उनके अश्कों को पलकों से चुरा लाये हैं ।
उनके गम को हम खुशियों से सजा आये हैं ।
आप मानें या न मानें ये तहरीर मेरी,
उनके अशआर ही गज़लों में उठा लाये हैं।
उस दिये ने ही जला डाला आशियां मेरा,
जिसको बेदर्द हवाओं से बचा लाये हैं ।
याद करने से तो दीदार न होता उनका,
यूं ही यादों में तडपने की सज़ा पाये हैं ।
प्यार में दर्द का अहसास कहां होता है,
प्यार में ज़ज़्ब दिलों को ही ज़ख्म भाये हैं ।
प्रीति है भीनी सी बरसात, क्या आलम कहिये,
रूह क्या अ्क्स भी आशिक का भीग जाये है ।
श्याम, करते हैं सभी शक मेरे ज़ज़्बातों पै,
हमने तो दर्द के नगमे सदा ही गाये हैं ॥
4 टिप्पणियां:
उस दिये ने ही जला डाला आशियां मेरा,
जिसको बेदर्द हवाओं से बचा लाये हैं ।
वाह क्या बात है !
उस दिये ने ही जला डाला आशियां मेरा,
जिसको बेदर्द हवाओं से बचा लाये हैं ।
क्या ख़ूब लिखा है। हर शे’र लजवाब।
बहुत बढ़िया.
dhanyavaad.
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