चित्तष्य शुद्धये कर्म न तु वस्तूपलब्धये
वस्तुसिद्धिर्विचारेण न किंचित कर्मकोटिभिः ||
कर्म चित्त की शुद्धि के लिये ही है, वस्तूपलब्धि (तत्वदृष्टि) के लिये नहीं | वस्तु-सिद्धि तो विचार से ही होती है, करोड़ों कर्मों से कुछ भी नहीं हो सकता
सम्यग्विचारत: सिद्धा रज्जुतत्वावधारणा
भ्रान्त्योदित महासर्पभयदु:खविनाशिनी |
भालिभांति विचार से सिद्ध हुआ रज्जु तत्व का निश्चय भ्रम से उत्पन्न हुए महान सर्पभयरूपी दुख को नष्ट करनेवाला होता है
अर्थस्य निश्चयों दृष्टो विचारेण हितोक्तित:
न स्नानेन न दानेन प्राणायामशतेन व ||
कल्याणप्रद उक्तियों द्वारा विचार करने से ही वस्तु का निश्चय होता देखा जाता है; स्नान, दान अथवा सैंकड़ों प्राणायामों से नहीं----
वस्तुतः विचार करके कर्म करना चाहिए, जो निष्काम हो।
वस्तुतः विचार करके कर्म करना चाहिए, जो निष्काम हो।
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