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महा शिव रात्रि
अन्धकार को चीर कर, ज्ञानालोक बहाय |
निर्गुण शिव जब सगुण हों,महारात्रि कहलाय|
चित का घड़ा बनाय के, देंय भक्ति रस डाल |
मन-वृत्ति के छिद्र से, जल की धारा ढाल ।
काम क्रोध से क्षत नहीं,मन अक्षत कहलाय ।
चरणों में शिव शंभु के, निज मन देय चढ़ाय ।
व्यसनों का अर्पण करें, भोले मुक्ति दिलायं ।
भंग धतूरे रूप में, शिव पर देयं चढ़ाय ।
अन्धकार अज्ञान को,मन से देय भगाय ।
महाकाल आराधना,तब सार्थक होपाय ॥
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