भुला दिये सब;
भूल न पाये,
वे बह निकले,
कविता बनकर।
दर्द जो गहरे,
नहीं बह सके;
उठे भाव बन
गहराई से
वे दिल की
अनुभूति बन गये।
दर्द मेरे ,
मनमीत बन गये;
यूं मेरे नव-गीत बन गये।
भावुक मन की
विविधाओं की-
बन सुगन्ध वे,
छंद बने, फ़िर-
सुर लय बनकर,
गीत बन गये।
भूली-बिसरी,
यादों के, उन-
मन्द समीरण की
थपकी से,
ताल बने,
सन्गीत बन गये।
दर्द मेरे ,
मन मीत बन गये;
यूं मेरे नव गीत बन गये॥---क्रमशः
2 टिप्पणियां:
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मुझे आपका गीत बहुत पसंद आया! बेहद ख़ूबसूरत!
वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने! वैसे आपकी हर एक रचना एक से बढकर एक है!
geet kaise bane is par aapki vyakhya pasand aayi..... aapke sujhaavon ka shukriya !
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