प्रीति के बंधन फ़िर से यूं जुड जायंगे।
यह तो हमने कभी भी था सोचा नहीं,
चलते चलते यूं राहों में मिल जायंगे॥
मैं समझता रहा बस यूंही आज तक,
जाने फ़िर से मुलाकात हो या न हो ।
ये तो कुदरत की ही है कुछ बाज़ीगरी,
हमको है ये यकीं तुम को हो या न हो॥
दो कदम ही तेरे साथ चल पाये थे,
बस कदम अपने यूं लडखडाने लगे।
जब से राहें ही सारी, जुदा होगईं,
गुनुगुनाने लगे, गीत गाने लगे ॥
मैने सोचा न था चलते सीधी डगर,
फ़िर से तेरी ही गलियों में मुड जायंगे।
मैने सोचा नहीं था जुदा रास्ते,मुड के-
इस मोड पर फ़िर से मिल जायंगे॥
2 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर गीत
चलते चलते यूं राहों में मिल जायंगे॥
waqay me jawab nahi he aap ki kalam ka
bahut sundar
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
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