सखि री तेरी कटि छीन ,पयोधर भार भला धरती हो कैसे ?
बोली सखी मुसुकाइ, हिये, उर भार तिहारो धरतीं हैं जैसे |
भोंहें बनाई कमान भला , हैं तीर कहाँ पै ,निशाना हो कैसे ?
नैनन के तूरीण में बाण , धरे उर ,पैनी कटार के जैसे |
कौन यहाँ मृग-बाघ धरे , कहो बाणन वार शिकार हो कैसे ?
तुम्हरो हियो मृग भांति पिया,जब मारै कुलांच,शिकार हो जैसे |
प्रीति तेरी मनमीत प्रिया ,उलझाए ये मन उलझी लट,जैसे |
लट सुलझाय तौ तुम ही गए,प्रिय मन उलझाय गए कहो कैसे ?
ओठ तेरे विम्बा फल भांति, किये रचि लाल , अंगार के जैसे |
नैन तेरे प्रिय प्रेमी चकोर ,रखें मन जोरि अंगार से जैसे |
अनहद नाद को गीत बजै,संगीत प्रिया अंगडाई लिए से |
कंचन काया के ताल-मृदंग पै, थाप तिहारी कलाई दिए ते |
प्रीति भरे रस-बैन तेरे,कहो कोकिल कंठ भरे रस कैसे ?
प्रीति की बंसी तेरे उर की ,पिय देती सुनाई मेरे उर में से |
पंकज नाल सी बाहें प्रिया ,उर बीच धरे क्यों, अँखियाँ मीचे ?
मत्त-मतंग की नाल सी बाहें ,भरें उर बीच रखें मन सींचे ||
2 टिप्पणियां:
अच्छा लगा पढ़ना!!
बधाई
सुंदर शब्द संयोजन.प्रेम की अत्युत्तम अभ्व्यक्ति
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