एक नयी मुहीम छेड़ी गयी है---अंग्रेज़ी को बढाने की हिन्दी को मिटाने की----तर्क यह है कि , रोज़गार पाना , अंग्रेज़ी का ग्लोब में एक खिड़की समझना , अंग्रेज़ी ज्ञान की बदौलत पूरी दुनिया में अपनी क्षमताओं का झंडा बुलंद करना--- ---अंग्रेज़ी चश्मे वाले लोग यदि हिन्दी अखवारों के , पत्रिकाओं के, संस्थानों के अन्दर प्रवेश कर लेंगे ( जोड़-तोड़ से) तो यही तो होगा , यही वे लोग हैं जो मैकाले के अनुसार -शक्ल से हिन्दुस्तानी व विचार, अक्ल, तर्क व ज्ञान से अँगरेज़ होंगे--एसे लोगों के कारण ही आज तक हिन्दी ( जो आज़ादी से पहले ही सम्पूर्ण राष्ट्र की भाषा बन चुकी थी कहीं कोइ विरोध नहीं था , बाद में आगे नहीं बढ़ पाई और आज तक अंग्रेज़ी से पिछड़ती रही है ) राष्ट्र -भाषा नहीं बन पाई है। यह एक सुनियोजित षडयंत्र है हिन्दी के विरुद्ध ----
१.---हिन्दी में न प्रयोग होने वाले शब्दों का अखबार में खुले आम प्रदर्शन-जनता में भ्रम उत्पन्न करने का प्रयत्न है हिन्दी के विरोध में -( लोह पथ गामिनी =रेल ; दूरभाष यंत्र =फोन ;कंठ लंगोट =टाई ; अभी कालित्रा =कम्प्युटर ) क्या दिखाता है कि हिन्दी कठिन भाषा है ---कौन आज हिन्दी में इन शब्दों को प्रयोग करता है -- क्या हमने सीधे सीधे इन शब्दों को लेकर हिन्दी का मान व उसकी शब्दावली नहीं बढ़ाई है |
२। रोज़गार ---जिन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद विदेश जाना हो , विदेशियों की सेवा करने हो वे अंग्रेज़ी का ज्ञान प्राप्त करें --कितने लोग एसे हैं और क्यों हों, क्यों सब अंग्रेज़ी पढ़ें , क्यों घर में भी बातचीत अंग्रेज़ी में करें ? --भारत की सोफ्ट वेयर कम्पनियां क्या अमेरिका की टाइपिंग , मनेजिंग गुलामी ही नहीं कर रहीं | गुलामी की खीर अच्छी या अपनी रोटी |
३।- ग्लोबल खिड़की ---समझना अंग्रेज़ी को--आज हिन्दी में दुनिया भ्रर का साहित्य , विज्ञान , ज्ञान मौजूद है ;हमारी अपनी भाषा संस्कृत उच्चतम खिड़की मौजूद है क्यों न हम उस खिड़की को अपना बनाकर देखें ; फिर हम क्यों दुसरे की खिड़की से झांकें अपनी खिड़की क्यों न बनाएं , पकी पकाई खीर क्यों खाए । दूसरे की खिड़की से झांकने के साथ दूसरे की सभ्यता, संस्कृति, बुराइयां आती हैं जिसका कुफल आज भारत व भारतीय समाज भोग रहा है | क्यों नहीं हम --बुद्ध के, भारतीय मनीषा के घोष नाद को अपनाते --" अप्प दीपो भव "।
४.-अपनी क्षमता का डंका या अच्छी तरह गुलामी करने की क्षमता ---आज सारा देश, बहुराष्ट्रीय कंपनियों की नौकरी कर रहा है , सारा देश , आई टी क्षेत्र , अमेरिका व अन्य देशों की क्लर्की कर रहा है , प्रोजेक्ट उनके पूरा हम करें , काम उनका -कम्प्युटर पर टाइप हम करें , कौन सी क्षमता की बात की जारही है --जी तोड़ कर , रात रात जाग कर गुलामी करके पैसा कमाने की क्षमता , जो वे इसलिए हमें देते हैं कि उनके यहाँ मजदूरी बहुत अधिक है, वे अपने लोगों को अन्य उच्च क्षमता वाले कार्य में लगा सकें एवं हम सदा मज़दूरी ही करतें रहें |आज कौन सा सोफ्टवेयर इंजीनियर हैएक कम्प्युटर क्लर्क का काम नहीं कर रहा और इतरा रहा है कि हम इंजीनियर हैं ,अमेरिका रिटर्न हैं |
---वस्तुतः यह एक नवीन षडयंत्र है अंग्रेज़ी का हिन्दी के विरुद्ध --हमें सावधान होजाना चाहिए | इस पोस्ट का अगला भाग ---कविता" - हिन्दी यह रेल न जाने चलते चलते क्यों रुक जाती " लखनऊ ब्लोगर्स अस्सोसिएशन । के ब्लॉग पर देखें |
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- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
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