - 'इस सीरियल के पात्र, घटनाएँ ,किसी भी देश,काल,समाज,जाति का प्रतिनिधित्व नहीं करते ' अर्थात पूरी तरह से झूठी कहानी ; ऊपर से तुर्रा यह कि हम समाज सेवा कर रहे हैं ,नारी शोषण -उत्प्रीणन के विरोधी स्वर उठा रहे हैं | वाह जी वाह ! ,जब ये सब कहीं हो ही नहीं रहा है तो आप विरोध अथवा सेवा किस की कर रहे हैं ? पहले हवाई किले बनाना ,फ़िर तोड़ना और बीर-बहूटी का खिताब ! या बस अपने देश समाज की बुराई ........| क्या-क्या मूर्खताओं के साए में पल रहे हैं आज-कल हम और हमारी पीढी |
गुरुवार, 22 अक्टूबर 2009
डा श्याम गुप्त का एक पद---मन के भरम परे .
( पद हिन्दी साहित्य ,विशेष कर भक्ति साहित्य का एक विशिष्ट छंद है , जो मूलतः भक्ति -गीत के ताल-लय पर आधारित होता है ,भक्त शिरोमणि सूरदास, तुलसीदास आदि भक्त कवियों ने इसे बहुत मनोयोग से इसे प्रयोग किया है , देखिये डा श्यामगुप्त का एक पद ---)
सुअना मन के भरम परे |
जैसा अन्न हो जैसी संगति, सोई धर्म धरे |
संतन डेरा बास करें जे, राम नाम सुमिरे |
अन्न भखै गणिका के घर ते, दुष्ट बचन उचरे |
परि भुजंग मुख बने गरल,और मोती सीप परे |
परै केर के पात स्वाति जल,बनि कपूर निखरे |
दीपक गुन बनि करै उजेरो , चरखा सूत बुने |
सो कपास,संग अनल-अनिल के,घर को भसम करे|
काम क्रोध मद मोह लोभ ,अति बैरी राह खड़े |
ये सारे मन के गुन सुअना ! तिरगुन भरम भरे |
चित चितवन चातुर्य विषय वश ,कर्म-कुकर्म करे|
माया मन की सहज वृत्ति ,मन सुगम राह पकरे |
काल उरग साए में सब जग,भ्रम वश प्रभु बिसरे |
एक धर्म रघुनाथ नाम धारे भव- सिन्धु तरे ||
सुअना मन के भरम परे |
जैसा अन्न हो जैसी संगति, सोई धर्म धरे |
संतन डेरा बास करें जे, राम नाम सुमिरे |
अन्न भखै गणिका के घर ते, दुष्ट बचन उचरे |
परि भुजंग मुख बने गरल,और मोती सीप परे |
परै केर के पात स्वाति जल,बनि कपूर निखरे |
दीपक गुन बनि करै उजेरो , चरखा सूत बुने |
सो कपास,संग अनल-अनिल के,घर को भसम करे|
काम क्रोध मद मोह लोभ ,अति बैरी राह खड़े |
ये सारे मन के गुन सुअना ! तिरगुन भरम भरे |
चित चितवन चातुर्य विषय वश ,कर्म-कुकर्म करे|
माया मन की सहज वृत्ति ,मन सुगम राह पकरे |
काल उरग साए में सब जग,भ्रम वश प्रभु बिसरे |
एक धर्म रघुनाथ नाम धारे भव- सिन्धु तरे ||
गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009
दीपावली , विज्ञान व वैज्ञानिकता ---
विज्ञान, अर्थशास्त्र,सामाजिकता, मानवता,सत्व-आचरण व व्यवहार का समन्वय है , दीपावली का पर्व |
घरों की सफाई,घूरा-पूज़न,कूड़ा- करकट जलाना, धन्वन्तरी पूजन , यम् पूजन आदि स्वास्थ्य-शुचिता , रोगों की रोकथाम , सामाजिक व रोकथाम चिकित्सा केवैज्ञानिक तथ्य हैं |
धनतेरस पर स्वर्ण आदि खरीदना -बचत का प्रावधान , एक आर्थिक सुरक्षा दृष्टि है |दीपदान,भैया दूज ,उत्सव मनाना ,मेले , नरक चतुर्दसी , दानवीर बलि- वामन सन्दर्भ आदि सामाजिकता,मानवता, आचरण -शास्त्र एवं सिर्फ़ स्वयं के बजाय परार्थ भाव व कर्म के प्रेरक हैं |
आख़िर वैज्ञानिकता व विज्ञान है क्या ? कुछ लोग समझते हैं कि नयी-नयी खोजें, उनका वर्णन ,खोजी लोगों के जीवन व जन्म दिन का वर्णन ही वैज्ञानिकता व विज्ञान है |नहीं , यह सिर्फ़ भौतिक उन्नति के पायदान हैं | वैज्ञानिकता का अर्थ है , वह उच्च वैचारिक धरातल जहाँ समता ,समानता , नैतिक आचरण मानव के दैनिक स्वाभाविक व्यवहार हो जायं |विज्ञान का अर्थ है , वे कृतित्व , विचार,कर्म व आचरण जो मानव को उस उच्च धरातल पर लेजाने को प्रेरित करें |
घरों की सफाई,घूरा-पूज़न,कूड़ा- करकट जलाना, धन्वन्तरी पूजन , यम् पूजन आदि स्वास्थ्य-शुचिता , रोगों की रोकथाम , सामाजिक व रोकथाम चिकित्सा केवैज्ञानिक तथ्य हैं |
धनतेरस पर स्वर्ण आदि खरीदना -बचत का प्रावधान , एक आर्थिक सुरक्षा दृष्टि है |दीपदान,भैया दूज ,उत्सव मनाना ,मेले , नरक चतुर्दसी , दानवीर बलि- वामन सन्दर्भ आदि सामाजिकता,मानवता, आचरण -शास्त्र एवं सिर्फ़ स्वयं के बजाय परार्थ भाव व कर्म के प्रेरक हैं |
आख़िर वैज्ञानिकता व विज्ञान है क्या ? कुछ लोग समझते हैं कि नयी-नयी खोजें, उनका वर्णन ,खोजी लोगों के जीवन व जन्म दिन का वर्णन ही वैज्ञानिकता व विज्ञान है |नहीं , यह सिर्फ़ भौतिक उन्नति के पायदान हैं | वैज्ञानिकता का अर्थ है , वह उच्च वैचारिक धरातल जहाँ समता ,समानता , नैतिक आचरण मानव के दैनिक स्वाभाविक व्यवहार हो जायं |विज्ञान का अर्थ है , वे कृतित्व , विचार,कर्म व आचरण जो मानव को उस उच्च धरातल पर लेजाने को प्रेरित करें |
विश्व में एकमात्र विशिष्टतम त्यौहार --दीपावली पर्व
स्वास्थ्य -शुचिता,वैभव,समृद्धि,सामाजिकता-सदाचरण ,परमार्थ भाव के साथ उल्लास के रंग बिखेरता, पाँच दिवसों का यह भारतीय दीप दान पर्व , विश्व में एक अनूठा पर्व है | प्रथम पर्व ,धन- तेरस अर्थात स्वास्थ्य का महा पर्व ; समस्त विश्व में धार्मिक आधार लेकर स्वास्थ्य का ऐसा महापर्व शायद ही कहीं मनाया जाता हो ;प्रथम चिकित्सक भगवान धन्वन्तरि के अवतरण, स्वर्ण-कलश लेकरसमुद्र मंथन के समय प्राकट्य , के दिवस पर धन धान्य के साथ साफ़-सफाई व अच्छे आरोग्य की कामना काएक वैज्ञानिक - पर्व है धन-तेरस या धन्वन्तरि त्रियोदशी |
भगवान् धन्वन्तरि के अनुसार अवश्यम्भावी स्वाभाविक काल-मृत्यु के अतिरिक्त शेष सभी ९९ प्रकार की मृत्यु से चिकित्सा व निदान से बचा जा सकता है | जीव-जंतुओं ,प्राणियों व प्रकृति के स्वभाव से लेकर, शल्य चिकित्सा तक पर धन्वन्तरि के विषय-वैज्ञानिक व्याख्याएं हैं | वन संपदा व जडी-बूटियों (आयुर्वेदिक औषधि संपदा )पर भी देवी लक्ष्मी का वास है | स्वस्थ शरीर ही मानव की सबसे बड़ी पूंजी है ,इसी कारण धन - तेरस , दिवाली पर्व पर आयु,आरोग्य,यश, वैभव , गृह,धन-धान्य, धातु आदि की पूजा होती है | द्वितीय दिवस यम् देवता की पूजा,नरक चौदस भी इसी स्वास्थ्य कामना का पर्व है |तृतीय दिवस दीपदान 'तमसो मा ज्योतिर्गमय ' के साथ लक्ष्मी-गणेश पूजन,चतुर्थ -दिवस ,दान,श्रृद्धा,संकल्प का पर्व असुर राज बलि-वामन अवतार प्रसंग व अन्तिम दिन भाई-बहिन के प्रेम का प्रतीक यम्-द्वितीया पर्व सामाजिकता का पर्व है |इस प्रकार सम्पन्नता के साथ स्वास्थ्य, सदाचरण,सम्पूर्ण निर्विघ्नता-कुशलता के अमर संदेश के साथ लक्ष्मी का आगमन हमारी स्वस्थ , अनाचरण रहित कर्म की सांसकृतिक परम्पराओं की अमूल्य निधि है |
----------सभी को इस महान पर्व पर शुभ कामनाओं सहित| प्रस्तुत है ----
<----प्राचीन भारतीय शल्य चिकित्सा के यन्त्र व-शस्त्र( सुश्रुत संहिता)
ये आधुनिक इन्सट्रूमेन्ट्स के ही समान हैं, नाम
ऊपर--प्रख्यात भारतीय शल्य-चिकित्सक आचार्यवर सुश्रुत, कान की प्लास्टिक सर्जरी करते हुए। कान की सर्जरी का यह तरीका-सुश्रुत-विधि -कह्लाता है।
भगवान् धन्वन्तरि के अनुसार अवश्यम्भावी स्वाभाविक काल-मृत्यु के अतिरिक्त शेष सभी ९९ प्रकार की मृत्यु से चिकित्सा व निदान से बचा जा सकता है | जीव-जंतुओं ,प्राणियों व प्रकृति के स्वभाव से लेकर, शल्य चिकित्सा तक पर धन्वन्तरि के विषय-वैज्ञानिक व्याख्याएं हैं | वन संपदा व जडी-बूटियों (आयुर्वेदिक औषधि संपदा )पर भी देवी लक्ष्मी का वास है | स्वस्थ शरीर ही मानव की सबसे बड़ी पूंजी है ,इसी कारण धन - तेरस , दिवाली पर्व पर आयु,आरोग्य,यश, वैभव , गृह,धन-धान्य, धातु आदि की पूजा होती है | द्वितीय दिवस यम् देवता की पूजा,नरक चौदस भी इसी स्वास्थ्य कामना का पर्व है |तृतीय दिवस दीपदान 'तमसो मा ज्योतिर्गमय ' के साथ लक्ष्मी-गणेश पूजन,चतुर्थ -दिवस ,दान,श्रृद्धा,संकल्प का पर्व असुर राज बलि-वामन अवतार प्रसंग व अन्तिम दिन भाई-बहिन के प्रेम का प्रतीक यम्-द्वितीया पर्व सामाजिकता का पर्व है |इस प्रकार सम्पन्नता के साथ स्वास्थ्य, सदाचरण,सम्पूर्ण निर्विघ्नता-कुशलता के अमर संदेश के साथ लक्ष्मी का आगमन हमारी स्वस्थ , अनाचरण रहित कर्म की सांसकृतिक परम्पराओं की अमूल्य निधि है |
----------सभी को इस महान पर्व पर शुभ कामनाओं सहित| प्रस्तुत है ----
प्राचीन भारत में सर्जरी के कुछ दर्पण---
<----प्राचीन भारतीय शल्य चिकित्सा के यन्त्र व-शस्त्र( सुश्रुत संहिता)
ये आधुनिक इन्सट्रूमेन्ट्स के ही समान हैं, नाम
ऊपर--प्रख्यात भारतीय शल्य-चिकित्सक आचार्यवर सुश्रुत, कान की प्लास्टिक सर्जरी करते हुए। कान की सर्जरी का यह तरीका-सुश्रुत-विधि -कह्लाता है।
मंगलवार, 6 अक्टूबर 2009
कर्म -अकर्म ----
कर्म निम्न प्रकार के होते हैं ---
१।- कर्म --जो प्राणी के नित्य-नैमित्तिक कर्म होते हैं , खाना,पीना, सोना ,मैथुन ,सुरक्षा , आदि-आदि जो प्रत्येक जीव करता है , वनस्पति से लेकर मानव तक|
२.-सकर्म -जो मूलतः मानव करता है -सामाजिक दायित्व वहन, नागरिक दायित्व ,पारिवारिक दायित्व जो जीवन में आवश्यक हैं |
३.-सत्कर्म-जो मानव ,सामान्य कर्मों सेऊपर उठकर , समाज, देश,धर्म ,मानवता के लिए विशिष्ट भाव से करता है जो उसे विशेष व महापुरुषों की श्रेणी में लाता है।
४.-कुकर्म या दुष्कर्म --जो मानव को हैवान व पशुतुल्य बनाते हैं ,और मानवता,देश,समाज ,मानव के प्रति अपराध युत होते हैं |
५। अकर्म --जो व्यर्थ के कर्म होते हैं व मानव को उनसे बचना चाहिए , ये देखने में अहानिकारक होते है सिर्फ़ क्षणिक मनोरंजन कारक ,परन्तु वास्तव में ये समाज के लिए दूरंत-भाव में अत्यन्त हानिकारक व घातक हैं,
क्योंकि ये व्यक्ति कोअप्रत्यक्ष रूप में कुकर्म करने को प्रेरित करते हैं।
,------आजकल टीवी, रेडियो ,मोबाइल आदि पर अत्यधिक मनोरंजन , रेअलिटीशो में बच्चों ,युवकों ,किशोर-किशोरियों को अपने मूल शिक्षा व कर्म से भटकाना एक अत्याचार है , स्टंट आदि वाले शो में व्यर्थ के स्टंट जो कभीजीवन में काम नहीं आते, गंदे, वीभत्स , अभक्ष्य पदार्थों में, सर्प -कीडों में मुहं डालने वाले द्रश्य | सीमित ज्ञान वालेलोगों द्वारा सामाजिक आदि विषयों ,तथ्यों पर आधे-अधूरे सत्य , अति-नाटकीयता प्रदर्शन आदि-आदि ; सभी वस्तुतः अकर्म हैं।
शासन, जन-सामान्य,विद्वतजन ,संस्थायें , सामाजिक -संस्थायें ,आप और हम सभी को इसके बारे में सोचना चाहिए.
१।- कर्म --जो प्राणी के नित्य-नैमित्तिक कर्म होते हैं , खाना,पीना, सोना ,मैथुन ,सुरक्षा , आदि-आदि जो प्रत्येक जीव करता है , वनस्पति से लेकर मानव तक|
२.-सकर्म -जो मूलतः मानव करता है -सामाजिक दायित्व वहन, नागरिक दायित्व ,पारिवारिक दायित्व जो जीवन में आवश्यक हैं |
३.-सत्कर्म-जो मानव ,सामान्य कर्मों सेऊपर उठकर , समाज, देश,धर्म ,मानवता के लिए विशिष्ट भाव से करता है जो उसे विशेष व महापुरुषों की श्रेणी में लाता है।
४.-कुकर्म या दुष्कर्म --जो मानव को हैवान व पशुतुल्य बनाते हैं ,और मानवता,देश,समाज ,मानव के प्रति अपराध युत होते हैं |
५। अकर्म --जो व्यर्थ के कर्म होते हैं व मानव को उनसे बचना चाहिए , ये देखने में अहानिकारक होते है सिर्फ़ क्षणिक मनोरंजन कारक ,परन्तु वास्तव में ये समाज के लिए दूरंत-भाव में अत्यन्त हानिकारक व घातक हैं,
क्योंकि ये व्यक्ति कोअप्रत्यक्ष रूप में कुकर्म करने को प्रेरित करते हैं।
,------आजकल टीवी, रेडियो ,मोबाइल आदि पर अत्यधिक मनोरंजन , रेअलिटीशो में बच्चों ,युवकों ,किशोर-किशोरियों को अपने मूल शिक्षा व कर्म से भटकाना एक अत्याचार है , स्टंट आदि वाले शो में व्यर्थ के स्टंट जो कभीजीवन में काम नहीं आते, गंदे, वीभत्स , अभक्ष्य पदार्थों में, सर्प -कीडों में मुहं डालने वाले द्रश्य | सीमित ज्ञान वालेलोगों द्वारा सामाजिक आदि विषयों ,तथ्यों पर आधे-अधूरे सत्य , अति-नाटकीयता प्रदर्शन आदि-आदि ; सभी वस्तुतः अकर्म हैं।
शासन, जन-सामान्य,विद्वतजन ,संस्थायें , सामाजिक -संस्थायें ,आप और हम सभी को इसके बारे में सोचना चाहिए.
शनिवार, 3 अक्टूबर 2009
ले चल सत की राह ---
हे मन ! ले चल सत की राह |
लोभ, मोह ,लालच न जहां हो ,
लिपट सके ना माया ....| x2
मन की शान्ति मिले जिस पथ पर ,
प्रेम की शीतल छाया ....| x2
चित चकोर को मिले स्वाति-जल ,
मन न रहे कोई चाह | x2-----हे मन ले चल.....||
यह जग है इक माया नगरी ,
पनघट मन भरमाया ...| x2
भांति- भांति की सुंदर गगरी,
भरी हुई मद-माया...| x2
अमृत गागर ढकी असत पट ,
मन क्यूं तू भरमाया...
मन काहे भरमाया ....|
सत से खोल ,असत -पट घूंघट ,
पिया मिलन जो भाया......|x2
अन्तर के पट खुलें मिले तब,
श्याम पिया की राह ....|
रे मन ! ले चल सत की राह ,
ले चल प्रभु की राह .....हे मन!....||
लोभ, मोह ,लालच न जहां हो ,
लिपट सके ना माया ....| x2
मन की शान्ति मिले जिस पथ पर ,
प्रेम की शीतल छाया ....| x2
चित चकोर को मिले स्वाति-जल ,
मन न रहे कोई चाह | x2-----हे मन ले चल.....||
यह जग है इक माया नगरी ,
पनघट मन भरमाया ...| x2
भांति- भांति की सुंदर गगरी,
भरी हुई मद-माया...| x2
अमृत गागर ढकी असत पट ,
मन क्यूं तू भरमाया...
मन काहे भरमाया ....|
सत से खोल ,असत -पट घूंघट ,
पिया मिलन जो भाया......|x2
अन्तर के पट खुलें मिले तब,
श्याम पिया की राह ....|
रे मन ! ले चल सत की राह ,
ले चल प्रभु की राह .....हे मन!....||
शुक्रवार, 2 अक्टूबर 2009
सही प्रश्न है - कहीं यह लेट-लतीफी जान बूझा कर तो नहीं | हर जगह शिक्षा के क्षेत्र में ,कम्युनिस्ट , साम्यवादी खेमे व शिक्षा माफिया अपने खूंटे गाडे हुए हैं , जिनका उद्देश्य हिन्दी, हिन्दुस्तानी तंत्र को बदनाम करना होता है| यूं पी बोर्ड को भी कहीं बदनाम करने का यह षडयंत्र तो नहीं ???
------------दे.हि समाचार -०२-१०-०९ ---------------->
------------दे.हि समाचार -०२-१०-०९ ---------------->
गांधीजी और आज के बच्चे ----
बच्चों ने गांधीजी के बारे में आधे-अधूरे जबाव दिए ?
------लोग भी क्या पुराने , बूढे ,एतिहासिक लोगों के बारे में पूछा करते है, क्या आज के नेताओं को, अफसरों को , क्षात्रों को पूरा पता है गांधी के बारे में ?
-------फ़िल्म, फ़िल्म के हीरो,हीरोइन, अंग्रेजी फ़िल्म के हीरो, सोंग्स , विडियो , डांस , अंग्रेजी उपन्यास,शेयर के बारे में क्यों नहीं पूछते !!! इन से फुर्सत मिले तबतो-------- -- समाचार - हिन्दुस्तान दैनिक -०२-१०-०९
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