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डा श्याम गुप्त का ब्लोग...

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Lucknow, UP, India
एक चिकित्सक, शल्य-चिकित्सक जो हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान व उसकी संस्कृति-सभ्यता के पुनुरुत्थान व समुत्थान को समर्पित है व हिन्दी एवम हिन्दी साहित्य की शुद्धता, सरलता, जन-सम्प्रेषणीयता के साथ कविता को जन-जन के निकट व जन को कविता के निकट लाने को ध्येयबद्ध है क्योंकि साहित्य ही व्यक्ति, समाज, देश राष्ट्र को तथा मानवता को सही राह दिखाने में समर्थ है, आज विश्व के समस्त द्वन्द्वों का मूल कारण मनुष्य का साहित्य से दूर होजाना ही है.... मेरी तेरह पुस्तकें प्रकाशित हैं... काव्य-दूत,काव्य-मुक्तामृत,;काव्य-निर्झरिणी, सृष्टि ( on creation of earth, life and god),प्रेम-महाकाव्य ,on various forms of love as whole. शूर्पणखा काव्य उपन्यास, इन्द्रधनुष उपन्यास एवं अगीत साहित्य दर्पण (-अगीत विधा का छंद-विधान ), ब्रज बांसुरी ( ब्रज भाषा काव्य संग्रह), कुछ शायरी की बात होजाए ( ग़ज़ल, नज़्म, कतए , रुबाई, शेर का संग्रह), अगीत त्रयी ( अगीत विधा के तीन महारथी ), तुम तुम और तुम ( श्रृगार व प्रेम गीत संग्रह ), ईशोपनिषद का काव्यभावानुवाद .. my blogs-- 1.the world of my thoughts श्याम स्मृति... 2.drsbg.wordpres.com, 3.साहित्य श्याम 4.विजानाति-विजानाति-विज्ञान ५ हिन्दी हिन्दू हिन्दुस्तान ६ अगीतायन ७ छिद्रान्वेषी ---फेसबुक -डाश्याम गुप्त

मंगलवार, 19 अक्टूबर 2010

डा श्याम गुप्त का आलेख..एक युवा आक्रोश ...

-------मूलतः जब भारतीयता की बात आती है, उसके गौरव की बात कीजाती है तो आज का युवा , पाश्चात्य भाव से प्रभावित माडर्न व्यक्ति, कहता है कि--हम भारतीय बहुत पिछड़े हैं ,सब कुछ तो अमेरिका में बनता है, वहां देखे तो आँखे खुल जाएँगी, अंगरेजी पढ़े बिना कैसे उन्नति होगी? हम अपना ही सब कुछ क्यों नहीं बनाते? भारतीयता का राग गाने वाले अपने स्वयम के वायुयान, मशीनें , हथियार आदि क्यों नहीं बनाते ?
प्रश्न अपने आप में ठीक है , इससे उन का आक्रोश स्व की चिंता भी झलकती है,परन्तु आरोप गलत है क्या करना/ होना चाहिए-----
१.पहले अंग्रेज़ी / अमेरिकी भाषा, साहित्य, गाने, संगीत, फ़िल्में, मनोरंजन आदि का आयात तो बंद हो । विदेशी कल्चर का आयात तो बंद हो, विदेशी , अंग्रेज़ी, अमेरिकी सोच का आयात तो बंद हो ।
२. अंग्रेज़ी व विदेशी वस्तुओं, विचारों आदि के फ्री उपभोग के नाम पर होने वाला भोगवादी व्यवस्था-सोच-व्यवहार तो बंद हो। चाकलेट पर वर्जीनिटी लुटाने वाले सो काल्ड इश्तहार आदि वाली भोग वादी व्यवस्था व उसका प्रचार -प्रसार तो बंद हो। --
" सुबरन कलश सुरा भरा साधू निंदा सोय। "
---जब शरीर से गन्दगी निकालेंगे तभी तो उसमें अच्छे पदार्थ टिकेंगे । अच्छे स्वतंत्र, निजी, मौलिक भाव व विचार आयेंगे, पनपेंगे ।
३. तभी तो भारतीय सोच , अपनी स्वतंत्र सोच बनेगी, निखरेगी , उन्नत होगी ।
४.अपने इतिहास से ज्ञान तो लें-तभी तो पता चलेगा कि क्या उचित व श्रेष्ठ होता है, किसे चुनना चाहए ।
---पहले कल्चर बनती है, बदलती है तब प्रयोग उपयोग बदलते हैं । तभी तो अपनी स्वयं की नई नई खोजों को कर पाएंगे ।

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