१- सत..
ये सत कौन देश को बासी |
मिलै कहाँ कहाँ उगे कौन रंग कौन नारि को दासी ।
हमतौ कबहूँ कतहूँ नहीं पायो, देखी दिल्ली झांसी।
मंदिर मस्जिद गिरिजा ढूंढा , ढूंढा काबा काशी ।
अमरीका भी ढूंढ लियो है मिलो न वो अविनाशी ।
स्कूल कालिज और मदरसे मिले गुरू सहसाथी ।
माँ पितु रिश्ते,शासक शासित,सभी असत अभिलाषी।
नहीं किसी ने हमें बतायो, क्या सत क्या सत-भाषी।
कण कण में तो असत बसों है , झूठ नाम अतिनाशी ॥
२- प्रेम गली की राह....
चलो रे मन प्रेम गली की राह ।
प्रेम की पावन गली सुहानी वट सी शीतल छाँह ।
प्रेम पसीजे तन मन भीजै ,मन में भरे उछाह ।
जितना गहरे पथिक चलो रे ,आनंद मिलै अथाह ।
प्रभु की प्रीति मिले जिस पथ पर, सोई सांची राह ।
प्रेम की संकरी गली चले जो, तकै न दूजी राह ।
श्याम, जो प्रभु की प्रीति मिले मन दूजी रहे न चाह ॥
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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...
- shyam gupta
- Lucknow, UP, India
- एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त
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